जनपथ न्यूज़
9 मई 2025

गया: बिहार ने पारंपरिक खेल गटका में एक रजत सहित पांच पदक जीतकर सबको चौंका दिया। इसका कारण यह है कि इस खेल में पंजाब औऱ महाराष्ट्र के अलावा कई अन्य राज्यों का वर्चस्व रहा है लेकिन बीते कुछ समय में बिहार राज्य खेल प्राधिकरण (बीएसएसए) ने इस खेल पर पूरा ध्यान दिया है और अपनी मेजबानी में जारी खेलो इंडिया यूथ गेम्स में पांच पदक जीतने के बाद अब बीएसएसए का फोसक एक मजबूत इकोसिस्टम तैयार करने पर है, जो आने वाले समय में राज्य को इस खेल में और बेहतर परिणाम देगा।

यहां बताना जरूरी है कि बिहार की टीम मे शामिल 10 खिलाड़ियों ने छह स्पर्धाओं में पांच पदक जीते। यह बहुत बड़ी सफलता है। हालांकि यह रातों-रात नहीं हुआ। इसके लिए खेलों के आयोजन से महीनों पहले जमीन तैयार की जाने लगी थी और इसके तहत बीएसएसए ने सबसे पहले पंजाब से दो कोचों की अंशकालिक नियुक्ति की। इनकी देखरेख में टीम ने आश्चर्यजनक परिणाम दिए।

भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी बीएसएसए के महानिदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी शंकरण रवींद्रन ने इस इसोसिस्टम पर प्रकाश डालते हुए साई मीडिया से कहा, “गटका हालांकि हमारे लिए चुने गए 14 प्राथमिक खेलों में नहीं है लेकिन बावजूद इसके हम इस खेल के लिए एक इकोसिस्टम तैयार कर रहे हैं। बाहर से कोचों को लाना और बच्चों को इस खेल के गुर सिखाना इसी का हिस्सा है। परिणाम हमारे सामने है और अब हमारा फोकस अपने कोचों को ट्रेन करना है। हमने पहले भी कई खेलों में ऐसा किया। हम रग्बी के लिए दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका से कोच लेकर आए और उसका बहुत सकारात्मक नतीजा निकला।“

बिहार टीम के कोच बलराज सिंह ने कहते हैं कि बिहार सरकार इस खेल के उत्थान को लेकर गंभीर है औऱ इसी के तहत खेलो इंडिया यूथ गेम्स से पहले उनकी तथा जसबीर सिंह की अंशकालिक नियुक्ति हुई। पंजाब के लिए खेल चुके बलराज ने कहा,” बहुत कम समय में बिहार गटका टीम ने शानदार प्रदर्शन किया है। टीम पहले से थी लेकिन इसे एक धागे में पिरोने और एक इकाई के तौर पर खेलने के लिए प्रेरित औऱ प्रशिक्षित करने की जरूरत थी।“

बिहार टीम के प्रदर्शन से गदगद बलराज ने आगे कहा,” हमारा प्रदर्शन शानदार रहा है। बिहार सरकार की तरफ से खेलो इंडिया यूथ गेम्स से एक महीने पहले गया के बिपार्ड में एक महीने का कैंप लगाया गया था। यह कैंप बिहार के बच्चों को प्रापर ट्रेनिंग के लिए लगाया गया था। हमने बच्चों को कैंप में इस खेल के बारे में पूरी जानकारी दी और फुल प्रैक्टिस कराई।“

बलराज ने आगे जोड़ा, “इस कैंप में खेलो इंडिया यूथ गेम्स के लिए चुने गए बच्चों के पूल के अलावा कुछ अतिरिक्त बच्चों को भी शामिल किया गया था। इसका कारण यह था कि टीम निर्माण के लिए अतिरिक्त बच्चों का रहना जरूरी था। अगर किसी बच्चो को कोई दिक्कत आती तो हम दूसरों को मौका दे सकते थे। कैंप के बाद हमने खेलो इंडिया यूथ गेम्स के लिए टीम का चयन किया।“

बिहार आने के बाद सबसे पहले उठाए गए कदम के बारे में पूछे जाने पर बलराज सिंह ने कहा, “जब हम आए थे तब यहां के बच्चों को गटका के बारे मे बहुत कुछ पता नहीं था। वे बस खेल रहे थे लेकिन मेडल कैसे लाना है, यह नहीं पता था। हमने इनका थ्योरी क्लास लिया, इन्हें ट्रेनिंग दी और फिर मैच प्रैक्टिस कराया। बच्चे काफी मेहनती और अनुशाषित हैं और जल्द ही हमारे द्वारा सुझाए गए रास्तों पर चलने लगे।“

बिहार में गटका के फ्यूचर के बारे में बलराज सिंह ने कहा,”मुझे लगता है कि आने वाले समय में बिहार के बच्चे खेलो इंडिया यूथ गेम्स में लगातार सोना जीतेंगे। इसका कारण यह है कि यहां के बच्चे मेहनती हैं और मन लगाकर खेलते हैं। इसलिए यहां के बच्चों को स्वर्ण पदक के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करना होगा। ये बच्चे बहुत आगे जा सकते हैं।“

बलराज ने कहा कि बीएसएसए एक ऐसा इकोसिस्टम तैयार करने की कोशिश कर रहा रहा है, जिसका दीर्घकालिक परिणाम आएगा। उन्होंने कहा,“बीएसएसए की तरफ से हमें अपने तरह से काम करने की छूट है। हमारे पास कई ऐसे बच्चे हैं, जो आगे भी खेलो इंडिया यूथ गेम्स में खेल सकते हैं और जो 18 के हो चुके है, उन्हें हम नेशनल गेम्स या सीनियर नेशनल्स के लिए तैयार करेंगे। साथ ही हम ग्रासरूट स्तर पर भी काम शुरू करेंगे, जिससे कि टैलेंट पूल की कमी ना हो।“

उल्लेखनीय है कि गटका सिख परंपरा में गहराई से जुड़ा हुआ खेल है और इसकी उत्पत्ति छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद जी से मानी जाती है। पहले यह गुरुद्वारों में सीमित था, लेकिन अब खेलो इंडिया जैसे आयोजनों और सरकार के समर्थन के चलते यह अन्य राज्यों में भी लोकप्रिय हो रहा है। खिलाड़ी लकड़ी की छड़ी (जिसे सोटी कहते हैं) और ढाल (फर्री) का उपयोग करते हैं और अधिकतम अंक अर्जित करने की कोशिश करते हैं।

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