राजद सुप्रीमो का बड़ा गेम प्लान जानिए,दिल्ली में सजेगा दरबार

जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
16 फरवरी 2023

वर्ष 1971 में आई फिल्म ‘जौहर महमूद इन हांगकांग’ में एक गाना है,गाने के बोल हैं- लागल झुलनिया के धक्का… इस गाने को गाहे-बगाहे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव अपनी राजनीतिक सभाओं में गाते रहते हैं। इस गाने को आशा भोसले और उषा मंगेशकर ने गाया था। बिहार के सियासी संदर्भ में एक बार फिर इस गाने की महत्ता बढ़ गई है। लालू प्रसाद की देश वापसी हो चुकी है। सियासी जानकार मानते हैं कि लालू प्रसाद के आगमन का सबसे बड़ा प्रभाव बिहार की राजनीति पर दिखेगा। लालू के आगमन के असरदार होने की चर्चा आगे करेंगे, उससे पहले 2017 के यूपी कैंपेन की ओर आपको लेकर चलते हैं। लालू प्रसाद 2017 में यूपी में अखिलेश यादव के पक्ष में प्रचार कर रहे थे। लालू ने उस मंच से अपना पसंदीदा गाना गाया। ‘लागल झुलनिया के धक्का..बलम कलकत्ता पहुंच गये’। लालू जब भी ये गाना गुनगुनाते हैं। उनका मकसद होता है कि विरोधी को ऐसा धक्का देंगे कि वो बहुत दूर चला जाएगा। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद स्वस्थ्य होकर लालू प्रसाद दिल्ली पहुंच गये हैं। सियासी जानकार मानते हैं कि लालू प्रसाद अपने बिग प्लान पर काम कर रहे हैं। वे बिहार की राजनीति में चल रही पल-पल की घटनाओं की खबर रख रहे हैं।

*सियासी गलियारे में चर्चाओं का बाजार गर्म*

सोनभद्र एक्सप्रेस ने बिहार की राजनीतिक जमीन को टटोलने वाले कई पत्रकारों और सियासी जानकारों से बातचीत की। उस बातचीत के बाद जो बात निकलकर सामने आई उसी को हूबहू हम आपके सामने रख रहे हैं। जानकार मानते हैं कि सिंगापुर से लालू की देश वापसी सियासी दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है। लालू को ये पता है कि बिहार में उनकी पार्टी राजद सरकार की कमान अपने हाथ में लेने को उतावली है। लालू प्रसाद को ये भी पता है कि उनकी अनुपस्थिति में नीतीश की ओर से की गई बिहार में कई पदों पर नियुक्तियां उनके पसंद की नहीं रहीं। लालू को पता है कि ये नियुक्तियां उनकी पार्टी के नेताओं की भी पसंद की नहीं रही। बिहार के पुलिस प्रमुख से लेकर महाधिवक्ता के पद पर हुई नियुक्तों में राजद से सलाह नहीं ली गई। लालू को एक बात साफ स्पष्ट दिख रही है कि नीतीश कुमार ने प्रशासनिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में राजद को खास जगह नहीं दी है। लालू प्रसाद इस बात से अंदर ही अंदर नाराज भी हैं। सियासी जानकारों की मानें, तो बिहार के डीजीपी की नियुक्ति और महाधिवक्ता की नियुक्ति के बाद नीतीश-लालू में एक बार भी बातचीत नहीं हुई है। लालू प्रसाद की पार्टी के कई नेता दबी जुबान में लगातार कहते रहे हैं कि उनकी चलती नहीं है। सरकार बनने के बाद राजद कोटे के मंत्रियों को इग्नोर किया गया। उन्हें उनकी पसंद का अधिकारी नहीं मिला।

*सरकार में तेजस्वी की नहीं चलती है!*

सियासी जानकार मानते हैं कि डेप्यूटी सीएम तेजस्वी यादव जो स्वास्थ्य मंत्री भी हैं। उनके पास सड़क निर्माण विभाग की जिम्मेदारी भी है। तेजस्वी को उनकी पसंद का अधिकारी नहीं मिला है। अभी तक इन दोनों विभाग की जिम्मेदारी नीतीश कुमार के पसंदीदा अधिकारी प्रत्यय अमृत ही संभाल रहे हैं। 1991 बैच के ये आईएएस अधिकारी नीतीश कुमार के खास माने जाते हैं। राजद नेताओं ने तो नाम नहीं छापने की शर्त पर यहां तक कहा कि इस सरकार में तेजस्वी यादव महज पुतला बनकर रह गये हैं। जदयू नेताओं की हर जगह चल रही है। राजद नेताओं को कोई क्षेत्र में भी पूछ नहीं रहा है। सियासी जानकारों की मानें, तो ये सारी जानकारी लालू यादव के पास पहुंच चुकी है। लालू यादव बड़े स्तर पर अपनी पार्टी के नेताओं से सलाह लेने के बाद नीतीश कुमार को दिल्ली भी तलब कर सकते हैं। सूत्रों की मानें, तो नीतीश कुमार समाधान यात्रा खत्म करने के बाद लालू प्रसाद से मिलने दिल्ली रवाना हो सकते हैं। लालू यादव प्रशासनिक व्यवस्था में राजद को हिस्सेदारी नहीं मिलने से पूरी तरह नाराज हैं।

