नीतीश ही नहीं बल्कि जदयू को भी भतीजा है मंजूर
जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
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23 दिसंबर 2022
भागलपुर : बिहार में महागठबंधन के साथ सरकार बनाते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद को राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय कर लिया। दिल्ली दौरे पर गए और विपक्षी एकता की कवायद शुरू की। उसके बाद बिहार लौटे और सार्वजनिक मंच से तेजस्वी को आगे बढ़ाने की बात की। इतना ही नहीं, उन्होंने यहां तक कहा कि 2025 में बिहार की कमान तेजस्वी के हाथों में होगी। आगे की कहानी बताने से पहले हम आपको लालू यादव के दो बयानों से रूबरू करवाना चाहते हैं।
तारीख 28 सितंबर 2022, दिन-बुधवार, स्थान- नई दिल्ली। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद चुनाव के लिए नामांकन करने के बाद लालू यादव ने पत्रकारों से बातचीत की। लालू यादव से पत्रकारों ने पूछा कि क्या वे चाहते हैं कि तेजस्वी यादव बिहार संभालें, तो लालू ने कहा-बिल्कुल। उससे पहले जब उनसे पूछा गया कि क्या नीतीश कुमार को लाल किले पर झंडा फहराने दिल्ली भेजेंगे। लालू यादव ने कहा कि इसमें समय लगेगा, इंतजार कीजिए। आप इन दोनों बयानों के आईने में आप बिहार की वर्तमान सियासी चर्चा का मूल तत्व खोज सकते हैं। लालू ने नीतीश के प्रधानमंत्री के सवाल पर कहा कि इंतजार कीजिए और तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने के सवाल पर कहा कि- बिल्कुल।
बिहार में आने वाला है सियासी तूफान : अब आगे बढ़ते हैं। बिहार में बड़ा सियासी उलफेटर क्यों होगा? इसके पीछे क्या खिचड़ी पक रही है? नीतीश कुमार के साथ ऐसी परिस्थिति क्यों बनी? नीतीश कुमार किसके सियासी शिकार बन गए? इन तमाम सवालों के साथ बिहार की सियासत में होने वाली घटनाक्रम पर अपनी बेबाक बात बताते हुए मैं कहना चाहूंगा कि ये सर्वविदित है कि बीजेपी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ गेम कर दिया। उसके बाद नीतीश कुमार राजद के साथ चले आए। अब ये समझना होगा कि आरजेडी भी वो राजद नहीं है, जिससे नीतीश कुमार पहली दफा जुड़े थे। आरजेडी ने इस बार नीतीश कुमार को पहले की तरह स्वीकार नहीं किया है। इस बार आरजेडी ने भी चक्रव्यूह रचा है। बीजेपी नीतीश कुमार को बिहार में पूरी तरह जमींदोज करने की साजिश पहले ही रच चुकी है। अब उसमें आरजेडी भी शामिल है। इस बार नीतीश कुमार की वापसी का रास्ता बंद है। ये बीजेपी में जा नहीं सकते। अब ये राजद के चक्रव्यूह में फंस चुके हैं। इनके पास एक ही विकल्प है, या तो ये कुर्सी छोड़ सकते हैं या फिर आरजेडी की ट्यून पर डांस कर सकते हैं। इस बार आरजेडी ने जो स्क्रिप्ट लिखी है, उसमें वो दो बातें कर रही है। पहली बात जो आरजेडी की तरफ से की जा रही है कि नीतीश जी आप तो पीएम मेटेरियल हैं। आप दिल्ली जाइए और विपक्ष को संगठित कीजिए। क्योंकि आरजेडी को पता है कि नीतीश कुमार कोई पीएम मैटेरियल नहीं हैं।
राजद को वक्त का इंतजार : आप याद कीजिए दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में लालू प्रसाद यादव ने तेजस्वी के मुख्यमंत्री की बात को जोरदार तरीके से रखी थी। नीतीश कुमार के पीएम बनने वाली बात पर उस उत्साह के साथ जवाब नहीं दिया। अब लगातार राजद की ओर से नीतीश को राष्ट्रीय नेता बताया जा रहा है। उसका एक ही लक्ष्य है। भई, आप बिहार की कुर्सी छोड़िए। तेजस्वी को आने दीजिए। बिहार में राजद चाह रही है कि शांतिपूर्वक तरीके से तेजस्वी को सत्ता मिल जाए, वरना देर होने पर ये लोग जब चाहें, तब तख्ता पलट कर सकते हैं। महागठबंधन के सभी सहयोगी तेजस्वी यादव के साथ हैं। उनके पार नंबर गेम है। अगर नीतीश कुमार प्यार से कुर्सी नहीं छोड़ते हैं, तो राजद की ये योजना भी है कि तोड़फोड़ कर तेजस्वी को सत्तासीन किया जाए। हालांकि, राजद इसे बचकर निकलना चाह रही है, ताकि ये काम नहीं करना पड़े। राजद ने अपनी प्राथमिकता में रखा है कि नीतीश कुमार को हमलोग पीएम मैटेरियल बोलेंगे। राजद की ओर से जदयू पर विलय का दवाब भी डाला जा रहा है। विलय का प्रस्ताव जदयू की तरफ से नहीं है।
