जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 20 अक्टूबर :: नवरात्र-पूजन के चौथे दिन माँ कुष्माण्डा के स्वरूप की उपासना की जाती है। माँ कुष्मांडा की आठ भुजाएँ हैं और माँ अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। माँ के हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। माँ के आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। माँ का वाहन सिंह है।
माँ कुष्माण्डा के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना करने से साधक का ‘अनाहत’ चक्र अत्यंत पवित्र और अचंचल मन में स्थिरता आती है।
माँ कुष्माण्डा के मंत्र है :-
(1) या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
(2) वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
(3) दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
(4) जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं हुआ था, तब माँ कुष्मांडा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसलिए माँ कुष्मांडा, सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। माँ का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। माँ कुष्मांडा के शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। माँ की तेज और प्रकाश से दशों दिशाएँ प्रकाशित होती है। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज माँ की छाया कहा जाता है।

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