जनपथ न्यूज़ डेस्क
गौतम सुमन गर्जना
13 जुलाई 2023

भागलपुर : देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बड़े भाई महेंद्र प्रसाद की पोती सुश्री शारदा की शादी भागलपुर के मुक्तेश्वर प्रसाद के पुत्र श्याम जी प्रसाद से हुई थी। जस्टिस ब्रह्मदेव प्रसाद जमुआर, मुक्तेश्वर प्रसाद के करीबी मित्र थे। जब वैवाहिक बात चली तो उन्होंने मजाक में भागलपुर विश्वविद्यालय को उपहार स्वरूप दहेज में मांग लिया था।

सुंदरवती महिला महाविद्यालय के पूर्व प्रभारी प्राचार्य प्रोफेसर रमन सिन्हा ने अपनी पुस्तक “भागलपुर : अतीत और वर्तमान” में लिखते हैं कि राजेंद्र बाबू ने मुक्तेश्वर बाबू से पूछा क्या चाहिए? इसपर जस्टिस जमुआर साहब ने भागलपुर में एक विश्वविद्यालय खोलने की मांग रख दी थी। इसके बाद राजेंद्र बाबू ने बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह से सलाह लेकर विश्वविद्यालय खोलने की अनुमति दे दी। कुलपति बनने की बात हुई तो मुक्तेश्वर प्रसाद ने कहा कि जिन्होंने इस विचार को रखा है, उन्हें ही कुलपति बनाया जाए। इसपर जस्टिस ब्रह्मदेव प्रसाद जमुआर ने उनकी बात मानते हुए शर्त रखी कि मुक्तेश्वर बाबू कहेंगे तो कुलपति पद स्वीकार कर लेंगे। दोस्ती के नाते मुक्तेश्वर बाबू ने स्वीकृति दे दी और 12 जुलाई, 1960 ईसवी को भागलपुर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई और जस्टिस ब्रह्मदेव जमुआर भागलपुर विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति बने और मुक्तेश्वर बाबू को भागलपुर विश्वविद्यालय का ट्रेजरर बनाया गया।

*भारत के स्मार्ट शहरों में शामिल हमारा रेशमी नगर भागलपुर स्थित तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय प्रारंभ से ही ज्ञान विज्ञान का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। भागलपुर की धरती पर बुद्ध और महावीर ने ज्ञान के संदेश फैलाए। मध्यकाल में भी आस्ताने-पीर दमड़िया और शाहबाजिया मदरसा शैक्षणिक संस्थान के रूप में काफी लोकप्रिय थे। कालजई कथाशिल्पी महान उपन्यासकार शरतचंद्र (देवदास एवं परिणीता के लेखक) और बंगला साहित्य के प्रखर रचनाकार बलाई चंद्र मुखोपाध्याय “बनफूल” ने राष्ट्रीय ज्ञान और साहित्य के मानचित्र पर भागलपुर का मान बढ़ाया। “पाथेर पंचाली” उपन्यास के जरिए बंगला साहित्य को विश्वस्तरीय कृति देकर विभूति शरण बंदोपाध्याय अमर हो गए।*
यहाँ मेरे कहने का आशय यह है कि हमारा भागलपुर सभी काल में ज्ञान और विज्ञान का केंद्र रहा है। 1883 ईसवी में कोलकाता विश्वविद्यालय के अंतर्गत स्थापित तेज नारायण बनैली जैसे प्रसिद्ध महाविद्यालय ने भविष्य में भागलपुर में एक विश्वविद्यालय की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। 1960 में अपनी स्थापना के बाद भागलपुर विश्वविद्यालय ने राष्ट्रकवि दिनकर, दत्ता मुंशी, बिलग्रामी, एम क्यू तौहीद जैसे अनेकों अंतरराष्ट्रीय स्तर के विद्वान दिए।

