महबूबा ने किया जलाभिषेक,ममता ने चंडी पाठ तो राहुल बने जनेऊधारी

जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
20 मार्च 2023

किसी ने कभी कल्पना नहीं की थी कि राजनीति में ऐसे बदले-बदले दिन भी देखने को मिलेंगे। मंदिर की राजनीति पर अब सिर्फ बीजेपी का ही कॉपीराइट नहीं रहा। विपक्षी दलों के नेता भी इस मामले में बीजेपी से पीछे रहना नहीं चाहते। उन्हें इसके नफा-नुकसान का अंदाज बीजेपी को लगातार दो आम चुनावों में मिली सफलता इसकी मूल वजह है। ताजा मामला पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती का है। महबूबा ने शिव मंदिर जाकर का जलाभिषेक किया। ममता बनर्जी ने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान खुद को हिन्दू साबित करने के लिए मंच पर ही चंडी पाठ किया था। राहुल गांधी भी समय-समय पर पूजा-पाठ कर यह जताते रहते हैं कि वे हिन्दू हैं। जनेऊधारी बने राहुल की तस्वीरें भी दिखती हैं। अचानक पिछले आठ साल में ऐसा क्या हो गया कि इफ्तार पार्टियों में टोपी धारण कर दुआ मांगने की अदा पर इतराने वाले नेताओं को मंदिर,देवता और हिन्दुत्व दिखाई देने लगे हैं। सच तो यह है कि बीजेपी की सफलता के पीछे हिन्दुत्व को कारण समझने वाले विपक्ष में बैठे नेता इसे ही जीत का मंत्र-मानक मान बैठे हैं।

*जब महबूबा मुफ्ती बन गयीं शिव भक्त*

पीडीपी की नेता और जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती पूजा-पाठ के लिए पुंछ के नवग्रह मंदिर पहुंचीं। उन्होंने मंगलवार को शिव का जलाभिषेक किया। बीजेपी ने इसे महबूबा का नाटक बताया है तो मुस्लिम बिरादरी ने इस पर घोर आपत्ति जतायी है। देवबंद के मौलाना और इत्तेहाद उलेमा-ए-हिन्द के नेशनल वाइस प्रेसिडेंट मुफ्ती अहमद कासमी ने महबूबा के इस आचरण को इस्लाम के उसूलों के खिलाफ बताया है। बीजेपी का आरोप है कि सीएम रहते जिस महबूबा ने अमरनाथ धाम के लिए जमीन देने से इनकार कर दिया था, अब उनकी शिव भक्ति महज नाटक है। बहरहाल, राजनेताओं के सोच में पिछले सात-आठ साल से अचानक परिवर्तन दिखने लगा है। बीजेपी ने हिन्दुत्व के सहारे देश की सत्ता पर कब्जा किया तो अब सबकी आंखें खुल गयी हैं। कुछ साल पहले तक इस देश में मुस्लिम तुष्टीकरण पर राजनीतिक पार्टियों का जोर होता था। बीजेपी ने साबित कर दिया है कि मुस्लिम तुष्टीकरण ही सत्ता की सीढ़ीं नहीं हो सकती है।

*ममता बनर्जी ने भी किया था चंडी पाठ*

2021 में हुए बंगाल विधानसबा चुनाव के दौरान सीएम ममता बनर्जी ने भी चंडी पाठ किया था। उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि बीजेपी अगर हिन्दुत्व की राजनीति करती है तो वे भी कट्टर हिन्दू हैं। मां दुर्गा की पूजा करती हैं। इसी क्रम में उन्होंने नंदीग्राम में अपनी चुनावी सभा के मंच पर ही चंडी पाठ करना शुरू कर दिया। बीजेपी को जवाब देने और अपनी कुर्सी बचाने के लिए ममता का यह नायाब तरीका माना गया। उसके पहले इफ्तार पार्टी में नमाजी की अदा में उनकी तस्वीरें वायरल होती रही थीं। वैसे भी धार्मिक दृष्टि से चंडी पाठ करना शुभ फलदायी माना जाता है। कार्य सिद्धि, अभय प्राप्ति और त्रिबिध तापों से मुक्ति के लिए चंडी पाठ लोग करते या कराते हैं। हालांकि ममता के साथ ऐसा नहीं हुआ। वह नंदीग्राम से चुनाव हार गयी थीं।

