जनपथ न्यूज डेस्क/नई दिल्ली

7 दिसम्बर 2023

नई दिल्ली: अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी के विद्वान शिष्य मुनि श्री कमल कुमार जी ने महाबोधि इन्टरनेशनल मेडिटेशन सेन्टर व अध्यात्म साधना केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में महाकरुणा दिवस पर साधना केन्द्र के मिसु सभागार में उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान महावीर और भगवान बुद्ध दोनो समकालीन? दोनों ने दीर्घ कालीन ध्यान साधना से ज्ञान को प्राप्त किया। उनका कथन सम भी कहा जा सकता है भगवान महावीर ने अहिंसा का उपदेश दिया हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता भगवान बुद्ध ने करुणा का उपदेश दिया क्रूर व्यक्ति कभी अपना और दूसरों का कल्याण नहीं कर सकता अगर व्यक्ति में अहिंसा और करुणा की चेतना का जागरण हो जाए तो आज घर परिवार, समाज, देश और विश्व में तनाव टकराव अलगाव विच राव की समस्या नहीं हो सकती। आज का व्यक्ति अहिंसा और करुणा के अभाव में ही दीन मलीन सा नजर आ रहा है। मुनि श्री ने फरमाया कि काँटों में रहकर फूल गुल है और महलों में रहकर भी इन्सान दुखी है। आज के इस कार्यक्रम धर्म की शोभा बढ़ी है न कि सम्प्रदाय की। महाबोधि इन्टरनेशनल मेडिटेशन के फाउण्डर चेयरमेन श्री भिक्षु संघसेना जी ने कहा कि मनुष्य बदलने की प्रवृत्ति के कारण सबसे श्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। पशुओं में बदलने की प्रवृत्ति नहीं होती, इसी कारण उसका विकास नहीं हुआ है। बैल हजारों वर्षों से गाड़ी से जुतता आ रहा है और आज भी जुत रहा है। इसका कारण है कि पशु जगत में बदलने की क्षमता नहीं है। मनुष्य की श्रेष्ठता का कारण है कि वह बाहर और भीतर से भी बदलता है। मनुष्य का दृष्टिकोण व चितन भी बदल रहा है। व्यक्ति में बाहर से बहुत बदलाव आ गया है। आवश्यक है कि व्यक्ति भीतर से भी बदले, चेतना जगत में परितर्वन आए। बाहरी परिवर्तन में वेशभूशा, खानपान, रहन सहन आदि साधनों में बहुत परिवर्तन आया है। व्यक्ति ने बाहरी विकास बहुत किया है। कितु हजारों वर्ष भी ईर्ष्या, देश, लडाई झगडा होता है तथा आज भी होता है। बाहर के पदार्थों का परिवर्तन हुआ है कितु भीतर का परिवर्तन नहीं हुआ है। बाहरी जगत को बदलने में चेतना का प्रयोग किया है उतना भीतर की। की चेतना को बदलने का प्रयोग नहीं किया। भीतर का परिर्तन नही होने से व्यक्ति बड़े-बड़े घोटाले कर रहा है। पदार्थ जगत को बदलने की बात है, कितु भीतर से सूक्ष्म चेतना है उसे बदलने की बात नहीं आ रही है।

अध्यात्म साधना केन्द्र के निदेशक व प्रबन्ध न्यासी श्री के. सी. जैन ने कहा कि जैन परम्परा की अहिंसा, बौद्र परम्परा की करूणा और इसी प्रकार सनातन, सिख व इस्लाम आदि धर्मों में जो संसार में प्राणी मात्र के प्रति जो प्रेम के भाव की प्रेरणा दी गयी है यह प्रकृति का शाश्वत और सार्वभौम नियम है। जो व्यक्ति जिस समय जो काम कर रहा है, उस समय क्रोध का उपयोग है, क्रोध की चेतना बदलना कठिन है। किंतु अध्यात्म के आचार्यों ने चेतना को बदलने का काम हाथ में लिया है। अध्यात्म के आचार्यों के क्रोध की चेतना को बदलने का काम किया है।

व्यक्ति के परिवर्तन का सूत्र अध्यात्म में मिलता है, इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति को अध्यात्म के ग्रंथों का गहराई से अध्ययन करना चाहिए। अध्यात्म के द्वारा चेतना के परिवर्तन का सूत्र व्यक्ति के हाथ में लग सकता है। आज अध्यात्म का युग रहा है पदार्थ की समस्या से पैदा होनी वाली समस्याओं का समाधान अध्यात्म के द्वारा किया जा सकता है और व्यक्ति पदार्थ से अलिप्त रह सकता है। दिन भर बोलता हुआ भी मौन रह सकता है, देह में रहते हुए भी विदेह में रह सकता है। उपराज्यपाल किरन बेदी जी ने कहा कि जिस व्यक्ति में धैर्य और वीर्य है वह धर्म पर डट सकता है। व्यक्ति आत्मानुशासन अथवा अपनी आत्मा पर अनुशासन, शरीरानुशासन शरीर पर अनुशासन रखे कि उसका मन और शरीर के द्वारा कोई गलत प्रवृत्ति न हो। विपश्यना ध्यान से ही सर्वांगीण विकाश संभव है।

कार्यक्रम में डॉ. ए के मर्चेन्ट, स्वामी चंद्र देव महाराज, श्री मोए केआऊ औंग, मेजर जनरल वेटसोप नंगएल, डॉ. इमाम उमर अहमद इलयासी, गोस्वामी सुशील महाराज, श्री परमजीत सिंह चंडोक, स्वामी सर्वलोका नन्द, राजदूत दीपक बोहरा, डॉ. एंटनी राजू, श्री सुखराज सेठिया, श्री प्रमोद जैन, श्री सुशील बोथरा, श्री सुशील राखेचा, श्री एस सी जैन, श्री मति मंजु जैन, श्री मति शिल्पा बैद सहित कई महानुभाव उपस्थित थे।

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