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केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन, चिराग ने ट्वीट के जरिये दी जानकारी

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का गुरुवार को निधन हो गया। उनके बेटे चिराग पासवान ने यह जानकारी ट्वीट कर दी। रामविलास पासवान ने खगड़िया के काफी दुरुह इलाके शहरबन्नी से निकलकर दिल्ली की सत्ता तक का सफर अपने संघर्ष के बूते तय किया था। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लिहाजा वह पांच दशक तक बिहार और देश की राजनीति में छाये रहे। इस दौरान दो बार उन्होंने लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक मतों से जीतने का विश्व रिकॉर्ड भी कायम किया।
 
रामविलास पासवान देश के छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री रहे। राजनीति की नब्ज पर उनकी पकड़ इस कदर रही कि वह वोट का एक निश्चित को इधर से उधर ट्रांसफर करा सकते हैं। यही कारण है कि वह राजनीति में हमेशा प्रभावी भूमिका निभाते रहे। इनके राजनीतिक कौशल का ही प्रभाव था कि उन्हें यूपीए में शामिल करने के लिए सोनिया गांधी खुद चलकर उनके आवास पर गई थीं।
 
 
‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ इस कहावत को चरितार्थ करने वाले मृदुभाषी पासवान छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके थे। 1996 से 2015 तक केन्द्र में सरकार बनाने वाले सभी राष्ट्रीय गठबंधन चाहे यूपीए हो या एनडीए, का वह हिस्सा बने। इसी कारण लालू प्रसाद ने उनको ‘मौसम विज्ञानी’ का नाम दिया था। रामविलास पासवान खुद भी स्वीकार कर चुके थे कि वह जहां रहते हैं सरकार उन्हीं की बनती है। मतलब राजीतिक मौसम का पुर्वानुमान लगाने में वे माहिर थे। वे समाजवादी पृष्ठभूमि के बड़े नेताओं में से एक थे। देशभर में उनकी पहचान राष्ट्रीय नेता के रूप में रही। हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से वह कई बार चुनाव जीते, लेकिन दो बार उन्होंने सबसे अधिक वोट से जीतने का रिकॉर्ड बनाया।
 
सत्ता की चाबी
वर्ष 2005 में बिहार की सत्ता की चाबी रामविलास पासवान के हाथ लग गई। उस समय उनकी पार्टी के 29 विधायक जीतकर आए थे। किसी दल को बहुमत नहीं होने के कारण सरकार नहीं बन रही थी। पासवान अगर उस समय नीतीश कुमार के साथ या लालू प्रसाद के साथ जाते तो प्रदेश में सरकार बन सकती थी। मगर उन्होंने शर्त रख दी कि जो पार्टी अल्पसंख्यक को मुख्यमंत्री बनाएगी उसी का साथ वह देंगे। उनकी इस शर्त पर कोई खरा नहीं उतरा और दोबारा चुनाव में जाना पड़ा। बाद में उसी साल नवम्बर में हुए चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए को बहुमत मिला और सरकार बनाई।
 
2009 में हार गए थे लोकसभा चुनाव
रामविलास पासवान 2004 के लोकसभा चुनाव जीते, पर 2009 में हार गए। 2009 में पासवान ने लालू प्रसाद की पार्टी राजद के साथ गठबंधन किया। पूर्व गठबंधन सहयोगी कांग्रेस को छोड़ दिया। 33 वर्षों में पहली बार वे हाजीपुर से जनता दल के रामसुंदर दास से चुनाव हार गए। उनकी पार्टी लोजपा 15वीं लोकसभा में कोई भी सीट जीतने में सफल नहीं हो सकी। साथ ही उनके गठबंधन के साथी और उनकी पार्टी भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई और 4 सीटों पर ही सिमट गई। उस समय लालू के सहयोग से वह राज्यसभा में पहुंच गये। बाद में हाजीपुर क्षेत्र से 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वह फिर से एनडीए में आ गए और संसद में पहुंकर मंत्री बने। उसी चुनाव में बेटा चिराग भी पहली बार जमुई से सांसद बना।

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