देश की सबसे पुरानी राजनीति पार्टी कांग्रेस इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. मध्यप्रदेश और राजस्थान के बाद अब बिहार कांग्रेस में भी रार मचनी शुरू हो गई है. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में शुरू हुई सियासी खींचातानी चल ही रही थी कि अब बिहार कांग्रेस के भीतर भी बगावती सुर उठने लगे हैं. पिछड़े वर्ग के नेताओं ने पार्टी पर अपने समुदाया की उपेक्षा का आरोप मढ़ दिया. कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कैलाश पाल ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. बताया जा रहा है कि 15 जुलाई को कार्यसमिति की बैठक उन्होंने पिछड़ों की उपेक्षा का मुद्दा उठाना चाहा था मगर उन्हें बोलने से रोक दिया गया. इसी नाराजगी के चलते उन्होंने ये फैसला लिया है. कैलाश पाल ने समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा कि बिहार में कांग्रेस की जो स्थिती है उसका बड़ा कारण पिछड़ों की उपेक्षा ही है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस को ये नहीं भूलना चाहिए कि मुस्लिम-यादव मतदाताओं के जरिए ही राजद 15 सालों तक सत्ता में थी. बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विजय शंकर मिश्र ने कैलाश के आरोपों को नकारते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी सभी समुदायों को साथ लेकर चलने पर विश्वास रखती है.
बिहार प्रभारी महासचिव शक्ति सिंह गोहिल की मौजूदगी में
कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले नेता कैलाश ने कहा कि पार्टी सामाजिक न्याय और सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान नहीं दे रही है. सवर्णों, दलितों और अल्पसंख्यकों को तो मौका दिया जा रहा है मगर पिछड़ों की लगातार उपेक्षा की जा रही है.
कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि 2015 विधानसभा चुनाव में मात्र 12 प्रतिशत टिकट ओबीसी वर्ग को दिए गए थे.

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