नीतीश कुमार तल्ख और अडिग: हर सूरत में सफल होगी शराबबंदी
जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
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5 दिसंबर 2022
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामाजिक सरोकारों से जुड़े सात निश्चयों में से एक शराबबंदी में इतना तो तय है कि बिहार की सूरत जरूर सुधारी है, लेकिन धड़ल्ले से शराब की कालाबाजारी और अवैध शराब की बोतलें बेचने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ती गई है। एक तरफ पुलिस अवैध शराब की खेप पकड़ने के लिए परेशान रहती है, तो दूसरी तरफ बोतलों की आवाजाही बिहार की सीमा के भीतर जारी है और चुपके से लोगों के कंठ तक चली जा रही है।
यह बात दीगर है कि शराबबंदी के बाद सड़कों पर पीने वाले की संख्या लगभग बंद-सी हो गई है। गाली-गलौज देने वालों की संख्या में गिरावट आयी है और शराब पीकर औरतों के साथ मारपीट करने वालों भी कम दिखाई देते हैं, लेकिन शराबबंदी के बाद जो पीने वाले थे, उन्हें दुकानों की लाइनों में खड़े होने के बजाय शराब उनके घर तक डिलीवरी बॉय पहुंचा रहे हैं। भले ही वे इसकी कीमत के रूप में एक का दो वसूल रहे हैं।
शराब हमारी बड़ी सामाजिक समस्या थी। घर-परिवार तबाह हो रहा था। अपने बच्चों को पीने वाला बाप समय पर न तो खाना दे रहा था, न कपड़े दे रहा था और न ही दे पा रहा था पढ़ाई के लिए किताब। कम कमायी वाले पियक्कड़ लोगों की दशा खराब तो थी ही और उनकी कमायी बोतलों में बर्बाद हो रही थी।परिवार को भी दुर्दिन झेलना पड़ रहा था। फिलहाल इसमें कमी तो आयी है।
शराबबंदी को लागू किए छह साल बीत चुके हैं। इन बीते हुए सालों में शराबबंदी की जमकर आलोचना हुई। शराब माफिया से जुड़े नेताओं ने येन-केन-प्रकारेण सरकार पर शराबबंदी को समाप्त करने के लिए दबाव डालना शुरु कर दिया है। बाजाप्ता,इसके लिए विरोधियों की टीम भी गठित की गई। फिर भी नीतीश सरकार अपने निर्णय पर अडिग है और शराबबंदी के माध्यम से बिहार की सूरत बदलने के लिए दृढ़ निश्चय है।
बिहार में पूर्णतः शराब-बंदी की असफलता के पीछे पुलिस महकमा और व्यवस्था को भी दोषी ठहराया जा रहा है और यह बताया जाता है कि इसकी असफलता की बड़ी वजह पुलिस महकमा का गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार और व्यवस्था में तालमेल का अभाव भी है। शराबबंदी को लेकर बढ़ते हुए मुकदमे एवं अन्य कारणों को लेकर पटना हाई कोर्ट ने सरकार को फटकार लगायी।
पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पूर्णेन्दु सिंह की एकल बेंच ने सरकार के ऊपर शराबबंदी को सही तरीके से लागू नहीं कर पाने को लेकर फटकार लगायी और कहा कि बिहार में अपराध बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। इनमें नाबालिगों में ड्रग सेवन, ड्रग्स की तस्करी, वाहन चोरी और अवैध शराब पीने से हुई मौतें भी शामिल हैं। इसके बाद 1अप्रैल 2022 को शराबबंदी कानून में संशोधन के बाद शराब पीने वालों के पास जुर्माना देकर छूटने का विकल्प रखा गया। इस संशोधन के बाद शराब पिए लोग, जो जेल में बंद थे। उन्हें जुर्माना देकर निकलने में आसानी हो गई, साथ ही अब जुर्माना देकर जेल से आसान तरीके से निकलना और भी आसान हो गया। जो जुर्माना नहीं दे सकता है, उन्हें जेल की सजा काटने का विकल्प रखा गया। जिस तरह पुलिस छापामारी के माध्यम से अवैध शराब की खेप पकड़ रही है। उससे तो साफ जाहिर होता है कि बिहार में अवैध शराब की बिक्री के लिए कई स्तर पर माफिया काम कर रहा है और इसके लिए बड़ा नेटवर्क है, जिसका पूरा जाल बिहार में फैला हुआ है और इस अवैध धंधे का माध्यम छोटे-छोटे बच्चों को बनाया गया है।
