जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
30 जनवरी 2023
एक पत्रकार होने के नाते राजनीतिक विश्लेषण में अब तक के मेरे अनुभव यही बताते हैं कि फिलवक्त जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के लिए भाजपा का साथ ही शुभ साबित हुआ है.उसके पहले उन्होंने कई दलों से रिश्ता तो बनाया,लेकिन हर बार उन्हें झुनझुना ही हाथ लगा.बदकिस्मती ऐसी कि भाजपा का साथ छोड़ने के बाद सामने दिख रही मंत्री की कुर्सी भी उनसे दूर छिटकती रही है.एक अदद मंत्री की कुर्सी के लिए उनकी खीर पाेलिटिक्स भी कल्पना से आगे आकार नहीं ले सकी थी.लवकुश का जज्बाती नुस्खा भी उनके किसी काम नहीं आया.अब उन्हें फिर भाजपा के साथ की राजनीति रास आने लगी है.
*फैसले से चौंकाते रहे हैं उपेंद्र*
भाजपा से 2018 में अलग होने के बाद राजद के साथ नजदीकियां बढ़ाने के लिए उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी ‘खीर’ पाेलिटिक्स के कंस्पेट से सबको चौंका दिया था.उन्होंने कहा था कि कुशवाहा का चावल और यादवों का दूध मिल जाए तो सुस्वादु ‘खीर’ बन सकता है.बाद में राजद के साथ खीर पकाने की उनकी अवधारणा पर पानी फिर गया तो उन्होंने अपनी पार्टी रालोसपा का जदयू में विलय कर दिया था.बदकिस्मती के शिकार कुशवाहा को जदयू से भी अब घिन्न आने लगी है.महागठबंधन के साथ जदयू के जाने से वे असहज हैं.अब फिर उनके एनडीए में आने के संकेत मिल रहे हैं.बिहार में खीर बनाने का सपना उनका अधूरा रह गया.वे अब नई सियासी खिचड़ी पकाने के काम में जुटे दिख रहे हैं.
*कुशवाहा के लिए शुभ है एनडीए*
एनडीए सरकार में मंत्री रहते हुए जब 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरने का वक्त करीब था, तो उपेंद्र कुशवाहा की सीटों की संख्या को लेकर भाजपा से अनबन हो गई थी.भाजपा पर दबाव बनाने के लिए मंत्री रहते ही उन्होंने खीर वाला बयान दिया था.उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था कि यदुवंशियों का दूध, कुशवंशियों का चावल, दलित-पिछड़ों का पंचमेवा और सवर्णों का तुलसी जल मिल जाये तो बड़ी अच्छी और स्वादिष्ट खीर बन सकती है.कुशवाहा के इस बयान को अपने ट्वीट से आगे बढ़ाया था बिहार विधानसभा में तत्कालीन प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने. उन्होंने कहा कि इस खीर में पौष्टिकता भी होगी.बिहार में दो ध्रुवीय चुनाव की दिशा में इसे शुरुआती कदम के रूप में देखा गया था.
*कुशवाहा ने जब किया ट्वीट*
उपेंद्र कुशवाहा के बयान और तेजस्वी के ट्वीट को नई तरह की खीर पकाने की राजनीति बतौर देखा गया था.इसका सीधा मतलब था राजद, रालोसपा और हम का एक मंच पर जुटान.अलग वजहों से, पर कुशवाहा की कल्पना को इस बार आयाम मिल तो गया, लेकिन उनके मंत्री पद की महत्वाकांक्षा अधूरी ही रह गई.इसलिए अभी वे जिस जदयू में हैं, उसके साथ वे सभी दल हैं, जिनको लेकर कुशवाहा ने कभी सुस्वादु खीर पकाने की योजना बनाई थी.यानी राजद, हम और जदयू अब एक कुशवाहा अपनी खीर पाेलिटिक्स की बात भूल गये हैं.
*आने-जाने में माहिर हैं कुशवाहा*
उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में रहते हुए भी समय-समय पर अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे.कभी शिक्षा के सवाल पर तो कभी दूसरी नीतियों को लेकर वे अक्सर एनडीए की सरकार पर सवाल उठाते थे. इसलिए अभी वे नीतीश कुमार की अगुआई वाली महागठबंधन की सरकार के खिलाफ कुछ बोलें तो किसी को अचरज या हैरान नहीं होना चाहिए. जदयू के साथ आने से पहले नीतीश कुमार से उनकी अदावत भी जगजाहिर है एनडीए में रहते जब उपेंद्र कुशवाहा ने खीर वाला बयान दिया था, अगले ही दिन उन्होंने पलटी मार दी थी और सफाई दी थी कि हमने किसी दल विशेष के बारे में कोई बात नहीं कही.उनके बयान का आशय सामाजिक समरसता से था, जिसमें यादव,कुशवाहा, दलित-पिछड़े और अगड़ों को साथ लाने की बात थी.उनकी पार्टी रालोसपा (अब जेडीयू में विलीन) की यह पूरी कवायद एनडीए को मजबूती प्रदान करने के लिए है.एनडीए मजबूत होगा, तभी नरेंद्र मोदी फिर प्रधानमंत्री बनेंगे.लेकिन उनके बयान पर तब राजद ने जितनी आत्मीयता दिखाई थी, उससे ही साफ हो गया था कि खीर बनाने से पहले बिहार में सियासत की खिचड़ी पक रही है.
*अकेले चलने की नीति में फेल*
कुशवाहा की यह कवायद आखिरकार कामयाब नहीं हुई थी और अलग होकर उन्हें चुनाव लड़ना पड़ा था. चुनाव में अकेले चल कर उनकी जो दुर्गति हुई, उससे एक बात तो साफ ही हो गई थी कि नरेंद्र मोदी के नाम पर ही उन्हें कामयाबी मिल सकती है और मंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा भी पूरी हो सकती है. कुशवाहा मंत्री बनने की बेचैनी से ही जदयू के शरणागत हुए थे. लेकिन उनके इंतजार की घड़िया अनंत होती जा रही थीं. अंत में नीतीश कुमार ने यह कह कर इस पर विराम ही लगा दिया कि जदयू से उनके मंत्रिमंडल में अब और कोई मंत्री नहीं बनेगा. यही वजह है कि उपेंद्र कुशवाहा के तेवर अब बदल गये हैं और वे अपनी ही पार्टी में बगावती तेवर अपनाये हुए हैं.