नीतीश कुमार का अपना फ़ीडबैक है कि मुस्लिम मतदाता अगर एकजुट होंगे तो उसके जवाब में हिंदू वोटरों का ध्रुवीकरण का लाभ आख़िरकार उनके गठबंधन को ही मिलेगा.

जनपथ न्यूज़ पटना: बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के सुप्रीमो नीतीश कुमार क्या एनपीआर और नागरिक क़ानून पर अपनी चुप्पी तोड़ेंगे? नीतीश ने 19 जनवरी के पहले कहा था कि वो उस दिन अपने मानव श्रृंखला के बाद नए नागरिक क़ानून, एनपीआर की नई प्रश्नावली पर अपनी राय रखेंगे. लेकिन पिछले एक हफ़्ते से उनकी चुप्पी के बाद माना जा रहा है कि फ़िलहाल दिल्ली चुनाव के परिणाम आने तक वो मौन ही रहेंगे. हालांकि पार्टी के सभी विधायक, सांसदों और पदाधिकारियों की एक बैठक मंगलवार को उन्होंने बुलायी है. लेकिन माना जा रहा है कि वहां शत प्रतिशत लोग उनके स्टैंड का समर्थन करेंगे. पार्टी के नेताओं का कहना है कि नागरिक क़ानून पर वो अपने समर्थन के स्टैंड से पीछे नहीं हटेंगे भले उनका भी आकलन है कि अब पसमांदा मुसलमानों का जो वोटबैंक उन्होंने बनाया था वो उनके समर्थन में नहीं रहा. लेकिन उनका तर्क है कि ट्रिपल तलाक़ और धारा 370 पर केंद्र सरकार के क़दम के ख़िलाफ़ स्टैंड लेने के बावजूद बिहार में हुए उप चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने उनके उम्‍मीदवारों को वोट नहीं दिया. इसलिए अब इस अनुभव के आधार पर अपने स्टैंड पर पुनर्विचार करना चुनावी वर्ष में उचित नहीं होगा.

नीतीश कुमार का अपना फ़ीडबैक है कि मुस्लिम मतदाता अगर एकजुट होंगे तो उसके जवाब में हिंदू वोटरों का ध्रुवीकरण का लाभ आख़िरकार उनके गठबंधन को ही मिलेगा. लेकिन अगर नीतीश दिल्ली चुनाव के परिणाम आने तक एनपीआर की नई प्रश्नावली पर मुंह बंद रखेंगे तो उसके पीछे तर्क या दिया जा रहा है कि फ़िलहाल अगर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की तरह सार्वजनिक रूप से इस प्रश्नावली को उन्होंने ग़लत बताया तो दिल्ली में भाजपा के परंपरागत वोटर के ग़ुस्से का सामना उनकी पार्टी के उम्‍मीदवारों को करना पड़ सकता है.
नीतीश ऐसी राजनीतिक ग़लती शायद नहीं करेंगे. भाजपा चाहती है कि वो प्रचार करने आएं और जो नीतीश झारखंड के चुनाव में किसी पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार करने नहीं गये, अगर वो दिल्ली जाते हैं इसका मतलब है गठबंधन धर्म का निर्वाह कर रहे हैं.

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