नाबालिग और निमुछिय किशोर और युवकों को इस अवैध धंधे में जबरदस्त तरीके से प्रवेश दे दिया गया है और सबसे बड़ी बात ये कि जब ये बच्चे कमाई करके अपने घरों तक जाते हैं तो उन्हें अपने मांँ-बाप की भी मदद और सराहना भी मिल जाती है। बड़ी बात यह कि नाबालिक बच्चे पुलिस की शक से बाहर निकल जाते हैं और यदि कोई इस अवैध धंधे में फंँस भी जाता है, तो नाबालिक होने के आधार पर उसे कानून में बहुत सारी छूटेंं मिल जाती हैं।
यदि आंकड़ों की बात करें तो बिहार पुलिस ने इस वर्ष के जनवरी से मई माह तक अलग-अलग जिलों में 13.87 लाख लीटर से अधिक अवैध शराब बरामद की है, जिनमें 8,15,113 लीटर भारतीय निर्मित विदेशी शराब और 5,72,115 लीटर देसी निर्मित शामिल है।
शराब व्यापार परिवहन और खपत से संबंधित 36 हजार से ज्यादा प्राथमिकियाँ दर्ज की गई हैं और 47 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है। शराब की अवैध तस्करी में इस्तेमाल किए गए 5634 से ज्यादा वाहन जप्त कर लिए गए हैं। इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी को लेकर अधिकारियों की बैठक बुलायी और उनसे सवाल किया की शराब के धंधेबाजों को पकड़िएगा या नहीं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने काफी तल्खियत लहजे में कहा कि बिहार में शराबबंदी लागू है, बावजूद कुछ लोग शराब का कारोबार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस पर लगाम लगाने के लिए असली धंधे वालों को पकड़ना जरूरी है और असली धंधेबाज पुलिस की पकड़ में नहीं आते हैं, जबकि अवैध शराब के धंधे से जुड़े गरीब लोग ही ज्यादा पकड़ में आते हैं। उन्होंने पुलिस पर यह भी आरोप लगाया कि कुछ पुलिस वाले भी खुद शराब पीते हैं और बेचते भी हैं उन्होंने इसे किसी भी कीमत पर ठीक नहीं बताया। उन्होंने कहा कि थाने के अंदर लोग क्यों नहीं देखते हैं भीतर की बात पुलिस को नहीं पता रहती है, सबको पता रहती है। फिर भी पुलिस ऐसा करेगी तो हम यही कहेंगे कि यह सब को प्रेरित कर रही है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि यह शपथ लीजिएगा और कीजिएगा नहीं तो यह ठीक नहीं हैं। उन्होंने पूरे पुलिस महकमे से कहा कि शराबबंदी को पूरे तौर पर लागू करवाइए, इसका पालन करवाइए और सही मायने में जो शराब का धंधा करता है उसको पकड़िए। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस अलर्ट रहेगी तो गड़बड़ी नहीं होगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम शराब की बिक्री से टैक्स के रूप में 5000 करोड़ राजस्व प्राप्त करते थे।
उन्होंने शराबबंदी को लेकर जिक्र किया 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले एक कार्यक्रम में महिलाओं ने शराबबंदी की मांग उनके सामने रखी और जब उन्होंने इसकी घोषणा कर दी कि अगली बार चुनाव जीतकर आएंगे तो शराबबंदी लागू जरूर कर देंगे। शराबबंदी लागू होने के बाद 90 प्रतिशत लोग तो ठीक हो गए लेकिन 10 प्रतिशत लोग अभी भी गड़बड़ कर रहे हैं और उन्हीं गड़बड़ लोगों की वजह से बिहार में अवैध शराब की आवाजाही धड़ल्ले से जारी जारी है और लोग इसमें शामिल है।