*राजद के नाराज होने की वजह*

जानकारों के मुताबिक बिहार सरकार के कई बोर्ड और निगमों में पद रिक्त हैं। इनमें राजद नेताओं को उम्मीद थी कि उनके लोगों को जगह मिलेगी। ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। एक दो आयोग बने भी तो उसमें जदयू के लोगों को जगह मिली। लालू इस बात से पूरी तरह अवगत हैं। उन्हें ये साफ पता है कि बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ये भूल कर रहे हैं। लालू इन सारी बातों को ध्यान में रखकर प्लानिंग कर रहे हैं। राजद को आरएस भट्टी की नियुक्ति बिल्कुल पसंद नहीं थी। राजद ने पहले से प्लान बना रखा था कि पुलिस महानिदेशक के पद पर वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी आलोक राज को बिठाया जाएगा। सूत्रों की मानें, तो लालू महाधिवक्ता के पद पर बिहार के पूर्व मंत्री पीके शाही को नियुक्त किये जाने से नाराज थे। लालू प्रसाद ने 2013 में ये बयान दिया था कि चारा घोटाला मामले के एक जज निष्पक्ष नहीं थे क्योंकि वे नीतीश के करीबी पीके शाही के रिश्तेदार थे। सियासी सूत्रों की मानें, तो लालू नीतीश कुमार की समाधान यात्रा को भी वन मैन शो बता रहे हैं। लालू के अलावा राजद नेताओं ने साफ प्रतिक्रिया दी है कि उन्हें समाधान यात्रा से बिल्कुल अलग रखा गया है। जानकारों की मानें, तो यात्रा जदयू का शो पीस बनकर रह गया है। ये बात भी लालू को खटक सकती है क्योंकि कहने को बिहार में महागठबंधन की सरकार है। आप अकेले कैसे पूरे बिहार में घूम सकते हैं?

*उपेंद्र कुशवाहा के ‘डील’ वाले बयान पर गंभीर हैं लालू!*

इधर, कई लोगों का ये मानना है कि लालू प्रसाद की देश वापसी से महागठबंधन में नई जान आ गई है। बहुत जल्द जीतनराम मांझी से लेकर बिहार के तमाम बड़े नेता दिल्ली में लालू प्रसाद से मिलने वाले हैं। लालू प्रसाद के आते ही इस अभियान में जुट गये हैं कि नीतीश कुमार विपक्षी एकता की कवायद को संभालें और 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ा जाए। लालू प्रसाद को ये बात पता है कि उनकी पार्टी के सुधाकर सिंह और जदयू के उपेंद्र कुशवाहा इन दिनों बागी रूख अपनाए हुए हैं। लगातार महागठबंधन के सहयोगी जीतनराम मांझी भी नीतीश पर हमला करते रहते हैं। इन सारी चुनौतियों को लालू यादव ‘लागल झुलनिया में धक्का’ की तरह धक्का देकर बाहर करेंगे। जिन चुनौतियों को लालू प्रसाद यादव बाहर करेंगे,उनमें सबसे पहले वो सुधाकर सिंह को कड़ी नसीहत दे सकते हैं। जानकारों की मानें,तो लालू यादव सुधाकर को बुलाकर समझा सकते हैं। लालू उन्हें पार्टी से बाहर नहीं निकाल सकते हैं क्योंकि उनके पिता जगदानंद सिंह नाराज हो जाएंगे। लालू यादव उपेंद्र कुशवाहा के उस बयान को संभालेंगे, जिसमें वे बार-बार राजद से डील होने का आरोप लगा रहे हैं। इन बातों को लेकर लालू प्रसाद ने अपनी बिग प्लानिंग कर ली है। सियासी जानकारों की मानें, तो कांग्रेस को मंत्री पद चाहिए। तेजस्वी यादव इसके लिए तैयार नहीं हैं। बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने चार मंत्री पदों की मांग की है। कहा जा रहा है कि ये कवायद भी राजद की वजह से अटकी हुई है। लालू यादव के आने के बाद इसके सुलझने की बात कही जा रही है।

*चंद्रशेखर को देंगे नसीहत!*

लालू प्रसाद कांग्रोस को समझाने के अलावा लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी पार्टी की एक्टिविटी को तेज करेंगे। वे तेजस्वी यादव सहित राजद नेताओं को पार्टी को एक्शन में आने का निर्देश देंगे। लालू प्रसाद किडनी ट्रांसप्लांट के बाद अभी स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। सूत्रों की मानें, तो वे ऑनलाइन ही ज्यादा बैठक और बातचीत करेंगे। वे किसी भी सभा और नेताओं से मिलने में अपनी परहेज करेंगे। बिहार में महागठबंधन को ठीक-ठाक चलाने के अलावा नीतीश पर भी नकेल कसेंगे। उधर, भाजपा लालू प्रसाद के आगमन से उत्साहित हैं। भाजपा के कई नेताओं ने लालू प्रसाद के आगमन का स्वागत करते हुए कहा है कि वे आ गये हैं, यह खुशी की बात है। जानकारों की मानें, तो उनकी पार्टी के सिद्धांत के मुताबिक बयान देने वाले शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को भी वो नसीहत दे सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक पूरे हिंदू समाज को नाराज करने वाले रामचरितमानस विवाद पर लालू प्रसाद शिक्षा मंत्री को कड़ी फटकार लगा सकते हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि लालू प्रसाद की वापसी का सीधा असर बिहार की सियासत पर बहुत जल्द दिखने लगेगा।

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