*राहुल गांधी तो मंदिर-मंदिर घूमते ही रहे हैं*

बात अब से पांच साल पहले की है। गुजरात में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे। तब राहुल गांधी कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे। चुनाव प्रचार के दौरान गुजरात में राहुल गांधी मंदिरों में जाते रहे। एक जगह प्रसाद में राहुल को चुनरी मिली तो उन्होंने कहा कि वे इसे अपनी मां और बहन को देंगे। उन दिनों सोनिया गांधी बीमार चल रही थीं। इससे पहले राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर भी गये थे, जिसे लेकर भारी विवाद हुआ था। दावा किया गया था कि मंदिर में बतौर गैर हिंदू राहुल गांधी का नाम दर्ज हुआ था। विवाद बढ़ने पर कांग्रेस की सफाई आयी थी कि राहुल ने विजिटर्स बुक में एंट्री की थी। राहुल ने यह भी साबित करने की कोशिश की कि वे सिर्फ हिंदू ही नहीं, जनेऊधारी भी हैं। गुजरात में चुनाव के दौरान जिन प्रमुख मंदिरों में राहुल दर्शन-पूजन के लिए गये थे, उनमें प्रमुख रूप से मोगलधाम-बावला मंदिर, द्वारकाधीश,कागवड में खोडलधाम,नाडियाड के संतराम मंदिर,पावागढ़ महाकाली,नवसारी में ऊनाई मां के मंदिर,अक्षरधाम मंदिर, बहुचराजी के मंदिर, कबीर मंदिर, चोटिला देवी मंदिर, दासी जीवन मंदिर, राजकोट के जलाराम मंदिर,वलसाड के कृष्णा मंदिर,शंकेश्वर जैन मंदिर, वीर मेघमाया, बादीनाथ मंदिर शामिल थे। राहुल गांधी के इस बदले रूप पर पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था- ‘हमने अच्छे-अच्छों को मंदिर जाने की आदत डलवा दी।‘ राहुल ने भी सफाई दी थी- ‘मैं शिवभक्त हूं और सत्य में विश्वास रखता हूं।‘

*सपा रामायण विरोधी, अखिलेश राम के पुजारी*

समाजवादी पार्टी के सीनियर लीडर स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस के खिलाफ भले ही अभियान छेड़ दिया हो, पर सपा के मुखिया अखिलेश यादव को देवी-देवताओं के प्रति अटूट आस्था है। वे मंदिरों में अक्सर दर्शन-पूजन के लिए जाते रहे हैं। अखिलेश ने कहा भी था कि जो समाजवादियों को हिन्दू विरोधी कहने वाले हैं, वे खुद हिन्दू विरोधी हैं। यह तब का मामला है, जब अखिलेश वाराणसी के संकटमोचन मंदिर गये थे। अपनी पत्नी डिंपल यादव के चुनाव जीतने पर अखिलेश यादव वृंदावन के बांके मंदिर भी सपत्नीक गये थे।

*विपक्षी नेताओं को भाजपा ने सिखाए संस्कार*

गैर भाजपा राजनीतिक दलों के नेताओं को हिन्दुत्व में आस्था जताने का संस्कार दरअसल भाजपा ने दिया है। बीजेपी घोषित तौर पर हिन्दुत्व की रक्षक,धर्म-कर्म में आस्था रखने वाली पार्टी मानी जाती है। कांग्रेस के लंबे समय तक शासन का अंत भाजपा ने राम मंदिर के सहारे ही किया था। मुस्लिम समुदाय के लोग बीजेपी से इसीलिए कटे रहते हैं कि यह मंदिर की पक्षधर और हिन्दुत्व को बढ़ावा देने वाली पार्टी है। लेकिन 2014 और 2019 में बीजेपी को मिली कामयाबी से यह साबित होता है कि भाजपा ने मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का इस देश से खात्मा कर दिया है। अपनी हिन्दुत्ववादी छवि के बावजूद यूपी असेंबली चुनाव में बीजेपी ने मुसलमानों का दिल जीता। मुस्लिम उम्मीदवार अपने गढ़ में मात खा गये थे। यही वजह है कि बीजेपी की देखादेखी अब विपक्षी दलों के नेता भी सजदा और पूजा को समान मानने लगे हैं। सिर्फ सजदा पर यकीन करने वाले भी अब मंदिर जाने से नहीं हिचक रहे। महबूबा मुफ्ती इसका ज्वलंत उदाहरण हैं।

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