जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
11 मार्च 2022

बिहार के सीएम नीतीश कुमार भले ही आरजेडी के सहयोग से सरकार चला रहे हैं, लेकिन उनका मन अब भी कहीं और अटका दिखाई पड़ता है। इसके दो ताजा उदाहरण हाल के दिनों में देखने को मिले हैं। पहला यह कि जब होली से ठीक पहले सीबीआई ने राबड़ी देवी के पटना और मीसा भारती के दिल्ली आवास पर पहुंच कर उनसे पूछताछ की तो नीतीश कुमार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी। उन्होंने एकदम चुप्पी साध ली। दूसरा यह कि जब 9 विपक्षी नेताओं ने केंद्रीय जांच एजेंसियों की एकतरफा कार्रवाई पर पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा तो उस पर दस्तखत करने वालों में उनके डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव तो शामिल रहे, लेकिन नीतीश ने इससे परहेज किया। यह भी संभव है कि नीतीश को विपक्षी नेताओं ने पूछा ही न हो।

*कहीं आरजेडी से जेडीयू के मनमुटाव का संकेत तो नहीं*

राजनीतिक हलकों में अब यह सवाल उठने लगा है कि कहीं आरजेडी से नीतीश के मनुमटाव का यह संकेत तो नहीं है। इसलिए कि 2017 में भी जब तेजस्वी यादव पर सीबीआई ने संपत्ति अर्जित करने के मामले में केस दर्ज किया था तो नीतीश ने झटके में महागठबंधन से रिश्ते तोड़ लिये थे। नीतीश कहते भी रहे हैं कि करप्शन से वह कोई समझौता नहीं करते। वह न किसी को बचाते हैं और न फंसाते हैं। मनमुटाव का दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि विपक्षी दलों के बीच तेजस्वी यादव की पूछ जिस तरह बढ़ रही है, वह नीतीश कुमार को नागवार गुजर रही हो।

*बढ़ने लगा है तेजस्वी का कद, नीतीश कुमार पीछे छूट रहे*

अब तो तेजस्वी यादव का कद नीतीश कुमार से बड़ा होता दिख भी रहा है। विपक्षी दलों के नेता तेजस्वी यादव को पूछ रहे हैं। उन्हें अपने कार्यक्रमों में बुला रहे हैं, लेकिन नीतीश को कोई घास नहीं डाल रहा है। महागठबंधन के साथ जब नीतीश आये तो उन्होंने कहा था कि विपक्षी दलों को एकजुट करने के अभियान में अब वे लगेंगे, ताकि बीजेपी को सत्ता से बेदखल किया जा सके। लेकिन हाल के दिनों में कुछ ऐसे संकेत मिले हैं कि नीतीश कुमार से यह काम संभव नहीं। बिहार में 2022 की आखिरी तिमाही में जब नीतीश महागठबंधन के साथ दोबारा आये तो तेलंगाना के सीएम केसी राव और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे तेजस्वी से मिलने पटना पहुंचे थे। यह अलग बात है कि केसी राव ने तेजस्वी के अलावा नीतीश कुमार से भी मुलाकात की थी। तेजस्वी यादव भी विपक्षी दलों के नेताओं से मिलते रहे हैं। उनके कार्यक्रमों में शरीक होते रहे हैं। नीतीश कुमार के साथ ऐसा नहीं हो रहा है। संभव है कि नीतीश की पलटी मार राजनीति से सभी ऊब गये हों। उन्हें अब भी उन पर भरोसा नहीं हो रहा।

*पीएम को लिखे विपक्षी नेताओं के पत्र में भी नीतीश नहीं*

केंद्रीय जांच एजेंसियों की सिर्फ विपक्षी नेताओं के खिलाफ एक्शन को लेकर पीएम को पत्र लिखने वाले नेताओं में अरविंद केजरीवाल, के.चंद्रशेखर राव, ममता बनर्जी, भगवंत मान, तेजस्वी यादव, फारूक अब्दुल्ला, शरद पवार, उद्धव ठाकरे और अखिलेश यादव तो शामिल रहे, लेकिन नीतीश को किसी ने भाव नहीं दिया। यह अलग बात है कि पत्र लिखने वाले नेता खुद या उनकी पार्टी के दूसरे नेता केंद्रीय जांच एजेंसियों का सामना कर रहे हैं। केसी राव की बेटी के खिलाफ जांच चल रही है। ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी के अलावा दर्जन भर से अधिक टीएमसी के नेता केंद्रीय जांच एजेंसियों का सामना कर रहे हैं। कुछ तो जेल भी भेजे जा चुके हैं। आम आदमी पार्टी के दो मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन भी जेल में हैं। विपक्षी नेताओं में नीतीश कुमार ही अब तक बेदाग बचे हुए हैं।

*सीबीआई रेड पर नीतीश के बजाय ललन सिंह सामने आए*
लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और उनकी दो बेटियों के खिलाफ सीबीआई ने नौकरी के लिए जमीन मामले में कार्रवाई शुरू की है। 15 साल पहले 2008 में लालू यादव यूपीए सरकार में रेल मंत्री थे। तब उन पर रेलवे में नौकरी देने के लिए जमीन लेने का आरोप जेडीयू के वर्तमान अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने ही लगाया था। उन्होंने ही सीबीआई को सारे दस्तावेज मुहैया कराये थे। सीबीआई ने डेढ़ दशक बाद जब इस मामले में कार्रवाई शुरू की है तो अब ललन सिंह अब इसे बदले की कार्रवाई बता रहे हैं। आश्चर्य यह कि नीतीश कुमार की कोई प्रतिक्रिया इस पर नहीं आयी है। अब ललन सिंह कह रहे कि लालू यादव के बाद जब ममता बनर्जी रेल मंत्री बनी थीं तो उन्होंने इस मामले की जांच करायी थी। उसमें लालू को क्लीन चिट मिल गयी थी। इतने दिनों बाद सीबीआई इस मुद्दे को इसलिए उठा रही है क्योंकि बिहार में महागठबंधन की सरकार बन गयी है।

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