राजद का प्लान बी तैयार : राजद की ओर से नीतीश को ये कहा जा रहा है कि हम आपकी विपक्षी एकता को सपोर्ट उसी स्थिति में करेंगे, जब आप हमारे साथ विलय करेंगे। राजद का प्रस्ताव है कि विलय के बाद हमलोग 40 सीटों पर लड़ेंगे। जितनी भी सीटें जीतेंगे, वो सारी सीटें आपके पीछे रहेंगी यानि नीतीश कुमार के सपोर्ट में। इसके अलावा राजद ये भी मानकर चल रही है कि नीतीश कुमार यदि इन प्रस्तावों पर विचार नहीं करते हैं, तो राजद प्लान बी के तहत बिहार में बड़ा सियासी उलटफेर करने वाली है। राजद के प्लान बी सक्सेस करने के लिए उसे बैक से सपोर्ट भी मिल रहा है। बिहार में ये बात तय हो चुकी है कि नीतीश कुमार को जाना है। नीतीश कुमार के अंदर पीएम बनने की महात्वाकांक्षा है। उसी का कारण है कि वे 2014 में पहली बार बीजेपी से अलग हुए। लेकिन जदयू की बिहार में जमीनी हकीकत नीतीश की महात्वाकांक्षा को सपोर्ट नहीं करती है। 2014 में जब वे अकेले लोकसभा का चुनाव लड़े, तो मात्र उन्हें दो सीटें मिलीं और 15.50 प्रतिशत वोट मिले। अपने दम पर नीतीश को कभी भी 22 फीसदी वोट नहीं मिला। उन्हें वोट प्रतिशत तब ज्यादा मिलती है,जब वे गठबंधन में रहते हैं। नीतीश की अपनी स्ट्रेंथ बिहार में खत्म हो चुकी है। उनके सपोर्ट का अति-पिछड़ा और मुस्लिम वोट भी खिसक चुका है। कुल मिलाकर मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि बिहार में बहुत जल्द बड़ा उलटफेर होने वाला है।
लालू के बिहार आते ही बड़ा सियासी खेल : मैं इन दिनों महागठबंधन की सियासत पर कड़ी नजर रखा हुआ हूं। मैं देख व समझ पा रहा हूं कि बिहार की राजनीति से नीतीश कुमार की छुट्टी होने वाली है। बिहार में माइनस नीतीश सरकार के लिए परिस्थितियां पक चुकी हैं। तेजस्वी यादव को 119 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। अब तेजस्वी को मात्र तीन विधायक चाहिए, जो वो किसी भी क्षण ले लेंगे। नीतीश कुमार तेजस्वी को प्रलोभन दे देकर रोके हुए हैं। नीतीश कुमार बार-बार तेजस्वी को कमान देने की बात इसलिए करते हैं कि वे डरे हुए हैं। उनके डर का कारण ये है कि तेजस्वी माइनस नीतीश गवर्नमेंट फार्म न कर ले। अंदर की जानकारी यह है कि जब लालू जी स्वस्थ्य होकर लौटेंगे, तो बिहार में सियासी उलटफेर की प्रक्रिया में तेजी आएगी। उसके बाद किसी भी दिन आपको सुनने को मिलेगा कि बिहार में नीतीश कुमार को हटाकर नई सरकार का गठन हो गया। उसके बाद जब नई सरकार का गठन होगा, तो सरकार का गठन होते के साथ ही नीतीश कुमार का राजनीतिक प्रणांत हो जाएगा।
बिहार में बड़ा सियासी उलटफेर : बिहार में नीतीश सरकार के राजनीतिक अंत को विस्तार से इस तरह समझिये कि उनकी सरकार जाते ही, फिर कोई पार्टी बिहार की इनके साथ एलायंस में नहीं जाएगी। न तो महागठबंधन जाएगा इनके साथ एलायंस में और न ही बीजेपी जाएगी। उसके बाद मजबूरी में नीतीश कुमार को अकेले चुनाव लड़ना पड़ेगा, इनकी क्या दशा होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। तेजस्वी यादव का कैरियर नीतीश कुमार पर बिल्कुल भी आश्रित नहीं है। तेजस्वी की ओर से भविष्य में उठाए जाने वाले कदम पर नीतीश कुमार का भविष्य फाइनली निर्भर कर रहा है और अब यही होने वाला भी है। आप लिखकर रख लीजिए, नीतीश कुमार तेजस्वी को 2025 का भुलावा दे दिए हैं, लेकिन राजद अब वो नहीं है कि उसकी पार्टी सबसे बड़ी हो और दूसरा कोई मजा मारे। राजद 2025 का इंतजार नहीं करेगी। क्योंकि राजद 2025 तक कतई नीतीश कुमार की बैशाखी ढोने के मूड में नहीं है। किसी भी दिन नीतीश कुमार के राजनीतिक कैरियर में उथल-पुथल का दौर शुरू होने वाला है।