जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
29 जनवरी 2023
भागलपुर : बिहार के दिग्गज कांग्रेसी नेता रहे महावीर चौधरी जी के सुपुत्र डॉ० अशोक चौधरी बिहार की राजनीति के गमले के फूलों में से एक फूल हैं। अक्सर गमले के फूलों को यह भ्रम होता है कि बगीचे की रौनक उन्हीं की वजह से है।
अशोक चौधरी के राजनीतिक जीवन को 26 वर्ष हो चले हैं। इन 26 वर्षों में इन्होंने उस वर्ग के दुख-दर्द और हक-हुकूक का मुद्दा 26 बार भी नहीं उठाया होगा, जिस वर्ग से अशोक चौधरी आते हैं। हां, उन पर कोई निजी हमला होता है, तो वर्ग की याद उन्हें जरूर आ जाती है।
गौरतलब हो कि वर्ष 2000 में अशोक चौधरी पहली बार कांग्रेस की टिकट पर बरबीघा से विधायक बने और बिहार की सबसे बुरी सरकारों में से एक (राबड़ी जी की सरकार) में कारा मंत्री बने। उस समय इनके मंत्रालय का बड़ा जलवा हुआ करता था। उस सरकार में मौज काटने के बाद 2005 से इनकी फाकाकसी के दिन शुरू हुए थे, हालांकि तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, तो दिन अच्छे से कट जाते थे। कांग्रेस वैसे भी गमले के फूलों से भरी हुई पार्टी है।
अशोक चौधरी की किस्मत 2013 में फिर चमकी और इन्हें बिहार कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। 2014 में वे एमएललसी भी बनाये गये। कांग्रेस केंद्र में तो सत्ता से बाहर हो गई, लेकिन 2015 में एक संयोग लगा और महागठबंधन बना।
तब नीतीश कुमार को यह पता था कि राजद वालों को कंट्रोल में रखने के लिए उन्हें कांग्रेस की जरूरत पड़ेगी, इसलिए नीतीश कुमार ने लड़-भीड़ कर कांग्रेस को गठबंधन में 41 सीटें दिलवा दीं, ताकि कल को राजद कोई प्रेशर पॉलिटिक्स न कर पाये। कांग्रेस 27 सीटें जीती भी। चूंकि, मोहन भागवत के एक बयान ने 2015 के उस चुनाव का रुख ही बदल दिया था। महागठबंधन को बड़ी जीत मिली, लेकिन नीतीश कुमार राजद को ज्यादा समय तक बर्दाश्त न कर सके।
इस महागठबंधन सरकार में अशोक चौधरी मंत्री बने थे, लेकिन नीतीश कुमार के पलटी मारते ही अशोक चौधरी के मंत्री की कुर्सी चली गई। जुलाई 2017 से 2018 तक अशोक चौधरी का समय बड़ी मुश्किल से कटा। उन दिनों ये फेसबुक पर मेरी इस लेखनी की तरह ही बड़े-बड़े दार्शनिक पोस्ट लिखने लगे थे। फिर इन्हें नीतीश कुमार का घोंसला दिखा और सत्ता की कुर्सी भी दिखी। इन्होंने कांग्रेस को छोड़ नीतीश कुमार के घोंसले में एंट्री मार ली। 2019 में अशोक चौधरी जदयू कोटे से एमएलसी व मंत्री बना दिये गये। शिक्षा विभाग के मंत्री रहने के दौरान कई तरह के विवादों में भी रहे। इसके बावजूद इनको भाजपा के साथ वाली सरकार में भी जगह मिली। चूंकि, नीतीश जी को गमले में खिले फूल बड़े पसंद होते हैं, तो उन्होंने इनको अपने किचन कैबिनेट का सदस्य बना लिया। अब ये बताएं कि ये कांग्रेस में किरायेदार थे, जहां से इनका राजनीतिक जीवन परवान चढ़ा या फिर जदयू में किरायेदार हैं, जहां अभी इनका शेल्टर है?
दरअसल, अशोक चौधरी ने बीते दिनों उपेन्द्र कुशवाहा को जदयू का किरायेदार बताया था। उनका तर्क था कि उपेंद्र कुशवाहा दो बार जदयू छोड़ कर गये हैं। उन्होंने जदयू को नीतीश कुमार का घोंसला बताया। ऐसा है अशोक चौधरी जी- गमले में लगे पौधों में फूल कितने भी खिल लें,वह पेड़ नहीं बन पाते और पेड़ बिना फूलों के भी क्यों न हो, वह लोगों को छांव देने के काम आ जाता है। बिहार की राजनीति में आपकी पहचान आदरणीय महावीर बाबू की वजह से है, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के पिताजी की पहचान उपेंद्र कुशवाहा की वजह से है। फर्क को समझ सकते हैं आप।
रही जदयू के घोंसले की बात, उसे सिर्फ नीतीश जी ने नहीं बनाया है। हां उन्होंने उसे कब्जाये जरूर रखा है। जदयू का घोंसला बनाने में जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, नीतीश कुमार,उपेंद्र कुशवाहा, दिग्विजय सिंह जैसे कई नेताओं का योगदान रहा है। जदयू उपेंद्र कुशवाहा का स्वभाविक घर है। घर से कभी कोई रूठ कर दिल्ली/कलकत्ता भाग जाए, तो घर पर उसका हक खत्म हो जाता है क्या..? बिहार तो वैसे भी पलायन करने वालों का प्रदेश है महाराज। दो बार पार्टी छोड़ना-लौटना, भ्रष्टाचार से बड़ा जुर्म तो नहीं ही है साहब?
उपेंद्र कुशवाहा उस समय बिहार में समता पार्टी के विधायक के रूप में संघर्ष कर रहे थे, जब आप राबड़ी जी की सरकार में कारा मंत्री थे श्रीमान। उस सरकार में बिहार में गुंडागर्दी उस चरम पर थी, जिससे बिहार का गांव-गांव त्रस्त था और आप उपेंद्र कुशवाहा को जदयू का किरायेदार कह रहे हैं!
उस दौरान तो नीतीश जी, जॉर्ज साहब, शरद जी, दिग्विजय दादा दिल्ली में मंत्री थे। बिहार में रहकर विपक्ष की लड़ाई उपेंद्र कुशवाहा ही लड़ रहे थे। उपेंद्र जी को जदयू का किरायेदार कहने का साहस तो घोंसले के मौजूदा सर्वेसर्वा नीतीश जी भी नहीं करेंगे। यह ठीक बात है कि नीतीश जी के इशारे पर ही आप यह बयान दे रहे होंगे, लेकिन याद रख लीजिए। आपके घोंसले के सरदार के हिस्से उनके ही दल के बुजुर्ग नेताओं की आह दर्ज है। आप उनके गुड बुक में बने रहिए और दमाद जी को नेता बनाइए।
उपेंद्र जी जदयू में अपना हक मांग रहे हैं, क्योंकि इसी पार्टी से वे 2004 में नेता प्रतिपक्ष रहे हैं। उपेंद्र जी की यह बगावत बिल्कुल नाजायज नहीं है।
दरअसल, नीतीश जी को अपने चाणक्य होने का बड़ा गुमान है, लेकिन बिहार की राजनीति में वे ‘परिस्थिति कुमार’ बनते जा रहे हैं। राजद के वोट बैंक को जोड़ कर यदि खुश हो रहे हैं, तो चुनाव हो जाने दीजिए। महागठबंधन में वोटों का ट्रांसफर इतना जबरदस्त होगा कि सारे ठगबंधन फेल हो जायेंगे।