बद से बदतर हो चुकी है बिहार में शिक्षा का सरकारी स्तर
जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
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26 नवम्बर 2022
बिहार कभी अपने विश्वविद्यालयों नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय और ओदंतपुरी विश्वविद्यालय के लिए विश्व भर में विख्यात था। सुदूर दूसरे देशों से उच्च शिक्षा ग्रहण करने इन केंद्रों पर विद्यार्थी प्रायः पैदल चलकर आते थे, लेकिन आज बिहार में शिक्षा की स्थिति दयनीय और भयावह हो चुकी है।
संस्कृत और बौद्ध धर्म के महाविद्वान अश्वघोष को अपने दरबार में ले जाने के लिए कनिष्क ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया था और अश्वघोष को अपना दरबारी विद्वान बनाया था। शायद,विश्व इतिहास की यह पहली, अंतिम और अनोखी घटना थी। फिलहाल, तमाम सरकारी प्रयासों और सुविधाओं के बावजूद, बिहार में शिक्षा की व्यवस्था अत्यंत दयनीय और भयावह है।
बिहार में अन्य राज्यों की भाँति ही शिक्षा की दो धाराएंँ हैं। एक धारा, जिसे हम सरकारी शिक्षा व्यवस्था कहते हैं और दूसरी धारा, जिसे हम प्राइवेट यानी निजी शिक्षा व्यवस्था कहते हैं। आईए सबसे पहले हम चर्चा बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर करते हैं…
बिहार सरकार शिक्षा पर अपने बजट का 20 से 25% खर्च करती है। इसके अंतर्गत तमाम तरह की सुविधाएंँ बच्चों को प्रदान की जाती हैं। इसी में मध्याह्न भोजन की व्यवस्था भी समाहित है लेकिन, शिक्षा बदहाल और असंतोषप्रद है।
यदि हम प्रारंभिक शिक्षा की बात करें तो उसकी स्थिति और भी ज्यादा भयावह है। दुर्भाग्यवश आज बच्चों के हाथों में पढ़ने वाली स्लेट की जगह खाने वाली प्लेट दिखाई पड़ते हैं। सच्चाई यह है कि इन सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में ज्यादातर, वही बच्चे पढ़ते हैं, जिनके मांँ-बाप प्रायः आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं या फिर उस क्षेत्र में कोई प्राइवेट स्कूल नहीं होता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि इन स्कूलों के ज्यादातर शिक्षक बच्चों की पढ़ाई पर कम और नींद लेने में ही अपनी अयोग्यता सिद्ध कर देते हैं, बाकी समय स्कूल में बने रसोई घर पर बीत जाती है। इनमें ज्यादातर शिक्षक योग्यता में बहुत ही कमजोर होते हैं। आरंभिक शिक्षा के माध्यम से बच्चों का आधार तैयार होता है और वही उनकी नींव पड़ती है लेकिन, प्राथमिक विद्यालयों में इस नींव की मजबूती पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
ज्यादातर विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है और बहुत सारे शिक्षक या तो छुट्टी मना रहे होते हैं या फिर दस्तखत करके स्कूल से दूसरे काम पर निकल जाते हैं।बच्चों को क्लास वर्क के रूप में कुछ लिखने को, कुछ रटने को और बाकी शोरगुल करने को छोड़ दिया जाता है। ज्यादातर स्कूलों में प्रबंधकीय व्यवस्था बहुत ही सुस्त और चरमरायी हुई दिखाई देती है। शिक्षा को छोड़कर शिक्षकों को दूसरे काम में लगाए जाने पर भी शिक्षा बाधित होती है और बच्चों का कोर्स शायद ही कभी पूरा हो पाता है।
बिहार के अनेक विद्यालय ऐसे हैं, जिन्हें किसी छोटे से कमरे में चलाया जाता है और अनेक के यदि भवन भी हैं, तो वे जर्जर और मूलभूत सुविधाविहीन हैं। अनेक की छतें अब-तब गिरने की दशा में हैं और दीवारें भय पैदा करती हैं। ज्यादातर इन स्कूलों में प्रायः शौचालय और पेयजल की व्यवस्था का अभाव होता है और यदि होता भी है, तो उसकी साफ-सफाई पर शायद ही शिक्षकों का ध्यान जाता है।
इसके अलावा ज्यादातर स्कूलों में पढ़ाई न होने के कारण, यदि बच्चे नकल भी करते हैं तो शिक्षकों नहीं रोक नहीं पाते और नकल से पास करने वाले विद्यार्थी आगे की पढ़ाई में बिल्कुल कमजोर पड़ जाते हैं और उनकी पढ़ाई बंद हो जाती है या फिर जैसे-तैसे पढ़ाई का कोरम पूरा करते हैं। जिन विद्यार्थियों की नींव कमजोर होती है, वे आगे की पढ़ाई करने में अक्षम होते हैं और तो और प्रतियोगिता परीक्षा में भी वे प्रायः असफल ही घोषित होते हैं। नतीजा, उन्हें बेरोजगार होना पड़ता है या फिर कम मजदूरी में अपने श्रम को बेचना पड़ता है। प्लस टू से लेकर स्नातकोत्तर तक के विद्यार्थियों को बिहार में प्रायः बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ता है। यदि कोई अतिरिक्त स्किल एजुकेशन, उनके पास नहीं है, तो उन्हें मारा-मारा फिरना पड़ता है। हमारी प्रतियोगिता परीक्षा एक तरह से सच मायने में छँटनी प्रक्रिया है। 200-300 पदों के लिए जहांँ 4-5 लाख विद्यार्थी प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लेते हैं। उसे भर्ती प्रक्रिया कहना शायद आश्चर्य होगा और सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार में प्राइवेट सेक्टर और बड़ी-बड़ी कंपनियों का भी अभाव है, जहाँ लोगों को श्रम मिल सके और रोजगार की प्राप्ति हो सके।
