जानें इसके पीछे क्या है प्रशासन की मंशा

जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
7 नवम्बर 2022

भागलपुर: बिहार की विलुप्त हो रही प्राचीन कैथी व तिरहुता लिपि का प्रशिक्षण सह कार्यशाला की शुरुआत शनिवार को भागलपुर संग्रहालय में हुई। कार्यशाला में 200 से अधिक प्रतिभागी बिहार की दोनों प्राचीन लिपियाें को लिखना व पढ़ना सीखेंगे।

कार्यशाला का आयोजन भारतीय भाषा संस्थान मैसूर, मैथिली साहित्य संस्थान पटना और भागलपुर संग्रहालय के संयुक्त तत्वावधान में हो रहा है।
उद्घाटन सत्र में शामिल डीएम सुब्रत कुमार सेन ने कहा कि भागलपुर देश के पुराने जिलों में एक है। यहां के अभिलेखागार में कैथी लिपि से जुड़े कई दस्तावेज रखे हैं। कई प्राचीन कलाकृति व अवशेष में भी कैथी लिपि में संदेश लिखा है। बिहार के अधिकतर जिलों में जमीन से जुड़े दस्तावेज भी कैथी लिपि में है। ऐसे में जिले के राजस्व कर्मचारी, अभिलेखागार कर्मी व अमीन को कैथी लिपि की ट्रेनिंग दी जायेगी, जिससे पुराने दस्तावेज को डिकोड किया जा सके। इससे जमीन से जुड़े फर्जीवाड़ा में कमी आयेगी। जमीन के दस्तावेजों को पढ़ने व लिखने से जुड़े पेशा को अपना कर पैसे भी कमाया जा सकता है।

कैथी को शासन व न्यायिक भाषा का दर्जा : मुख्य वक्ता भैरव लाल दास ने कैथी लिपि के इतिहास, उसके महत्व व इसकी उपयोगिता विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला। कैथी लिपि के इतिहास के लेखक ने कहा कि भागलपुर जिले में प्रचुर मात्रा में कैथी के दस्तावेज हैं। अंग्रेजों व शेरशाह सूरी के शासन व न्याय की भाषा का दर्जा दिया। कैथी लिपि में बाइबिल समेत चर्च में बहुत ग्रंथ है। अध्यक्षता कर रहे प्रो आनंद कुमार झा ने बताया कि भगवान पुस्तकालय में कैथी एवं तिरहुता लिपि से जुड़े कई दस्तावेज हैं, इनपर अनुसंधान होना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन संग्रहालयाध्यक्ष डाॅ० शिव कुमार मिश्र ने किया।

अंगिका भाषा के लिए डेटा कलेक्शन जारी : भारतीय भाषा संस्थान मैसूर के सहायक निदेशक डाॅ नारायण चौधरी ने कहा कि भारत सरकार विलुप्त हो रही भाषा के विकास के लिए डेटा कलेक्शन कर रही है। इसी क्रम में विभिन्न लिपियों के संरक्षण के लिए कई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। भागलपुर व आसपास के जिलों में अंगिका भाषा के लिए डेटा कलेक्शन भारतीय भाषा संस्थान मैसूर की एक टीम कर रही है।

तिरहुता लिपि में धर्म व अध्यात्म के कई संदेश छिपे : तिरहुता लिपि के इतिहास व महत्व पर वरिष्ठ इतिहासकार डाॅ० अवनींद्र कुमार झा ने विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि तिरहुता लिपि में धर्म व अध्यात्म से जुड़े कई प्राचीन ग्रंथ मौजूद हैं। प्राचीन ग्रंथों की पांडुलिपियों तथा शिलालेखों को पढ़ने के लिए तिरहुता लिपि को जानना आवश्यक है। इससे बिहार के इतिहास को विस्तार से समझने में आसानी होगी।

इस मौके पर प्रो० अरुण कुमार झा, प्रो केष्कर ठाकुर, प्रो० रमन सिन्हा, प्रो कृष्ण कुमार मंडल, रमेश मोहन शर्मा, लखन लाल सिंह आरोही, डाॅ० शिव प्रसाद यादव, जयंत कुमार, कल्पना कुमारी, अमिताभ मिश्र, प्रकाश कुमार झा, प्रो दिनेश कुमार गुप्ता, प्रो० पवन शेखर के अलावा अपर समाहर्ता, अनुमंडलाधिकारी सहित कई पदाधिकारी उपस्थित हुए।

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