समझिए नीतीश कुमार की परेशानी

जनपथ न्यूज़ डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
13 जुलाई 2023

राजद के साथ हाथ मिलाना बिहार के सीएम नीतीश कुमार के लिए चुनावी समर में बड़ी चुनौती बन कर उभरेगा। इसके साथ ही कई ऐसे फैक्टर हैं, जो बिहार में महागठबंधन का खेल बिगाड़ सकते हैं। शराबबंदी कानून पर नीतीश का जो रुख रहा है, वह उन परिवारों को तो कभी रास नहीं आएगा, जिनके घर का कोई सदस्य जहरीली शराब पीने से मौत के मुंह में समा गया। आंखों की रोशनी गंवा कर खाट का स्थायी मेहमान बन गया। उन्हें भी शराबबंदी कानून से कोफ्त है, जिनके घर का कमाऊ आदमी शराब पीने या बेचने के जुर्म में जेल में बंद है। नीतीश के लिए समस्या वे लोग भी खड़ी करेंगे, जो एक दशक से नियोजित शिक्षक बन कर इस इंतजार में थे कि शिक्षक नियुक्ति नियमावली जब बनेगी तो उन्हें भी सरकारी शिक्षक का ओहदा मिल जाएगा और तमाम सरकारी सुविधाओं के वे हकदार हो जाएंगे। नीतीश को नाराजगी उनकी भी झेलनी पड़ेगी, जिन्होंने शिक्षक प्रशिक्षण के बाद टीईटी या एसटीईटी पास कर लिया है और वैकेंसी का इंतजार कर रहे थे। बेकाबू अपराध और मुंह चिढ़ाते भ्रष्टाचार तो यकीनन नीतीश के सुशासन के दावे की धज्जी उड़ा देंगे। महागठबंधन के भीतर आपसी कलह और नीतीश की जनादेश के अपमान की आदत भी उनके लिए मुसीबत पैदा करेगी।

*शराबबंदी से बिगड़ेगा खेल*: शराबबंदी कानून के तहत पकड़े जाने और सजा के बारे में ये आंकड़े देखें। शराबबंदी कानून साल 2016 में लागू हुआ। अक्टूबर 2022 तक शराबबंदी कानून के तहत 4 लाख मामले दर्ज किए गए। तकरीबन 4.5 लाख लोग गिरफ्तार किए गए। इनमें लगभग 1.4 लाख लोगों पर ही मुकदमा चला। सिर्फ 1300 लोगों को दोषी ठहराया गया। सीएम नीतीश कुमार सर्वेक्षण के आंकड़े बता कर इतराते हैं कि बिहार में करीब दो करोड़ लोगों ने शराब का सेवन छोड़ दिया है। हालांकि इन आंकड़ों में सच्चाई नहीं दिखती। इसलिए कि पुलिस की लापरवाही या मिलीभगत से बिहार में पड़ोसी राज्यों से शराब की आवक बदस्तूर है। शराब के धंधेबाजों से पुलिस के पिटने-मार खाने की सूचनाएं भी समय-समय पर आती ही रहती हैं। कमाई के चक्कर में अवैध कारोबारी शराब बनाने में पैमाने का भी ख्याल नहीं करते हैं। नतीजा यह कि शराब जहरीली हो जाती है। सारण जिले के बाद पूर्वी चंपारण में जहरीली शराब से ढाई दर्जन से अधिक लोगों की मौत के बाद यह मामला गरमाया, लेकिन नीतीश ने मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने की घोषणा कर विवाद बढ़ने से रोक दिया था। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह बताते हैं कि शराबबंदी से सरकार को सालाना 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। पड़ोसी राज्यों से शराब आती है तो जाहिर है कि बिहार के पैसे से उन राज्यों का खजाना भर रहा है। शराबबंदी लागू होने के बाद से ही इस पर सवाल उठते रहे हैं पूर्व सीएम जीतन राम मांझी। वे कई बार शराबबंदी कानून वापस लेने की मांग कर चुके हैं। शराब पीने, बनाने से बेचने तक के आरोप में गरीबों की गिरफ्तारी का मानवीय पहलू भी वे बताते-गिनाते रहे हैं। आरजेडी भी तब तक नीतीश को शराब के मुद्दे पर कठघरे में खड़ा करता रहा, जब तक वे महागठबंधन का हिस्सा नहीं बन गए। बिहार के पूर्व डेप्युटी सीएम सुशील कुमार मोदी आरोप लगाते हैं कि सरकार मौत के आंकड़े छिपा लेती है। सारण जिले में जहरीली शराब से 100 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार पर आंकड़े छिपाने का तोहमत लगाया था।

