जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
1 मार्च 2023
भागलपुर : नीतीश कुमार की सियासत को नेस्तनाबूद करने के लिए भाजपा ने पूरी तरह से कमर कस ली है, लेकिन क्या ऐसा हो पाना संभव है ? अगर भाजपा ऐसा सोचती भी है तो इसमें कितना वक्त लगेगा ? क्या नीतीश कुमार सच में तेजस्वी यादव को बिहार की बागडोर सौंपेंगे ? अगर सौंपेंगे भी तो यह कब तक संभव हो पाएगा ? बिहार की सियासत में ऐसे कई सवाल इन दिनों उठ रहे हैं। भाजपा के अलावा इन सवालों को समय-समय पर हवा महागठबंधन के प्रमुख घटक दल राजद के नेता भी देते रहते हैं। भाजपा के अलावा नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से जुदा हुए उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह जैसे लोग तो नीतीश के सियासी अंत की रोज सुबह से शाम तक भविष्यवाणी करते रहते हैं।
*पहले बिहार विधानसभा की गणित समझिए…*
243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में राजद के विधायकों की संख्या अभी 79 है। सरकार बनाने-चलाने के लिए 122 विधायकों की जरूरत होती है। राजद को कांग्रेस और लेफ्ट का साथ पहले से ही मिला हुआ है। कांग्रेस के 19 और लेफ्ट के 16 विधायक शुरू से ही राजद के साथ हैं। यानी राजद नीत पूर्व के महागठबंधन में 114 विधायक हैं। जीतन राम मांझी की महत्वाकांक्षा और उनके ढुलमुल रवैये को देखते हुए मान कर चलना चाहिए कि उनके 4 विधायक भी आड़े वक्त राजद के काम आएंगे। निर्दलीय विधायक को ले लें तो अकेले राजद के पास फिलवक्त 119 विधायकों का समर्थन है। सरकार बनाने के लिए जरूरी 122 की संख्या पूरी करने के लिए महज तीन विधायक चाहिए। नीतीश कुमार अब राजद नीत महागठबंधन के साथ हैं और उनके पास महज 43 विधायक हैं।
*फिर भी तेजस्वी यादव की राह आसान नहीं*
प्रत्यक्ष तौर पर संख्या बल में राजद नीतीश की जदयू पर भारी है। इसके बावजूद नीतीश के बिना राजद की राह आसान नहीं होगी। नीतीश कुमार इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि भले उनकी पार्टी संख्या बल में तीसरे नंबर पर है, पर सत्ता की चाबी उनके ही हाथ में है। यानी वे जो चाहेंगे, वही होगा। भाजपा के साथ सटे थे तब भी उनकी ही सरकार बनी थी। महागठबंधन के साथ आये तो उनकी ही सरकार बनी। दोनों ही स्थिति में उनकी कुर्सी इसलिए बरकरार रही कि जदयू के बिना किसी की सरकार का बनना संभव ही नहीं है। नीतीश कुमार को नाराज कर तेजस्वी यादव लाख चाहें, अपनी सरकार बना नहीं सकते। भले उनको जरूरत गिनती के तीन विधायकों की ही है। तीन के लिए उन्हें जदयू के टूटने का इंतजार करना पड़ेगा। वह भी दल बदल विरोधी कानून के दायरे में रह कर, जो दूर-दूर तक संभव नहीं है। हां, पड़ोसी झारखंड की तरह कोई तरकीब अपना लें तो अलग बात है। झारखंड में दल बदल कानून के अब तक जितने मामले आये हैं, उनमें विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने के बाद तक फैसला नहीं हो पाया। तेजस्वी चाहें तो ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि असेंबली स्पीकर अवध बिहारी चौधरी उनकी ही पार्टी के हैं। दल बदल का मामला उनके पास आया तो वे लटका कर विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने तक इंतजार कर सकते हैं। लेकिन तेजस्वी ऐसा नहीं करेंगे। इसलिए कि वे खुद को राजनीति में बेदाग रखना चाहते हैं। सीएम बनने की हड़बड़ी में वे गड़बड़ी करना नहीं चाहते। इसका संकेत भी उन्होंने दे दिया है।
*नीतीश को क्यों पटकनी नहीं दे सकते तेजस्वी ?*
राजद नेताओं को भले इस बात का बेसब्री से इंतजार है कि नीतीश को बेदखल कर तेजस्वी जल्द से जल्द बिहार के सीएम की कुर्सी पर बैठ जाएं, लेकिन तेजस्वी ऐसा नहीं कर पाएंगे। इसका पहला कारण यह है कि उनके लिए तीन को तोड़ना ही टेढ़ी खीर है। दूसरा, लालू प्रसाद यादव की अस्वस्थता, ढलती उम्र और पुराने मामलों में उनकी सजा बढ़ाने की आवाज तेजस्वी को ऐसा करने से रोकेगी। इसलिए कि लालू के बाद तेजस्वी के लिए नीतीश ही राजनीतिक गुरु हैं। नीतीश के ही संरक्षण में तेजस्वी की विधायिका की ट्रेनिंग पहले भी हुई और अब भी चल रही है। सियासत के दांव-पेंच के कई गुर अभी उन्हें सीखने हैं।
*तो क्या नीतीश अपनी मर्जी से ही छोड़ेंगे कुर्सी ?*
नीतीश कुमार अगर कहते हैं कि 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा तो इस पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए और न किसी तरह का विवाद खड़ा करना चाहिए। वैसे भी नीतीश ने 2020 के चुनाव के दौरान ही यह संकेत दे दिया था कि यह उनका आखिरी चुनाव है। नीतीश दूसरी बात कहते हैं कि वे पीएम पद की रेस में नहीं हैं। तीसरी बात वे हाल ही में कह गये कि उनकी उम्र अब 72 साल की हो गई है। दरअसल नीतीश के दोनों हाथ में लड्डू है। राजनीति में कब किसे अवसर मिल जाए, कहना मुश्किल है। बिहार से अलग होकर बने झारखंड में यह साबित हो चुका है। राजनीतिक पार्टियों के समर्थन से मधु कोड़ा निर्दलीय विधायक होने के बावजूद सीएम बन गये थे। अगर सच में 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम विपक्षी दलों के अनुकूल रहे तो नीतीश कुमार की लाॅटरी लग भी सकती है। यह सब तो अनुमानों पर आधारित भविष्य की बातें हैं, मौजूदा हालात में भी दूर-दूर तक नीतीश के सीएम पद छोड़ने की संभावना नहीं दिखती। अगर तेजस्वी सीएम बनते भी हैं तो यह नीतीश की सहमति के बिना संभव नहीं है।