जनपथ न्यूज डेस्क
Edited by: राकेश कुमार
18 फरवरी 2023

* नवसामंत लालू-तेजस्वी व नीतीश का ‘आरक्षण’ पर बेजा भ्रम पैदा करने की सााजिश

* राजद-कांग्रेस हमेशा करते रहे हैं अतिपिछड़ों का अपमान

* कांग्रेस से गलबहियां कर नीतीश ने तोड़ा जेपी, कर्पूरी, लोहिया का सपना

पटना: बिहार विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि लालू प्रसाद, तेजस्वी यादव व नीतीश कुमार हमेशा अति पिछड़ों का अपमान करते और धोखा देते रहे हैं। आज कांग्रेस की गोद में बैठ कर सत्ता-सुख भोग रहे राजद और जदयू ने केवल जेपी, कर्पूरी-लोहिया का ही नहीं दलित, पिछड़ा, अतिपिछड़ा, महिला का भी अपमान किया है। कांग्रेस का चरित्र सदैव पिछड़ा, अतिपिछड़ा विरोधी रहा है। यह वही कांग्रेस है जिसने 1953 में पिछड़े वर्गों के लिए गठित काका कालेलकर कमिटी की 1955 में आई रिपोर्ट को 45 वर्षों तक ठंडे बस्ते में रखा, न पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया न पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया।

उन्होंने कहा कि जनता पार्टी की उस सरकार ने 1978 में मंडल कमीशन का गठन किया जिसमें भाजपा के अटल, आडवाणी भी शामिल थे। 1980 में पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए आई मंडल कमीशन की रिपोर्ट को कांग्रेस ने 10 वर्षों तक दबा कर रखा, अन्ततः भाजपा के सहयोग से गठित बीपी सिंह की सरकार ने 1989 में आरक्षण का प्रावधान किया। मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने के बाद पिछड़े वर्ग को केवल सरकारी नौकरियां ही बल्कि विभिन्न शिक्षण संस्थानों में भी आरक्षण के जरिए नामांकन का मौका मिला।

श्री सिन्हा ने कहा कि बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए गठित मुंगेरीलाल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर 1978 में कर्पूरी जी की उस सरकार ने नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की जिसमें जनसंघ की ओर से कैलाश पति मिश्र मंत्री थे। इसके तहत सरकारी नौकरियों में पिछड़ों को एनेक्चर-1 और 2 के तहत आरक्षण लागू किया गया। बाद के दिनों में कर्पूरी जी के आरक्षण फाॅर्मूले का नीतीश कुमार ने उपहास उड़ाया था।

उन्होंने कहा कि बिहार में जब 2005 में (एनडीए) भाजपा के सहयोग से सरकार बनी तब जाकर स्थानीय निकाय के चुनाव में अति पिछड़ों को 20 प्रतिशत आरक्षण दिया गया जबकि राजद-कांग्रेस ने तो 2001 में आरक्षण का प्रावधान किए बिना ही पंचायत और 2002 में नगर निकाय का चुनाव करा दिया था। आज भाजपा की वजह से ही 1800 से ज्यादा अतिपिछड़ा समाज के मुखिया चुन कर आये हैं और अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। राजद-कांग्रेस ने तो 27 वर्षों तक पंचायत का चुनाव नहीं करा कर अतिपिछड़ों की हकमारी किया, जिसके साथ आज नीतीश कुमार हैं। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कर्पूरी-लोहिया के सर्वसमावेशी समाज की परिकल्पना को साकार करने के लिए ही सवर्ण गरीबों को भी 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जिसका राजद ने विरोध किया।

गौरतलब है कि जब 1977 में कर्पूरी जी दोबारा मुख्यमंत्री बने तो एस-एसटी के अलावा ओबीसी के लिए भी आरक्षण लागू करने वाला बिहार देश का पहला सूबा बना। 11 नवंबर 1978 को उन्होंने महिलाओं के लिए तीन (इसमें सभी जातियों की महिलाएं शामिल थीं), ग़रीब सवर्णों के लिए तीन और पिछडों के लिए 20 फीसदी यानी कुल 26 फीसदी आरक्षण की घोषणा की थी। मगर आज उनके नाम पर राजनीति करने वाले नवसामंत लालू व नीतीश ‘आरक्षण’ का बेजा भ्रम पैदा कर समाज को लड़ाने की सााजिश कर रहे हैं। इनकी सोच कर्पूरी-लोहिया के विपरीत है। मगर बिहार की जनता उनके झांसे में आने वाली नहीं है।

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