गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर

नीतीश कुमार वैसे नेता नहीं हैं, जो आवेश में कोई फैसला लेते हैं। उनका हर फैसला नपा तुला और प्लानिंग के तहत होता है। वो चौसर पर पासा फेंकने से पहले 10 बार सोचते हैं और राजनीति के इस शतरंज में किस प्यादे का कैसे इस्तेमाल करना है, वो इसे बखूबी जानते हैं। आप सब को लग रहा होगा कि ये सब आरसीपी सिंह के चक्कर में हुआ तो ऐसा नहीं है। नीतीश कुमार पिछले एक साल से बदले की आग में जल रहे थे और जिसकी बिसात डेढ़ महीने पहले उन्होंने रच दी थी।

*नीतीश समझ चुके थे चाल* दरअसल,बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद ही नीतीश कुमार भाजपा की हर चाल को समझ चुके थे। भाजपा पहले चिराग के जरिए नीतीश कुमार को चुनाव में औकात बता चुकी थी, फिर भी नीतीश चुप थे। क्योंकि मुख्यमंत्री का पद भाजपा ने नीतीश को दिया था।

*वीआईपी की टूट में था संदेश*
नीतीश कुमार तब सजग हो गए थे, जब भाजपा ने मुकेश सहनी की पार्टी के सभी 3 विधायकों को तोड़कर अपनी पार्टी में मिला लिया। इससे उन्हें समझ में आ गया कि भाजपा अपनी सहयोगी पार्टी को भी नहीं छोड़ेगी। इसके साथ ही भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा मिल गया।

*फिर नीतीश ने चली चाल* बिहार विधानसभा में भाजपा डेढ़ महीने पहले तक सबसे बड़ी पार्टी थी। उसने वीआईपी के तीनों विधायकों को शामिल कराया और राजद से ये तमगा छीन लिया। नीतीश को यहीं से चाल समझ में आ गई थी, उन्होंने विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को पीछे छोड़ने के लिए राजद में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के चार विधायकों को शामिल करा दिया और ऐसा करके नई सरकार का दावा करने के भाजपा के मंसूबे पर पानी फिर गया।

*ऑपरेशन आरसीपी सिंह* आरसीपी सिंह का झुकाव भाजपा की तरफ था। ऐसे में नीतीश ने उन्हें केंद्रीय मंत्री पद से हटाने के लिए राज्यसभा नहीं भेजा और आरसीपी सिंह को नोटिस देकर 9 साल में 58 प्लॉट खरीदने का आरोप लगाया और इसमें जवाब मांगा और मजबूरन आरसीपी सिंह को इस्तीफा देना पड़ा।

*सोनिया को साधा*
नीतीश को डर था कि कहीं कांग्रेस के विधायक टूट कर भाजपा में न जा मिलें इसलिए उन्होंने सोनिया गांधी को फोन करके सजग किया और महागठबंधन में शामिल होने को लेकर बात की।

*भाजपा कर रही थी बदनाम* नीतीश कुमार राजद की इफ्तार पार्टी में शामिल हुए। लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी और उनकी पार्टी राजद से बढ़ती नीतीश की नजदीकी से भाजपा डर गई थी। जिसके बाद से भाजपा नेताओं ने सुशासन को लेकर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए गए। भाजपा अपने दम पर सरकार बनाने की तैयारी में जुट गई।

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