जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 25 नवम्बर :: देवोत्थान एकादशी प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव जागरण या उत्थान होने के कारण मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में देवोत्थान एकादशी का बहुत महत्व होता है। इस वर्ष देवोत्थान एकादशी 25 नवम्बर को है। देवोत्थान एकादशी को ‘प्रबोधिनी एकादशी’ भी कहा जाता है और इस दिन तुलसी विवाह भी मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार 25 नवंबर को एकादशी दोपहर 2.42 बजे से 26 नवंबरको शाम 5.10 बजे तक है।
कहा जाता है कि आषाढ़, शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव शयन करते हैं और कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवोत्थान एकादशी) को देव उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।
यह भी कहा जाता है कि देव शयन काल में (जो चार मास तक रहता है) में विवाहादि मांगलिक कार्यों का आयोजन निषेध होता है और देव के उठने के बाद (देवत्थान एकादशी को) सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं।
देवत्थान एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह भी मनाया जाता है। इस दिन तुलसी माता को मौली धागा, फूल, चंदन, सिंदूर, सुहाग के सामान की वस्तुएं, अक्षत, मिष्ठान और पूजन सामग्री आदि भेंट कर पूजा की जाती है।
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को गन्नों से बनाए गए मंडप के नीचे रखकर पूजा की जाती है। पूजा में मूली, शकरकंद, सिंघाड़ा, आंवला, बेर आदि फलों को चढाया जाता है।
देवत्थान एकादशी को किसी भी पेड़-पौधों की पत्तियों को नहीं तोड़ना, बाल और नाखून नहीं कटवाना, संयम और सरल जीवन जीने का प्रयास करना, हिंदू शास्त्रों के अनुसार चावल का सेवन नहीं करना, किसी अन्य के द्वारा दिया गया भोजन नहीं करना, गोभी, पालक, शलजम आदि का भी सेवन नहीं करना, चाहिए।