जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
19 फरवरी 2023

बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर का एक और विवादित बयान सामने आया है। अब उन्होंने अपने को एकलव्य का वंशज घोषित किया है। खुद को एकलव्य का वंशज बताते हुए उन्होंने एकलव्य की नई भूमिका भी गढ़ी है। उनका कहना है कि एकलव्य के वंशज कुर्बानी देते नहीं, लेते हैं। सवाल उठता है कि खुद को एकलव्य का वंशज बताने और एकलव्य की तरह कुर्बानी लेने वाली बातें चंद्रशेखर किसे और क्यों सुना सुना रहे हैं। इसके पीछे उनकी सियासी मंशा होने का अंदाजा तो लगता है, लेकिन कुर्बानी लेने की चेतावनी का निहितार्थ तलाशें तो इसके गंभीर संकेत दिखते है। यह सीधे-सीधे बिहार को फिर से बैकवर्ड-फारवर्ड की लड़ाई के लिए उकसाने वाला बयान है। बैकवर्ड-फारवर्ड की लड़ाई की अच्छी उपज आरजेडी जैसे दल ले चुके हैं। आरजेडी-सपा का यह आजमाया नुस्खा है। ठीक उसी तरह, जैसे बीजेपी ने हिन्दुत्व के जरिये बैकवर्ड-फारवर्ड की नब्बे के दशक में लगी आग को शांत किया था।

*1990 के दौर में तो नहीं जा रही बिहार की राजनीति*

इसे समझने के लिए तीन दशक पहले अतीत में लौटना पड़ेगा। इमरजेंसी के बाद 1977 में जब देश में चुनाव हुए तो मोरारजी देसाई को जनता पार्टी ने पीएम बनाया। मोरारजी देसाई ने समाजवादियों की लंबे अर्से से पिछड़ों के लिए की जा रही सौ में साठ के आरक्षण की मांग को तार्किक बनाने के लिए बीपी मंडल के नेतृत्व में आयोग का गठन किया। आयोग की सिफारिशें तो आ गयीं, लेकिन उन्हें लागू करने से पहले ही मोरारजी देसाई की सरकार चली गयी। वीपी सिंह जब बीजेपी की मदद से पीएम बने तो उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशों के अनुरूप अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। इसके विरोध और समर्थन में सवर्णों-पिछड़ों की जबरदस्त गोलबंदी देश भर में हुई। तोड़फोड़, हत्याएं, आत्महत्याएं और सड़क अवरोध की घटनाएं आम हो गयीं। मंडल समर्थकों में तब के लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव जैसे नेता भी थे, जिन्होंने आरक्षण के समर्थन में पिछड़ों को गोलबंद किया। यह गोलबंदी उनके लिए सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी साबित हुई। बीजेपी ने इससे खफा होकर वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया।

*क्षेत्रीय दलों के उभार का आधार बना आरक्षण विवाद*

आरक्षण विवाद से लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे नेता सत्ता पर काबिज हो गये। सत्ता को बचाये रखने के लिए तब जनता पार्टी से अलग होकर बने जनता दल में भी विभाजन हो गया। लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल बनाया तो जार्ज फर्नांडीस और नीतीश जैसे नेताओं ने समता पार्टी बना ली। आरजेडी ने खुद को मुस्लिम-यादवों की पार्टी के रूप में स्थापित कर लिया। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी (एसपी) और कांशीराम की अगुआई में बीएसपी अस्तित्व में आयीं। अन्य प्रदेशों में भी क्षेत्रीय दल बने। हालांकि बिहार-यूपी में ही इसका आधार आरक्षण विवाद बना।

*बीजेपी ने रोकी आरक्षण की आग,राम का लिया सहारा*

आरक्षण की आग में सुलगते-दहकते देश को बचाने के लिए बीजेपी का नुस्खा काम आया। लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए रथयात्रा निकाली गयी। तब आरक्षण समर्थक इसे कमंडल की राजनीति कहते थे और आरक्षण विरोधी ऐसा कहने वालों को मंडल की राजनीति का हिस्सा बताते थे। यानी मंडल-कमंडल की राजनीति शुरू हुई। लालू यादव ने समस्तीपुर में आडवाणी के रथ को रोका। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बावजूद बीजेपी देश को जोड़ने में कामयाब रही। राम और राम मंदिर के नाम पर पिछड़े भी उसके समर्थक बन गये। समाज में आरक्षण से लगी आग की लपटें कमजोर पड़ गयीं। बीजेपी की सीटें 2 के इकाई अंक से सैकड़ा तक पहुंच गयीं। उसके बाद से बीजेपी का लगातार उभार होता रहा।

