सज्जादानशीं शाह हसन ने इमाम तीरमीदी रहमतुल्लाह अलैहि के मजार-ए-शरीफ की जियारत की
जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
11 मार्च 2023
भागलपुर/उजबेकिस्तान : देश के प्रसिद्ध धार्मिक गुरु सैयद सलमान हुसैनी नदवी और खानकाह-ए-पीर दमड़िया शाह के 15वें सज्जादानशीं सैयद शाह फखरे आलम हसन अपने दस दिवसीय दौरे पर उजबेकिस्तान गए हैं। शुक्रवार को तरमीस शहर पहुंच कर हजरत इमाम हकीम तीरमीदी रहमतुल्लाह अलैहि, सहाबे सुन्न हजरत इमाम मोहम्मद इब्न इशा तीरमीदी रहमतुल्लाह अलैहि के मजार-ए-शरीफ की जियारत की और फिर इस दौरान उन्होंने फातेहा पढ़ी,इसके बाद वे एतिहासिक तीरमीदी मस्जिद भी गए। इस दौरान सैयद सलमान हुसैनी नदवी ने कहा कि हजरत इमाम तीरमीदी रहमतुल्लाह अलैहि का इंतेकाल तरमीस शहर में नहीं बल्कि एक गांव बुग में हुई थी,इसलिए इमाम तीरमीदी रहमतुल्लाह अलैहि अलबुगी अल तीरमीदी कहलाते हैं। इमाम तीरमीदी रहमतुल्लाह असल में मुर्व के रहने वाले थे। उनके दादा तीरमीदी शहर तशरीफ लाएं और वहीं मोकिम हो गए। सलमान नदवी ने कहा कि 209 हिजरी में इमाम तीरमीदी रहमतुल्लाह की पैदाईश हुई और 279 में उनका इंतेकाल हुआ था। इस तरह हजरत इमाम तीरमीदी रहमतुल्लाह अलैहि ने 70 साल की आयु पायी। उन्होंने कहा कि इमाम बुखारी रहमतुल्लाह अलैहि ने इमाम तीरमीदी रहमतुल्लाह अलैहि के बारे में कहा कि जितना मैंने तुमसे फायदा उठाया है,तुमने मुझसे नहीं उठाया है। अल्लाह ने इमाम तीरमीदी रहमतुल्लाह अलैहि को कमाल की हाफजा आता फरमायी थी। जिस स्थान पर इमाम तीरमीदी रहमतुल्लाह अलैहि का मजार-ए-शरीफ है उसके कुछ ही दूरी पर अफगानिस्तान का सीमा मिलता है और इसी जगह से बहुत मशहूर दरिया-ए-सैखून और दरिया-ए-जहुन निकलता है। मौलाना सलमान हुसैनी नदवी ने कहा कि किसी बुजुर्ग की मजार-ए-शरीफ पर हाजीर होने से मौत याद आती है और रुह ताजा होती है। आज पूरी दुनिया के मदरसों में किताबुन सुन्न की तालीम दी जाती है।