जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
11 मार्च 2023

भागलपुर : नीतीश कुमार न घर के रहे और न घाट के। विपक्षी एकता का उनका संकल्प धरा का धरा रह गया। विपक्षी दल उन्हें कोई भाव ही नहीं दे रहे। कांग्रेस के सामने वे रिरिया रहे हैं। अपने भी उनका साथ छोड़ रहे हैं। आरसीपी सिंह, प्रशांत किशोर ने पहले ही जेडीयू से किनारा कर लिया था। उपेंद्र कुशवाहा भी किनारे हो गये। आरजेडी के सहयोग से नीतीश भले सरकार चला रहे हैं, लेकिन आरजेडी के विधायक उन्हें कबूल नहीं कर रहे। विपक्ष को एकजुट करने का नीतीश ने संकल्प लिया था। विधानसभा के बजट सत्र के बाद इस मुहिम में बिहार से बाहर निकलने की उन्होंने योजना भी बनायी। कांग्रेस नेतृत्व से एकता की अपील भी कर रहे हैं। पर, सच यही है कि कोई उनकी सुन ही रहा। अब तो उन्होंने इस मसले पर चुप्पी ही साध ली है। सियासी जानकारों की मानें तो उनकी कवायद भोजपुरी कहावत को चरितार्थ कर रही है। जिसमें कहा जाता है कि ‘पूछी न आछी…मैं दुल्हिन की चाची’। यानी कि जबरदस्ती गले पड़ना।

*गैर भाजपा सीएम भी नीतीश को नहीं पूछ रहे*

तेलंगाना के सीएम केसी राव ने आम आदमी पार्टी के दो सीएम को अपने सम्मेलन में बुलाया। उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के नेता पूर्व सीएम अखिलेश यादव को आमंत्रित किया, लेकिन नीतीश कुमार को पूछा तक नहीं। तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालीन के जन्मदिन पर जम्मू कश्मीर से फारूक अब्दुल्ला चेन्नई पहुंचे। बिहार से आरजेडी नेता और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी गये, लेकिन नीतीश को न्यौता नहीं मिला। केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग को लेकर गैर भाजपा शासित सात राज्यों के सीएम ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा। इसमें भी नीतीश को शामिल करने से सभी ने परहेज किया।

*अपनों ने भी नीतीश कुमार से पल्ला झाड़ लिया*

नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का सांगठनिक ढांचा तो है, लेकिन वे सुप्रीमो के रूप में पार्टी चलाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि जदयू में दूसरी पंक्ति के नेता पनप नहीं पाते। आरसीपी सिंह को बड़े तामझाम से नीतीश ने पार्टी का प्रधान तो बनाया, लेकिन जब उन्होंने अध्यक्ष के नाते मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने का निर्णय लिया तो नीतीश बिदक गये। उन्हें अगली बार राज्यसभा भेजा ही नहीं। इससे भी उनका मन नहीं भरा तो पार्टी से निकालने के लिए उनके खिलाफ संपत्ति अर्जित करने का आरोप मढ़ दिया। आखिरकार आरसीपी जदयू से खुद ब खुद जुदा हो गये। उपेंद्र कुशवाहा भी तामझाम से ही अपनी पार्टी का जदयू में विलय कर शामिल हुए थे। साल भर में उनसे भी नीतीश का मन भर गया। आखिरकार वे भी किनारे हो गये। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को तो एक झटके में जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिये गये थे। उनके साथ भी वही सलूक हुआ। ताजा मामला नगालैंड का है। अव्वल तो जदयू के टिकट पर एक ही एमएलए जीता और हफ्ते भर में ही उसने बीजेपी से रिश्ता जोड़ लिया।

*पीएम फेस बनते-बनते रह गये नीतीश कुमार*

जदयू के नेता नीतीश कुमार को पीएम मटेरियल बताते रहे हैं। उनका दावा है कि नीतीश कुमार ने बिहार में कई ऐसी योजनाएं लागू कीं, जो बाद में दूसरे राज्यों और केंद्र सरकार ने लागू की। उनके पास देश चलाने का विजन है। पिछले साल जब नीतीश की पार्टी महागठबंधन का हिस्सा बनी तो आरजेडी के नेता उन्हें पीएम पद की रेस में शुमार करने लगे। आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने तो यह दावा तक कर दिया कि नीतीश कुमार को लालू प्रसाद यादव का आशीर्वाद मिल चुका है। वे पीएम बन कर रहेंगे। हालांकि नीतीश खुद इस बात से इनकार करते रहे कि वे पीएम पद की रेस में नहीं हैं। लेकिन वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ वे विपक्षी एकता बनाने का प्रयास जरूर करेंगे। इसी कड़ी में वे लालू यादव के साथ सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली भी गये। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकल गये। अब तो नीतीश की स्थिति ऐसी हो गयी है कि कांग्रेस नेतृत्व से अपील कर रहे हैं कि विपक्ष को एकजुट करने में अब और देर ठीक नहीं।

*बीजेपी से ऊब कर नीतीश ने छोड़ा था साथ*

एनडीए के साथ नीतीश जब सरकार चला रहे थे तो बीजेपी नेता उनकी समय-समय पर आलोचना करने से नहीं चूकते थे। नीतीश ने बीजेपी से रिश्ता तोड़ने की वजह यही बतायी थी। अब वे महागठबंधन के सीएम हैं तो आरजेडी के नेता न उनकी बात मानते हैं और न उनके खिलाफ बोलने से परहेज करते हैं। आलोक मेहता, चंद्रशेखर और सुरेंद्र यादव जैसे आरजेडी कोटे के मंत्री तो ऐसे ऐसे बयान देते रहते हैं, जो नीतीश को पसंद नहीं। आरजेडी के विधायक सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार को गलत साबित करने का बीड़ा ही उठा लिया है। सुधाकर पर तो अपने नेता की चेतावनी का भी असर नहीं दिखता। पार्टी ने उन्हें इस बाबत शो काज भी दिया। उसके बावजूद वे नीतीश के खिलाफ हल्ला बोल अभियान में अब भी लगे हुए हैं।

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