जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 23 सितम्बर ::

शारदीय नवरात्र चन्द्र मास आश्विन में शरद ऋतु के समय होता है इसलिए इस नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहा जाता है। इस वर्ष नवरात्र 26 सितम्बर से 5 अक्तूबर तक चलेगा। शारदीय नवरात्रि का पर्व पितृपक्ष (श्राद्ध) के बाद ही ( मलमास/खरमास लगने को छोड़कर) प्रारम्भ हो जाता है, पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र शुरू होकर नवमी तिथि तक चलता है। इस वर्ष नवरात्र में माँ भगवती (दूर्गा) का आगमन और प्रस्थान हाथी पर होगा। हाथी पर आगमन और प्रस्थान को शुभ फलदायी माना जाता है।

आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानि 26 सितम्बर को कलश स्थापना अमृत मुहूर्त प्रातः काल 06.11 बजे से 7.15 बजे तक तथा अभिजित मुहूर्त सुबह 11.48से 12.36 तक है।

शारदीय नवरात्र में नौ दिन, माँ नवदूर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। प्रतिपदा को (पहला दिन) माँ शैलपुत्री, दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा, चौथे दिन माँ कुष्मांडा, पांचवे दिन माँ स्कंदमाता, छठे दिन माँ कात्यायनी, सातवें दिन माँ कालरात्रि, आठवें दिन माँ महागौरी और नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की अराधना की जाती है।

देवी सती के रूप में आत्मदाह के बाद, देवी पार्वती ने हिमालय की बेटी के रूप में जन्म लिया था। संस्कृत में शैल का अर्थ पर्वत होता है, जिसके कारण देवी को शैलपुत्री के रूप में जाना जाता था, जो पर्वत की पुत्री थी। इसलिए इस रूप को प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा होती है।

देवी पार्वती ने दक्ष पद्मावती के घर जन्म लिया था। इस रूप में देवी पार्वती एक महान सती थी और उनके अविवाहित रूप को दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है।

भगवान शिव से शादी करने के बाद देवी महागौरी ने आधे चंद्र के साथ अपने माथे को सजाना शुरू कर दिया था, जिसके कारण इस रूप को तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा के रूप में पूजा होती है।

देवी पार्वती सूर्य के केन्द्र के अन्दर रहने के लिए सिद्धिदात्री का रूप घारण की थी ताकि ब्रह्मण्ड को ऊर्जा मुक्त कर सकें। इसलिए इसी रूप को चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा होती है। माँ कुष्मांडा सूर्य के अंदर रहने की शक्ति और क्षमता रखती है इसलिए उनकी शरीर की चमक सूर्य के समान चमकदार है।

माता पार्वती जब भगवान स्कंद (जिन्हें भगवान कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है) की माता बनी, तो इसी रूप को पांचवे दिन माँ स्कंदमाता की पूजा होती है।

देवी पार्वती ने जब हिंसक रूप धारण कर योद्धा देवी के रूप में राक्षस महिषासुर को नष्ट की थी, तो माँ के इस रूप को छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा होती है।

देवी पार्वती ने शुम्भ और निशुम्भ नामक राक्षसों को मारने के लिए बाहरी सुनहरी त्वचा को हटा कर उग्र और सबसे उग्र रूप धारण की तो इस रूप को सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा होती है।

हिन्दु पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह वर्ष की आयु में देवी शैलपुत्री अत्यंत सुुंदर थीं और उन्हें निष्पक्ष रूप से आशीर्वाद दिया गया था। अपने चरम निष्पक्ष रूप के कारण आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा होती है।

ब्रह्मांड की शुरूआत में भगवान रूद्र ने सृष्टि के लिए आदि- पराशक्ति की पूजा की थी। ऐसा माना जाता है कि देवी आदि-
पराशक्ति का कोई रूप नहीं था। शक्ति की सर्वोच्च देवी आदि-
पराशक्ति, भगवान शिव के बाएं आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुई थी। इसलिए इसी रूप को नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा होती है।
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