जनपथ न्यूज़ देश के जाने-माने अधिवक्ता एवं भारतीय मानवाधिकार परिषद के राष्ट्रीय सचिव श्री चिरंजीत कुमार शर्मा जी से पुलिस द्वारा किए जाने वाले मानवाधिकार उल्लंघन पर हमारे संवाददाता ने उनके कार्यालय में उनसे बातचीत की जिस पर उन्होंने बताया कि पुलिस हमारे समाज का ही एक प्रतिरूप है या पुलिस का चरित्र ही हमारे समाज की व्यवस्था को दर्शाता है।
उन्होंने बताया कि बड़े-बड़े भाषण से पुलिस व्यवस्था को नहीं सुधारा जा सकता उसके लिए पुलिस को अपने अंदर झांकने की जरूरत है। पिछले दिनों बिहार की घटनाएं जिसमें पुलिस के ऊपर समाज का आक्रोश देखते हुए ऐसा लगता था जैसे समाज का पुलिस के ऊपर जो विश्वास एवं इज्जत होनी चाहिए वह समाप्त हो गई है । जिसके लिए पुलिस को अपने अन्दर झांकने की आवश्यकता है और समय के अनुसार अपनी कार्य पद्धति में बदलाव करना उनके लिए परम आवश्यक है ताकि जनमानस को उनके ऊपर भरोसा कायम हो सके ।
एनएचआरसी की रिपोर्ट के अनुसार 2010 से 2017 के बीच पुलिस द्वारा मानवाधिकार उल्लंघनों एवं एनकाउंटर करने की उत्तर प्रदेश में 794 केस मध्यप्रदेश में 94 बिहार में 74 झारखंड में 69 और आसाम में 69 एवम मणिपुर में 63 केस है । जो पुलिस की कार्य पद्धति पर एक सवालिया निशान लगाती हैं ।जिसे सही करके समाज में अपने प्रति विश्वास एवं इज्जत को कायम करने की उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है । क्योंकि जिस व्यवस्था के लिए वह समाज में स्थापित है अगर वह व्यवस्था ही उन्हें नकार देगी तो समाज में कानून व्यवस्था कायम नहीं की जा सकती।
उन्होंने हमें बताया कि पुलिस एसोसिएशन के एक लेख को मैंने पढ़ा जिसमें पुलिस के अनुसार जो लोग कानून व्यवस्था को खराब करते हैं। गलत जगह पार्किंग करते हैं गैर कानूनी कार्य करते हैं। देश या समाज के प्रति गद्दारी करते उन पर कार्रवाई की जाए तो क्या वह गलत है इस पर राष्ट्रीय सचिव ने कहा कि उन पर कार्रवाई करना एवं जिस कानून के नियम के तहत पुलिस काम करती हैं उसके नियमों के अनुसार यदि वह कार्रवाई करेंगे तो कभी जनाक्रोश नहीं होगा ।जब भी पुलिस द्वारा मानवाधिकार का उल्लंघन किया गया है, तब तब पुलिस के प्रति जनाक्रोश को हवा मिली है ।
उन्होंने बताया कि उस लेख के अनुसार पुलिस पर काम का काफी दबाव है निचली पंक्ति के पुलिसकर्मी जो थाने में कार्यरत है वह दबाव में कार्य करते हैं। यहां तक की उनकी पारिवारिक जिंदगी के बारे में उनके बड़े अधिकारी उनसे कोई बात नहीं करते हैं। जिससे उनके ऊपर काफी मानसिक दबाव भी है । जिस पर चिंतन मंथन करने की आवश्यकता है ।
इस पर राष्ट्रीय सचिव ने कहा कि यह वक्तव्य एक भयानक स्थिति को दर्शाता हैं क्योंकि ऐसी स्थिति में लोग मानसिक रूप से संतुलित नहीं हो सकते हैं और बिना मानसिक संतुलन के पुलिसकर्मी द्वारा विभागीय कार्रवाई का कानून के दायरे में रहकर कार्य करना मुश्किल है ।और ऐसी अवस्था ही मानवाधिकार के उल्लंघन जैसे कृत्य को पुलिस अंजाम देती है । उन्होंने कहा कि मैं मानवाधिकार परिषद के राष्ट्रीय सचिव होने के नाते उनसे यह अपील करता हूं कि वह अपने प्रदेश के सभी थानों में मनोचिकित्सक द्वारा सभी पुलिस कर्मियों की काउंसलिंग करने की व्यवस्था करें, ताकि मनोचिकित्सक की सलाह के अनुसार कार्य करके पुलिस कर्मियों के ऊपर जो दबाव है उसको मनोचिकित्सक काउंसिल के द्वारा कम किया जा सके। क्योंकि 21वीं सदी में पुलिस की वर्तमान कार्य व्यवस्था व मानवाधिकार के उल्लंघन एक सभ्य पुलिस व्यवस्था को नहीं दर्शाता है । जो एक सभ्य समाज के लिए किसी भी स्थिति में सही नहीं है।

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