*शिक्षक नियमावली बनेगी गले की फांस*: लंबे इंतजार के बाद सरकार ने शिक्षक नियुक्ति नियमावली बना दी। लगभग पौने दो लाख शिक्षकों की नियुक्ति के विज्ञापन भी निकाल दिए। आवेदन की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। इसके बावजूद नियमाली का शिक्षक समुदाय ही विरोध कर रहा है। बड़े पैमाने पर बिहार में नियुक्त संविदा शिक्षकों को इंतजार था कि नई नियमावली में उन्हें सरकारी ओहदा मिल जाएगा। बिहार में संविदा शिक्षकों की संख्या 2 लाख 74 हजार 681 है। इनका वेतन भुगतान समग्र शिक्षा अभियान के तहत होता रहा है। इसके अलावा टीईटी और सीटीईटी पास तकरीबन 50 हजार अभ्यर्थी हैं। कहां ये नियुक्ति का इंतजार कर रहे थे और सरकार ने इन्हें बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण करने की शर्त रख दी है। इसके लिए भी उन्हें तीन ही मौके मिलेंगे। कोढ़ में खाज की तरह डोमिसाइल नीति की समाप्ति है। यानी बिहार में शिक्षक बनने के लिए देश का कोई भी आवेदन कर सकता है। यानी लगभग सवा दो लाख परिवारों की नाराजगी नीतीश को झेलनी पड़ सकती है। शिक्षक अभ्यर्थी पटना में कभी प्रदर्शन कर रहे तो कभी विधानसभा का घेराव कर रहे। पुलिस की लाठियां उन पर बरस रही हैं। क्या ऐसे परिवारों के लोग नीतीश के साथ खड़े होंगे ?

*महागठबंधन में शामिल दलों में कलह*: नीतीश कुमार ने जब से महागठबंधन के साथ रिश्ता बनाया है, उन्हें लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा है। उनकी पार्टी जेडीयू के उपेंद्र कुशवाहा समेत कई नेता पहले ही साथ छोड़ चुके हैं। सोमवार को खुद उन्होंने स्वीकार किया था कि उनकी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी चिराग पासवान से मिले थे। वे बीजेपी के संपर्क में हैं। समस्तीपुर से वे सांसदी का चुनाव लड़ना चाहते हैं। आरजेडी के नेता नीतीश को कितना पसंद करते हैं, यह हाल ही शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के बीच विवाद के दौरान ही साफ हो गया था। उसके पहले सुधाकर सिंह उनके खिलाफ कैसी-कैसी बातें मीडिया में बोलते रहे हैं। इससे साफ है कि नीतीश कुमार भले ही राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी मोर्चे के संयोजक बन जाएं, पर बिहार में अपने ही महागठबंधन में वे सर्वस्वीकार्य नेता नहीं हैं।

*जनादेश की अपेक्षा भी नीतीश को पड़ सकती है भारी*: नीतीश कुमार वर्ष 2017 से ही जनादेश की अपेक्षा करते रहे हैं। साल 2015 में महागठबंधन के साथ उन्होंने चुनाव लड़ा। जनता ने उन्हें जितनी सीटें दीं, उस आधार पर वे बिहार के सीएम बने रहे। उन्होंने जनादेश का अपमान किया और बीजेपी के साथ सरकार बना ली। उनकी पाला बदल की राजनीति को देखते हुए 2020 के विधानसभा चुनाव में जनता ने उन्हें सबक सिखाया। उनकी पार्टी जेडीयू की सीटें घट कर 43 पर आ गईं। उन्होंने जनता का इशारा नहीं समझा और 2022 में फिर महागठबंधन के साथ आ गए। आने वाले लोकसभा और उसके साल भर बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें इस बात का एहसास होगा कि अपनी पलटू छवि के कारण उन्होंने कितना बड़ा नुकसान कर लिया है।

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