भागलपुर विश्वविद्यालय के स्थापना काल में ही जस्टिस ब्रह्मदेव प्रसाद जमुआर जैसे ऊर्जावान कुलपति का मार्गदर्शन मिला, तो स्थापना के प्रथम दशक में डॉक्टर बांके बिहारी मिश्र, डॉ. कलीमुद्दीन अहमद, डॉ. रामधारी सिंह दिनकर, डॉ. विशेश्वर प्रसाद, सत्यनारायण अग्रवाल जैसे तेजस्वी कुलपतियों का नेतृत्व मिला। प्रो.रामाश्रय प्रसाद यादव के समय में विश्वविद्यालय बुलंदियों की ओर बढ़ता चला गया। भागलपुर विश्वविद्यालय के अनेक शिक्षकों ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। इसमें प्रमुख है – प्रो.के.एस बिलग्रामी (बॉटनी), प्रो.जे. एस. दत्ता मुंशी (जूलॉजी), प्रो.पंचानंद मिश्र (इतिहास), प्रो.नित्यानंद मिश्रा (दर्शन शास्त्र), प्रो.हरिद्वार राय (राजनीति विज्ञान विभाग), प्रो.रामजी सिंह (गांधी विचार विभाग) इत्यादि ने भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम रौशन किया। 1968 ईसवी में भारतीय इतिहास कांग्रेस का 30वां वार्षिक अधिवेशन भागलपुर विश्वविद्यालय में हुआ था। जिसके आयोजक प्रो.पंचानंद मिश्र थे।

*भागलपुर विश्वविद्यालय के छठे कुलपति रामधारी सिंह दिनकर बाद में “राष्ट्रकवि” घोषित हुए। विश्वविद्यालय के 10वें कुलपति इतिहासकार प्रोफेसर विशेश्वर प्रसाद के सम्मान में 1988 से ही “डॉ. विशेश्वर प्रसाद मेमोरियल लेक्चर” की शुरुआत विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के द्वारा की गई है।*
बिहार सरकार ने 14 अक्टूबर, 1993 ईसवी को भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय कर दिया। 28-30 नवंबर, 2002 को तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर रामाश्रय यादव के मार्गदर्शन में युवा महोत्सव सह सांस्कृतिक दीक्षांत समारोह मनाने वाला देश का प्रथम विश्वविद्यालय तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय बना। अपनी स्थापना से 43 वें कुलपति प्रोफेसर रामाश्रय यादव ने विश्वविद्यालय में “कुल-ध्वज” एवं “कुलगीत” की परंपरा की शुरुआत की।

तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के एक शिक्षक होने के नाते मैं भविष्य में भागलपुर विश्वविद्यालय को शिक्षा के एक बड़े हब के रूप में देख पा रहा हूं। आज जरूरत है भागलपुर विश्वविद्यालय को एक बड़े शैक्षणिक केंद्र के रूप में विकसित करने की, जिससे लोग यहां अवस्थित प्राचीन विक्रमशिला महाविहार के अक्श को इसमें देख सकें। बिहार में भी पटना के बाद भागलपुर विश्वविद्यालय को एक बडे शैक्षणिक हब में विकसित करने की जरूरत है। पटना के बाद भागलपुर में सभी तरह के स्कूल-कॉलेज हैं। भविष्य में शिक्षा के क्षेत्र में भागलपुर विश्वविद्यालय में व्यवसायिक कोर्सों में उन्नति की संभावना है, जो रोजगारपरक होगा। जरूरी है वर्तमान दौर में व्यवसायिक शिक्षा को रोजगार उन्मुख बनाया जाए ताकि यहां के छात्रों का पलायन बाहर ना हो। अतः हम सबों के सामूहिक प्रयास से भागलपुर शैक्षणिक जगत में भागलपुर विश्वविद्यालय का मान अधिक बढ़ेगा, जिससे भागलपुर के विकास का मार्ग आगे भी प्रशस्त होगा।

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