जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 15 नवम्बर :: विश्व प्रसिद्ध सूर्य देव की आराधना तथा संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए समर्पित छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
छठ पूजा का पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय
से शुरु होता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को दूसरा दिन लोहंडा और खरना होता है।कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को तीसरा दिन सन्ध्या अर्घ्य
का पूजा होता है जो मुख्य दिन माना जाता है। इस दिन शाम को सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को चौथा दिन सूर्योदय अर्घ्य, पारण का दिन और छठ पूजा का अंतिम दिन होता है। इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। उसके बाद पारण कर व्रत को पूरा किया जाता है।
इस वर्ष छठ पूजा 18 नवंबर दिन बुधवार को नहाय-खाय है। सूर्योदय का समय सुबह 06:46 बजे और सुर्यास्त का समय 05:26 है। 19 नवम्बर गुरुवार को लोहंडा और खरना है। इस दिन सूर्योदय का समय 06:47 और सुर्यास्त का समय 05:26 बजे है। 20 नवम्बर को सन्ध्या अर्घ्य (मुख्य दिन) है। सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। सुर्यास्त का समय 5.26 है। षष्ठी तिथि 19 नवम्बर को रात्रि 9.59 से शुरु होकर 20 नवम्बर को रात्रि 9.29 तक है। 21 नवंबर को सूर्योदय अर्घ्य तथा पारण है। इस दिन सूर्योदय का समय सुबह 06:49 बजे है।
इस वर्ष पटना जिला प्रशासन ने लोगों से संभव घर पर ही छठ पूजा करने और अगर तालाब किनारे पूजा करने जाते हैं, तो अर्घ्य के दौरान उसमें डुबकी नहीं लगाने की अपील की है। स्वास्थ्य विभाग ने छठ पर्व में कोरोना से बचाव को लेकर कई दिशा-निर्देश भी जारी किया है। जारी निर्देश में छठ पर्व के दौरान बुखार से ग्रस्त व्यक्ति, 60 साल से ऊपर के व्यक्ति, 10 साल से कम उम्र के बच्चे व अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रस्त व्यक्तियों को छठ घाटों पर नहीं जाने और प्रत्येक व्यक्ति को मास्क का प्रयोग करने, दो गज की दूरी का अनिवार्य रूप से पालन करने की सलाह दी गयी है।
देश भर में भगवान सूर्य के कई प्रसिद्ध मंदिर है और सभी का अपना-अपना महत्व है। लेकिन बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर का रोचक इतिहास है और सूर्यकुंड तालाब भी है, जिसका भी विशेष महत्व है।
यह मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए जाना जाता है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। इतिहासकार इस मंदिर के निर्माण का काल छठी-आठवीं सदी के मध्य के होने का अनुमान लगाते हैं जबकि अलग-अलग पौराणिक विवरणों पर आधारित मान्यताएँ और जनश्रुतियाँ इसे त्रेता युगीन अथवा द्वापर युग के मध्यकाल में निर्मित बताती हैं।
यहां भगवान सूर्य तीन स्वरूपों में विराजमान हैं। पूरे देश में यह एकमात्र सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में विराजमान हैं. गर्भगृह के मुख्य द्वार पर बाईं ओर भगवान सूर्य की प्रतिमा है और दायीं ओर भगवान शंकर के गोद में बैठी प्रतिमा है।
चैती और कार्तिक, दोनों छठ पर यहां लाखों की भीड़ जुटती है। कहा गया है कि सच्चे मन से जो नि:संतान सूर्य की उपासना करते हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। पुत्र प्राप्ति के बाद मां द्वारा आंचल में पुत्र के साथ नटुआ व जाट-जटिन के नृत्य करवाने की भी परंपरा है।
देव सूर्य मंदिर के सम्बन्ध में कहा जाता है कि देवासुर संग्राम में जब असुरों से देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र त्रिदेव रूप आदित्य भगवान हुए, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हुआ।
देश के 12 सूर्य मंदिरों में से एक पटना जिले का उलार सूर्य मंदिर है।भगवान भास्कर की पवित्र नगरी उलार दुल्हिनबजार प्रखंड मुख्यालय से पांच किलोमीटर दक्षिण एसएच 2 मुख्यालय पथ पर स्थित है। श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब सुबह की बेला में स्नान कर रहे थे, तभी गंगाचार्य ऋषि की नजर उन पर पड़ गई। यह देख ऋषि आग बबूला हो गए और शाम्ब को कुष्ठ से पीड़ित होने का श्राप दे दिया। तब नारद जी ने श्राप से मुक्ति के लिए उन्हें 12 स्थानों पर सूर्य मंदिर की स्थापना कर सूर्य की उपासना का उपाय बताया। दापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ऋषि मुनियों के श्राप के कारण कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। देवताओं के सलाह पर उलार के तालाब में स्नान कर सवा महीने तक सूर्य की उपासना की थी। इससे वे कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए थे। लोककथाओं और किवंदितियों में कई राजा- महाराजाओं द्वारा मंदिर में सूर्य उपासना कर मन्नत मांगने के बाद संतान प्राप्ति का जिक्र है।