जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 22 अक्टूबर ::
नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा होती है। माँ कात्यायनी दानवों और पापियों का नाश करने वाली माँ हैं। माँ की उपासना संपूर्ण रोगों के नाश और भय मुक्त होने के लिए किया जाता है। महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनके यहां पुत्री के रूप में माँ कात्यायनी उत्पन्न हुई थी और महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी, इसीलिए माँ कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
माँ कात्यायनी को संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, शाकुम्भरी, हेेमावती एवं ईश्वरी नाम से भी जाना जाता हैं। साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित होता है और साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
माँ कात्यायनी की कृपा से विवाह बाधा दूर होती है और रोग एवं भय से भी छुटकारा मिलती हैं । महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्णचतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिन तक ॠषि कात्यायन ने माँ कात्यायनी की पूजा की और माँ कात्यायनी दशमी को महिषासुर का वध किया और महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त की।
माँ कात्यायनी का वाहन सिंह है और इनकी चार भुजाएं हैं। इनके एक हाथ में तलवार है और एक हाथ में पुष्प है।
रोग एवं भय दूर करने के लिए माँ कात्यायनी के निनांकित मंत्र पढ़ने का प्रावधान है:-
‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं कात्यायनी देव्यै नम:’ ।

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