आनन्द चौधरी/नई दिल्ली।
कोरोना वायरस के खतरे से निपटने के लिए देश के अधिकांश शहरों में लॉकडाउन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के निजी और सार्वजनिक कंपनियों के कर्मचारियों की भी चिंता की। केंद्र सरकार ने इन क्षेत्रों की कंपनियों से कहा है वे इस संकट की घड़ी में कर्मचारियों की न ही छंटनी करें और न ही उनका वेतन काटें। श्रम और रोजगार मंत्रालय के सचिव हीरालाल समरिया ने इस बाबत सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र भेजा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे पहले ही राष्ट्र के नाम संबोधन में बिजनेस समुदाय और उच्च आय वर्ग के लोगों से भी इस तरह की अपील कर चुके हैं।
प्रधानमंत्री के इस निर्देश का लोगों ने स्वागत तो किया लेकिन इसके साथ तमाम सवाल भी पैदा होते हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि लॉक डाउन के दौरान बंद पड़े लघु और सूक्ष्म उद्योग जो पहले से ही वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं वो अपने कर्मचारियों को वेतन कहां से देंगी। इस बारे में निजी क्षेत्र और लघु कंपंनियां का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान जो बड़ी कंपनियां और कार्पोरेट कंपनियां हैं उनके ऊपर प्रभावकारी असर पड़ने की संभावना कम है लेकिन लघु कंपनियों की हालात बेहद ख़राब है।
ऐसे में सरकार को उन कंपनियों की माली हालत सुधारने के लिए विशेष वित्तीय पैकज देने चाहिए। जिसमें बिना ब्याज का कर्ज देने की सहायता शामिल हो। इससे जहां इस महामारी और लॉकडाऊन के दौरान लघु उद्योगों को आर्थिक संकट से उबरने में मदद मिलेगी वहीं लॉकडाऊन के दौरान प्रधानमंत्री के उस निर्देश को लागू करने में आसानी होगी जिसमें उन्होंने कहा है कि लॉकडाऊन के दौरान कर्मचारियों को निकाला न जाए। और लॉकडाऊन के दौरान घरों में रहने वाले कर्मचारियों को पूरा वेतन दिया जाए।
इस बाबत श्रम सचिव हीरालाल सामरिया ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को जारी पत्र में कहा है कि कोरोना वायरस से पैदा संकट के बीच कर्मचारियों की सहूलियतों का ध्यान रखना जरूरी है। केंद्रीय श्रम सचिव ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों से अपने राज्य में स्थित निजी और सार्वजनिक कंपनियों को इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी करने को कहा है। सभी पब्लिक और प्राइवेट कंपनियों को सुझाव दिया जाता है कि वे इस दौरान किसी भी कर्मचारी की छंटनी नहीं करेंगे और न ही उनका पैसा काटेंगे। अगर कोई कर्मचारी छुट्टी लेता है तो भी वह ड्यूटी पर माना जाएगा। नियमित और संविदा दोनों तरह के कर्मचारियों की सेवा सुरक्षा का ख्याल रखा जाए।
हम यहां यह भी बता दें कि 26 मार्च को केंद्र सरकार ने एक ऐसे वित्तीय पैकेज का एलान किया, जो 21 दिनों लंबे लॉकडाउन के दौरान बिगड़ने वाली आर्थिक स्थिति को सुधारने में मददगार साबित हो। इस देशव्यापी लॉकडाउन का एलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिन पहले ही किया था। लेकिन, सरकार द्वारा घोषित ये वित्तीय मदद, हालात को देखते हुए, उम्मीद से बहुत ही कम और अपर्याप्त है। ये उन लोगों की मदद करने में बहुत ही कम कारगर होने वाला है, जिन्हें आने वाले महीनों में आर्थिक मदद की बेहद सख़्त ज़रूरत पड़ने वाली है। सरकार ने इस पैकेज की घोषणा में बड़ी कंजूसी से काम लिया है।
जो 90 फ़ीसदी भारतीय नागरिक, देश के असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। न तो उनके लिए कोई क़ानूनी उपाय हैं. और, न ही उन लोगों की रोज़ी-रोटी के नियमन के लिए कोई क़ानूनी संरक्षण उपलब्ध है। इनमें करोड़ों शहरी और ग्रामीण मज़दूर शामिल हैं।  ये वो लोग हैं, जो समाज के सबसे ग़रीब लोग हैं और जो किसी भी आर्थिक झटके से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. ये लोग दिहाड़ी, हफ़्तावार या माहवारी मज़दूरी पर गुज़र-बसर करते हैं।
इनके पास अचानक आमदनी बंद होने से आई किसी मुश्किल का सामना करने के लिए बचत के नाम पर या तो कुछ नहीं होता। या फिर मामूली सी रक़म होती है। जब लॉकडाउन के कारण देश में आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो रही हैं, तो भारतीय समाज का यही वो तबक़ा है, जो इस लॉकडाउन के दौरान सबसे मुश्किल में होगा। फिलहाल कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने भी सभी नियोक्ताओं से अनुरोध किया है कि वे अपने ऐसे किसी कर्मचारी का वेतन न काटें, जो बीमारी या सोशल डिस्टेंसिंग के कारण कार्य करने में असमर्थ हैं।
सरकार के दिशा निर्देश को तभी व्यवहारिक रूप में लाया जा सकता है जब सरकार उन लघु और सूक्ष्म उद्योगों जिनकी माली हालत खराब है उन्हें उबारने के लिए ऐसे वित्तीय मदद दे जिससे उन्हें उबारने में मदद मिल सके, और लॉकडॉउन के समय वे अपने कर्मचारियों के साथ न्याय कर सके।

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