*नीतीश-तेजस्वी में बढ़ सकती है..??*
जनपथ न्यूज़ डेस्क
गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
9 जुलाई 2023
नीतीश कुमार को भारतीय राजनीति का सबसे अप्रत्याशित नेता माना जाता है। वो कब-कहाँ और कैसे यू-टर्न लेंगे, किसी को पता नहीं होता। इस वक्त तेजस्वी यादव के खिलाफ लैंड फॉर जॉब मामले में जिस तरह से चार्जशीट हुआ है, ठीक ऐसा ही एक चार्जशीट 2017 में भी उनके खिलाफ हुआ था, जिसके बाद नीतीश कुमार ने गठबंधन तोड़कर एनडीए का दामन थाम लिया था। तो ऐसे में सवाल यह है कि क्या मिस्टर क्लीन वाली अपनी छवि को लेकर हमेशा संजीदा रहने वाले नीतीश कुमार इस बार भी कुछ ऐसा ही करेंगे। बहरहाल, इस सवाल को यहीं छोड़ते हैं और बिहार की अन्य राजनीतिक घटनाक्रम को समझते हैं।
*बिहार के शिक्षा विभाग में दंगल*
बिहार के एक चर्चित आईएएस अधिकारी है, केके पाठक।कुछ महीनों पहले अपने मातहत अधिकारियों को गालीनुमा शब्दों से नवाजे जाने के कारण सुर्ख़ियों में आए थे। इस बार शिक्षा विभाग का अतिरिक्त मुख्य सचिव बने हैं और आते ही शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया में डोमिसाइल नीति को बदल दिया है। पहले शिक्षकों की नियुक्ति सिर्फ बिहार के मूल निवासियों के लिए ही थी, लेकिन अब इसे कैबिनेट से बदलवा कर अन्य राज्यों के लोगों के लिए भी लागू करवा दिया गया है। इस बात से शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर काफी खफा है और बाकायदा एक पत्र लिखवा कर अपना विरोध जता चुके है और इस पत्र के बाद से आरजेडी-जेडीयू के नेताओं के बीच ज़ुबानी जंग तेज हो गयी है।
इस मसले पर राजनीतिक ज़ुबानी जंग से इतर एक गहरा अर्थ भी छुपा हुआ है। शिक्षक नियुक्ति मामला जितना नीतीश कुमार के लिए महत्वपूर्ण है, उतना ही तेजस्वी यादव के लिए भी है। तेजस्वी यादव ने ही 10 लाख सरकारी नौकरी की घोषणा की थी। नीतीश कुमार भले खुद को राष्ट्रीय फलक पर देखने के लिए बेचैन हों लेकिन तेजस्वी का सारा फोकस बिहार है और होना भी चाहिए। ऐसे में डोमिसाइल नीति में जो बदलाव हुआ है, उसमें तेजस्वी यादव की क्या भूमिका रही है, उनकी सहमति कितनी रही है, यह बात सवालों के घेरे में है।
शिक्षा मंत्री के बयान से तो साफ़ हो जाता है कि आरजेडी कम से कम इस नए डोमिसाइल नीति से खुश नहीं हैं, क्योंकि इसका सीधा असर उसके वोट बैंक पर भी पडेगा। अब तक भले इस मुद्दे पर तेजस्वी यादव ने खुल कर कुछ नहीं कहा हो, लेकिन इस मुद्दे का जिस तेजी से विरोध हो रहा है और राजनीतिक स्पेस में भी आगे यह मुद्दा उठेगा, तब तेजस्वी यादव को खुल कर स्टैंड लेना ही होगा और वह स्टैंड यही होगा कि मौजूदा डोमोसाइल नीति को हटाया जाए। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि शिक्षक भर्ती मुद्दा आरजेडी-जेडीयू के रिश्तों के बीच अगर दरार पैदा कर दे तो कोइ आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
*चिराग पासवान-जीतन राम मांझी का इशारा*
हाल ही में चिराग पासवान ने एक इंटरव्यू में साफ़ कह दिया है कि बीजेपी को सोचना है कि उसे नीतीश चाहिए या 3-4 क्षमतावान भागीदार। यानी, चिराग भी यह मान रहे हैं कि नीतीश कुमार कभी भी कुछ भी कर सकते हैं और अगर ऐसा कुछ होता है तो फिर एनडीए में उनके लिए कुछ ख़ास बचेगा नहीं।लेकिन सबसे गभीर इशारा आ रहा है बीजेपी के नए साझेदार हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा यानी हम की तरफ से। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के नेता और पूर्व मंत्री संतोष सुमन के मुताबिक़, जेडीयू के महागठबंधन में शामिल होते वक्त ही यह तय हो गया था कि जितनी जल्दी हो, नीतीश कुमार विपक्षी एकता की बागडोर संभालें और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी किस्मत आजमाएं। इस डील के अनुसार आरजेडी ने नीतीश को सीएम तो बना दिया, लेकिन जब नीतीश के सामने अपना वादा पूरा करने का वक्त आया तो वो आनाकानी कर रहे हैं। इसलिए आरजेडी ने नीतीश को अब अल्टीमेटम दिया है कि जल्द से जल्द तेजस्वी को सीएम बनाएं और अपने को विपक्षी एकता की कवायद में लगाएं।
*लालू यादव की सक्रियता के मायने*
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के नेता संतोष सुमन की कहानी पूरी फ़िल्मी भी नहीं है। इस बात के आसार शुरू से ही थे कि तेजस्वी बिहार संभालेंगे और नीतीश केंद्र की राजनीति करेंगे। खुद नीतीश कुमार ने यह कह कर सबको चौंका दिया था कि 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में होगा। इसके बाद से उपेन्द्र कुशवाहा जैसे उनके भरोसेमंद सहयोगियों ने उनका साथ भी छोड़ दिया था। इस वक्त बीमारी से उबरने के बाद लालू प्रसाद यादव राजनीतिक रूप से काफी सक्रीय दिख रहे है और लालू की राजनैतिक शैली से पार पाना नीतीश कुमार के लिए भी आसान नहीं होगा।सीधा सा गणित था, जिसके बारे हम नेता संतोष सुमना बता रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार 24 की लड़ाई तक खुद को सीएम बनाए रखना चाहते हैं, चाहे जो हो जाए। इन सबके बीच लालू प्रसाद यादव कोइ रिस्क नहीं लेना चाहेंगे। वे चाहेंगे कि अब नीतीश कुमार दिल्ली की तरफ कूच करें और बिहार तेजस्वी के हवाले हो। अब ऐसे में टूट-फूट की आशंका, बिहार में महाराष्ट्र दोहराए जाने की अटकलें अगर लगाई जा रही है तो यह सब निराधार नहीं है। लेकिन, यह भी याद रखना चाहिए कि लालू प्रसाद यादव ही इस वक्त अकेले ऐसे नेता हैं, जो सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई के नाम पर बड़ी से बड़ी कुर्बानी भी देने की कुव्वत रखते हैं।