*इस बार फिर मंडल की आग भड़काने की हो रही कोशिश*

बिहार में चंद्रशेखर और जगदानंद सिंह जैसे नेता अगर राम, राम मंदिर और रामचरित मानस के खिलाफ बोलते हैं तो इसे सामान्य रूप में नहीं देखा जा सकता। इसलिए कि ठीक इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी बोलना शुरू किया है। बल्कि यह कहें कि वे चंद्रशेखर से इस होड़ में आगे निकलते दिख रहे हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसलिए कि स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी टिप्पणी वापस लेने को राजी नहीं हैं। उनकी टिप्पणी को लेकर साधु-संत भी मुखर होने लगे हैं। लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान हनुमानगढ़ी अयोध्या के महंथ राजू दास और मौर्य में रामचरित मानस के खिलाफ टिप्पणी को लेकर हाथापाई तक हो गई।

*बीजेपी का खेल बिगाड़ने के लिए यह विपक्ष की कवायद है*

अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव में बीजेपी का खेल बिगाड़ने के लिए विपक्ष की रणनीति का यह हिस्सा हो सकता है। विपक्ष को पता है कि धर्म और देवी-देवताओं के सहारे ही बीजेपी पिछड़ों के वोट पर काबिज हो गयी है। इसलिए पहले इन पर ही हमला बोला जाये, जिससे बीजेपी से ओबीसी वोटों को छीना जा सके। रामचरित मानस के रचनाकार का ब्राह्मण होना और शूद्रों को लेकर मानस में कही गयी बात को आज शिद्दत से विपक्ष का रेखांकित करना साफ जाहिर करता है कि सवर्ण जातियों के लोग शूद्र और पिछड़ों के विरोधी हैं। अगर विपक्ष की यह रणनीति कामयाब हो जाती है तो बीजेपी को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। बिहार में जातीय गणना को भी इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए।

*बीजेपी के खिलाफ रोज नये मुद्दे गढ़ने में जुटा है विपक्ष*

बीबीसी की डाक्यूमेंट्री का लोकसभा चुनाव से ठीक साल भर पहले रिलीज होना, हिन्दू आराध्यों के प्रति नफरती बयान, बीबीसी के दफ्तर पर इनकम टैक्स के रेड को इमरजेंसी जैसे हालात से जोड़ना, अमरिकी कंपनी हिंडेनबर्ग की बीजेपी के करीबी बताये जाने वाले भारत के उद्योगपति गौतम अडानी के आर्थिक साम्राज्य का काला चिट्ठा (जिसके सच और झूठ पर अभी तक संशय बना हुआ है) सामने आने को विपक्ष की समवेत कोशिश के रूप में अगर देखा जाये तो यह अजीर्ण की बात नहीं होगी। इसलिए कि इन सबका समय एक ही है। आश्चर्य तो इस बात का भी है कि इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस की तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने भी बीबीसी पर बैन लगाया था। उसके रिपोर्टर मार्क टुली को 24 घंटे के अंदर भारत छोड़ने का सरकार ने आदेश जारी किया था। आज वही कांग्रेस बीबीसी पर इनकम टैक्स विभाग की कार्रवाई को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बता रही है। इंदिरा गांधी की तरफ से थोपी गयी इमरजेंसी में मीडिया के मुंह पर कैसे ताला लगाया गया, इसका एक ही उदाहरण काफी है। कुलदीप नैयर समेत देश के लगभग 200 पत्रकारों को पुलिस ने तब जेल में बंद किया था। बहरहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष अपनी रणनीति में कामयाब होता है या बीजेपी इसे अपनी चालों से ध्वस्त करती है। परिणाम चाहे जो हो, लेकिन इतना तो तय है कि इसका देश के विकास और सहिष्णुता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

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