नीतीश कुमार ताकते ही रह गए

जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
23 मार्च 2023

राजद नेता सह बिहार के डेप्यूटी सीएम तेजस्वी यादव ने खुद के सीएम बनने की संभावनाओं से इनकार कर एक तीर से दो निशाने साधे हैं। अव्वल तो उन्होंने नीतीश कुमार के पीएम बनने के सपने पर पानी फेर दिया है। दूसरे उन्होंने आरजेडी के उन विधायकों-नेताओं को निराश किया है,जो किसी भी सूरत में सीएम की कुर्सी पर तेजस्वी यादव को देखने के लिए आतुर थे। इनमें तो कई अति उत्साह में समय और अवसर तक बताने लगे थे। आरजेडी विधायक विजय मंडल तो गणना इतनी पक्की थी कि उन्होंने होली के बाद तेजस्वी के राज्यारोहण का समय तक बता दिया था। आरजेडी के ही दूसरे विधायक सुधाकर सिंह भी खुल कर कहते थे कि वह बिहार के सीएम की कुर्सी पर तेजस्वी यादव को ही देखना चाहते हैं। इन दोनों की तरह आरजेडी के समर्थकों-नेताओं का बड़ा तबका भी नीतीश की जगह जितनी जल्दी हो, सीएम की कुर्सी पर तेजस्वी को देखने के लिए आतुर था।

*’नीतीश के पीएम का सपना चकनाचूर’*

सितंबर 2022 में नीतीश कुमार एनडीए छोड़ जब महागठबंधन के साथ आये तो एक स्वर से यह आवाज उठने लगी कि तेजस्वी के लिए बिहार की गद्दी खाली कर वे अब पीएम फेस बन कर विपक्षी दलों को लामबंद करेंगे। इस तरह की बात अधिकतर आरजेडी के नेता ही करते थे। वह भी सामन्य कद के नेता नहीं, बल्कि जगदानंद सिंह जैसे कद्दावर नेता नीतीश को पीएम फेस बताने में मशगूल थे। हालांकि नीतीश कुमार खुद इससे इनकार करते रहे, लेकिन उनके इनकार में खुशी भी झलकती थी। वे हंस कर ही इससे इनकार करते थे। जेडीयू नेता भी उत्साह से आह्लादित थे। केसी त्यागी तो अति उत्साह में यह कहते थकते नहीं थे कि नीतीश पीएम मटेरियल हैं। उनका तर्क होता कि बिहार में नीतीश ने बतौर सीएम नल जल और जल जीवन हरियाली जैसी ऐसी नायाब योजनाएं शुरू कीं, जिन पर बाद में दूसरे राज्यों या केंद्र सरकार ने अमल किया।

*तेजस्वी यादव के इनकार के पीछे मजबूरी या कुछ और?*

राजनीतिक विश्लेषक इस विश्लेषण में उलझे हुए हैं कि तेजस्वी यादव ने सीएम बनने की संभावनाओं पर फिलवक्त विराम क्यों लगा दिया है। भागलपुर का एक छोटा सा पत्रकार होने के नाते बिहार की राजनीति पर पैनी निगाह रखते हुए मेरा मानना है कि तेजस्वी यादव ने अभी सीएम बनने की संभावनाओं से इनकार कर अपना कद और बढ़ा लिया है। वे यह साबित करना चाहते हैं कि नीतीश कुमार के आगे अभी उनकी राजनीतिक परिपक्वता उतनी या ऐसी नहीं है कि महागठबंधन में रहते वे सीएम बनने के लिए खुद को बेचैन बताएं या दिखाएं। तेजस्वी यादव की सियासी उम्र अभी दशक भर की भी नहीं हुई है। यह तेजस्वी का सौभाग्य कहा जाएगा कि उन्हें नीतीश जैसे परिपक्व और लंबे सियासी जीवन वाले व्यक्ति के सानिध्य में रह कर राजनीति का ककहरा सीखने को मिल रहा है। हालांकि मेरे एक सहयोगी ब वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार ठीक इसके उलट सोचते हैं। उनका मानना है कि सीबीआई और ईडी के मामलों में तेजस्वी फिलहाल उलझे हुए हैं। उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। वे नहीं चाहेंगे कि उनकी गति उनके पिता की तरह हो। लालू प्रसाद यादव को सीबीआई के चक्कर में ही जेल जाना पड़ा और कुर्सी अपनी पत्नी को सौंपनी पड़ी थी। तेजस्वी इस स्थिति में पड़ना नहीं चाहते। यही वजह है कि उन्होंने अभी सीएम बनने की हड़बड़ी से साफ-साफ इनकार कर दिया है।

*नीतीश के दोनों हाथ में लड्डू है क्या?*

बहरहाल, तेजस्वी यादव के इनकार की मंशा चाहे जो रही हो, पर इससे नीतीश कुमार को जरूर राहत मिली है। इसलिए कि आरजेडी के जिन नेताओं ने हल्ला बोल अभियान उनके खिलाफ चला रखा था, तेजस्वी के बयान के बाद अब उस पर विराम लग जाएगा। यानी मुख्यमंत्री का अपना कार्यकाल वह अब आसानी से पूरा कर सकेंगे। नीतीश भी यह जानते हैं कि विपक्षी दलों को गोलबंद करना आसान काम नहीं है। इसलिए कि विपक्ष के आधा दर्जन नेता पहले से ही पीएम पद के लिए लार टपका रहे हैं। ऐसे में उनके साथ बिहार के बाहर का शायद ही कोई दल आए। कांग्रेस से उनको उम्मीद थी, लेकिन कांग्रेस अकेले चलने पर अड़ी हुई है।

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