जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 21 अक्टूबर ::
नवरात्रि के पांचवे दिन माँ स्कंदमाता की पूजा होती है। मान्यता है कि माँ स्कंदमाता भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति कर मोक्ष के द्वार खोलती है। माँ स्कंदमाता का स्वरुप मन को मोहने वाला है। स्कंद का अर्थ है कुमार कार्तिकेय अर्थात माता पार्वती और भगवान शिव के जेष्ठ पुत्र कार्तिकय।
माँ आपनी चार भुजाओं में से दो हाथों में कमल का फूल, एक हाथ में बालरूप में बैठे स्कंद जी ( पुत्र कार्तिकेय), दूसरे हाथ में तीर है और कमल के आसन पर विराजमान है। इसीलिए माँ को पद्मासना देवी के नाम से भी जाना जाता है। सिंह माँ का वाहन है। स्कंद जी की माँ होने के कारण माता की पांचवें स्वरुप स्कन्दमाता के रुप में आराधना की जाती है।
शास्त्रों में माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण माँ का उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय होने के साथ ही, भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। माँ स्कंदमाता की कृपा से उपासक को संतान सुख प्राप्त होता है।
माना जाता है कि कार्तिकेय देवताओं का सेनापति है और माता को अपने पुत्र (स्कंद) से अत्यधिक प्रेम है, इसलिए माँ को स्नेह और ममता की देवी कहा जाता है।
पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता अपने मूढ़ भक्त को भी ज्ञानी बना देती है।
माँ स्कंदमाता माता का मंत्र है:-
(1) सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
(2) दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु।
(3) या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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