इस ओर पिछले कई दशकों से सरकार का ध्यान ही नहीं गया है और यदि छोटे-मोटे उद्योग लगे भी हैं, तो फिर कई कारणों से या तो असफल हुए या फिर उन्हें अपना काम धंधा समेटना पड़ा है। कई बार विदेशी निवेशकों को बिहार में आमंत्रित भी किया गया, लेकिन इसका प्रतिफल अभी तक देखने को नहीं मिला है। शिक्षा कमजोर होने से हमारी आबादी का एक बड़ा भाग अनस्किल्ड लेबर के रूप में दूसरे राज्यों में सस्ती मजदूरी पर काम करने को बाध्य है और इसका खामियाजा उसके संपूर्ण परिवार को गरीबी और अभाव के रूप में झेलना पड़ता है।
बिहार प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षकों की जो भर्ती हुई, कई बार तो मात्र रिजल्ट के आधार पर विद्यालय और महाविद्यालय के रिजल्ट के आधार पर नियुक्त कर लिया गया और कई बार फर्जी तरीके से उनकी बहाली हुई।
यदि शिक्षकों की बहाली प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर होती तो शायद हमारे शिक्षक योग्य और निपुण होते, लेकिन ऐसा राजनीतिक कारणों से नहीं हो सका।
बिहार सरकार यदि प्राथमिक शिक्षा एवं माध्यमिक शिक्षा पर भरपूर ध्यान दे दे और पूरी तरह से कड़ाई का पालन करे, तो हमारी शिक्षा-व्यवस्था सुधर सकती है। शिक्षा के लिए संसाधन बहुत हैं, लेकिन व्यवस्थागत नेटवर्क का अभाव है। हमारी शिक्षा व्यवस्था पर शिक्षा माफिया का भी कहीं-न-कहीं प्रभाव है, जिनका काम होता है गलत तरीके से बहाली करवाना और बदली करवाना। इसके माध्यम से भ्रष्टाचार शिक्षा व्यवस्था में पनपता है और हमारी शिक्षा सुस्त हो जाती है।
एक बच्चा शिक्षा बेहतर तरीके से प्राप्त कर ले, इसके लिए सरकारी संसाधन तो है, लेकिन समय पर उसका सदुपयोग नहीं हो पाता है। बच्चों को सरकार यदि किताब देती है, तो समय पर दे दे। 6 -7 महीना गुजर जाने के बाद बच्चों को किताब मिलती है और ऐसे में उनकी रूचि खत्म हो जाती है और कोर्स भी पूरा नहीं हो पाता है और न ही शिक्षक पूरी तरह से पढ़ा सकते हैं और न ही बच्चे पढ़ सकते हैं। जिसका नतीजा बच्चों की योग्यता पर पड़ता है और वे अगली कक्षा के पाठ्यक्रमों को पूरी तरह से आत्मसात करने में अक्षम हो जाते हैं।
फिलहाल शिक्षा दिवस समारोह के मौके पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ कड़े निर्णय लिए हैं और उन्होंने शिक्षकों को सावधान कर दिया गया कि जो स्कूलों में नहीं पढ़ाएंगे, उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। साथ-ही-साथ उन्होंने एक नई घोषणा की है, जिससे शिक्षण पर बेहतर असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा है कि अच्छा पढ़ाने वाले शिक्षकों का वेतन बढ़ेगा और जो नहीं पढ़ाएंगे, उनको निकाल दिया जाएगा। उन्होंने यह भी घोषणा की है कि खूब पढ़ाने वाले शिक्षकों को ज्यादा तनख्वाह दी जाएगी और जिन पदों पर शिक्षकों की आवश्यकता है, उन पदों पर शिक्षकों की बहाली जल्द निकाली जाएगी।
बिहार में शिक्षा व्यवस्था सुधरे, इसके लिए सरकारी कड़ाई की जरूरत है और इसमें किसी भी प्रकार की मुरव्वत नहीं करनी पड़ेगी। यदि सरकार इस क्षेत्र में भी जीरो टॉलरेंस अपनाती है, तो हमारी शिक्षा व्यवस्था बेहतर हो सकती है और हमारे बच्चे स्किल्ड हो सकते हैं। उन्हें बिहार और बिहार से बाहर रोजगार मिल सकता है और एक बेहतर बिहार का फिर से निर्माण हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि शिक्षा की तरफ सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाए, ताकि हमारे बच्चे कोटा-दिल्ली जैसे शहरों में जाकर के पढ़ाई करने के बजाय भागलपुर, पटना, मुजफ्फरपुर और गया जैसे शहरों में अपनी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करें और सफलता प्राप्त करें। इससे उनके अभिभावकों के पैसे भी बच जाएंगे और लोगों के आर्थिक संसाधनों का भी अनावश्यक दोहन नहीं होगा।