बिहार में शराबबंदी को पूरी तरह से लागू करवाने के लिए कृत संकल्पित मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पुलिस को शराबबंदी को पूरी तरह से पालन करवाने को कहा है और यह भी कहा कि उन लोगों को पकड़िए, जो सही मायने में शराब के अवैध धंधे से जुड़े हुए हैं। इसका साफ माने था कि शराबबंदी को लेकर उन निरपराध लोगों को किसी भी सूरत में परेशान न किया जाए, जिनका इस धंधे से कोई संबंध ही नहीं है। मुख्यमंत्री ने मीडिया से भी कहा कि शराबबंदी को सफल बनाने में आप लोग अपनी-अपनी मदद कीजिए। उन्होंने कहा कि शराबबंदी लोगों के हित में है और इसमें कोई शक नहीं कि लोग शराब से मुक्ति पा रहे हैं।
शराबबंदी के बाद तरह-तरह के सवाल उठाए गए। यह भी सवाल उठाया गया कि अब राजस्व की प्राप्ति कहाँ से होगी, क्योंकि शराब की बिक्री से सरकार को काफी बड़ी राशि का राजस्व प्राप्त होता था।
इस बारे में नीतीश कुमार ने कहा था कि मैं किसी दूसरे स्रोत से इसकी भरपाई कर लूँगा। दूसरी तरफ विपक्ष के अनेक नेता इस मुहिम के पीछे पल्ला झाड़ पर खड़े हैं और छापेमारी में मिल रही शराब की बोतलों और शराब के खेप को लेकर तरह-तरह के आरोप मढ़ना शुरू कर दिया।
शराबबंदी के खिलाफ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी कहा कि लोग थकान मिटाने के लिए अगर थोड़ी-बहुत इसका सेवन कर लेते हैं, तो इसमें कोई गुनाह नहीं है। कांग्रेस के अनेक नेताओं ने भी सरकार की इस मुहिम की आलोचना की है। जदयू के पुराने नेता जिन्हें पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया, आरसीपी सिंह कहते हैं कि नीतीश कुमार जी जिद छोड़िए और शराबबंदी को खत्म कीजिए। आखिर क्या कारण है कि बिहार में शराबबंदी के खिलाफ नेताओं की एक बड़ी टीम मुखर हो गई है। जदयू के वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा इस मुहिम को असफल बताते हैं, लेकिन यह भी कहते हैं कि इससे लाभ तो हुआ ही है।
असल में शराबबंदी से पूर्व सरकारी राजस्व के इस धंधे से जुड़े लोगों को इसमें काफी कमाई हो रही थी। शराबबंद से पूर्व इस धंधे से वैसे लोग भी हुए जुड़े थे, जिनके पास अन्य स्रोतों से अवैध कमाई थी। बड़े-बड़े माफिया, ठेकेदार, भूमि-दलाल और सफेदपोश नेताओं का इससे सीधा संबंध था और पीने वालों की तादाद भी बड़ी लंबी थी।
सवाल यह है कि कानून बन जाने से लोगों की आदतें नहीं सुधरतीं और यही बात बिहार में ही लागू है। यही कारण है कि अवैध तरीके से यह काला धंधा शराबबंदी के बाद भी धड़ल्ले से चल रहा है और इस धंधे में जो भी हैं, उन्हें चोखा लाभ होता है।
शराबबंदी के बाद शराब के अवैध धंधे से जुड़े लोगों की कमाई गुणात्मक तरीके से बढ़ जाती है, दो दूनी चार, चार दूनी आठ की वृद्धि दर की कमाई देने वाला यह अवैध धंधा आसान हो गया है और इसमें माफिया उन युवाओं का डिलीवरी बाॅय के रूप में इस्तेमाल कर रही है, जो कम उम्र के हैं, अबोध हैं, ऊर्जा और ताकत से भरे पड़े हैं, क्या यह उनका बेजा इस्तेमाल नहीं है। इस पर भी विचार होना लाजमी है।
फिलहाल नीतीश कुमार का यह ड्रीम प्रोजेक्ट भले ही नहीं पूरा होने दिया जा रहा हो और यहांँ की माफिया पूरा नहीं होने दे रही है, परंतु यह ड्रीम प्रोजेक्ट यदि 80 से 90 फ़ीसदी भी सफल है, तो इसे हम पूर्णतः सफल कहेंगे और यदि यह पूर्णः सफल हो जाती है, तो बिहार का एक नया चेहरा सामने आएगा। इसके कारण गरीबी मिटेगी, शिक्षा बढ़ेगी और रोजगार में इजाफा होगा।