जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 24 अक्टूबर ::
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। माँ महागौरी की उपासना से भक्तों के सभी पूर्व संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
माँ महागौरी का वर्ण पूर्णतः गौर है। माँ महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। माँ महागौरी का समस्त वस्त्र एवं आभूषनादि श्वेत हैं।
भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए माँ पार्वती ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। माँ महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं :-
“सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”।
माँ महागौरी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है, जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहाँ देवी उमा तपस्या कर रही थी । देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी, परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों है।