जनपथ न्यूज़ डेस्क
गौतम सुमन गर्जना/वरीय संवाददाता/भागलपुर
8 जुलाई 2023
शिव सत्य हैं। शिवत्व कल्याणकारी है और कांग्रेस की जनकल्याणकारी भावनाएं जगजाहिर हैं। राजनीति का प्रारंभिक और अंतिम ध्येय भी लोककल्याण ही है, इसलिए भगवान शिव की तरह ही सियासत भी हर युग में प्रासंगिक रहती आई है और रहेगी भी। कबीलाई युग से लेकर लोकतांत्रिक युग तक में राजनीति के कई स्वरूप देखने को मिल सकते हैं, लेकिन उन सबका सार जनकल्याण ही रहता आया है, इस अकाट्य सत्य को कोई भी झुठला नहीं सकता है।
हां, इतना जरूर है कि सत्ता प्राप्ति से लेकर हर हाल में उसे बनाए रखने के लिहाज से कतिपय नेतृत्व या उनके प्रतिस्पर्धी व्यक्ति द्वारा जो किन्तु-परन्तु परोसे गए, उससे सामंतों, राजाओं, पार्टियों की गरिमा गिरी; पारस्परिक बैर और विरोध के भाव भी अवश्य पनपे, जिसके चक्कर में कुछ गैरकल्याणकारी कार्य भी हुए या हो जाते हैं। बावजूद इसके जनकल्याण की सर्वकालिक भावना यथावत रहती आई है।
संभवतया वक्त की कसौटी पर शिवत्व को भी इसी रूप में देखा-परखा गया है। वेद-पुराण-उपनिषद ऐसे आख्यानों से भरे पड़े हैं। कहा भी जाता है कि यदि आप शिव की अहर्निश उपासना सांसारिक कारणों वश या किसी अन्य खास कारण से नहीं कर पाते हैं तो अपने मनोमिजाज में, दिलोदिमाग में लोककल्याण की भावना बरकरार रखिये। और समझिए, शिव की उपासना हो गई। भाव पूजन से भी यह उत्कृष्ट पद्धति है।
शिव भक्ति की प्रथम और अंतिम निशानी लोककल्याण का भाव ही तो है। जिसमें जनकल्याण का भाव नहीं है, वह शिव का उपासक प्रथमदृष्टया तो हो ही नहीं सकता है। इसलिए सारतः ‘शिव’ होना कठिन है। ‘शिवत्व’ को धारण करना तो और भी कठिन। उसी प्रकार कांग्रेसी बनना, उसके विचारों पर चलना, उससे जुड़े रहना जितना सहज है, उसके अडिग और विश्वव्यापी विचारों पर कायम रहना उतना ही कठिन है, बहुत कठिन है। क्योंकि तमाम लोभों से आपको विरत यानी परे रहना होगा। हम इसे 40 साल से जीते आए हैं। इसलिए पार्टी नेतृत्व के प्रति सदैव आभारी और कृतज्ञ रहते हैं।
मेरी राय में कांग्रेस वह राजनीतिक पार्टी है, जो वामपंथियों और दक्षिणपंथियों के कठोर सियासी तौर-तरीकों से इतर एक मध्यम मार्ग अपनाती है, ताकि किसी को क्षति पहुंचाए बिना वह समग्र जन/जनता का कल्याण करती रहे। इस राह में बहुत विघ्न-बाधाएं हैं, लेकिन वक्त की कसौटी पर उसने साबित कर दिया है कि इनसे जूझने, इनसे निपटने का राजनैतिक हुनर उसके पास है। देश को आजादी दिलाने से लेकर उसे सबसे लंबे समय तक चलाने वाली पार्टी कांग्रेस ही रही है। कांग्रेस के कुछ लोगों और उसके मित्र दलों न जब तब उसकी पीठ में सियासी खंजर नहीं भोंका होता तो, कांग्रेस आज और अधिक मजबूत स्थिति में होती।
यह राजनैतिक विडंबना है कि जो लोग कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगाते हैं, उनकी नीतियां भी कहीं न कहीं कांग्रेस के मध्यम मार्ग से ही प्रभावित रहती आई हैं। कांग्रेस सरकारों की फ्लैगशिप योजनाओं की ही तो उन्होंने नकल की, थोड़ा हेर-फेर करके। समाजवादियों से लेकर राष्ट्रवादियों तक ने वक्त और जरूरत यानी अपने-अपने हिसाब से कांग्रेस को जी भरकर कोसा, उसे कमजोर करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए, लेकिन कांग्रेस अपनी मस्त चाल चलती रही। राष्ट्रहित में कांग्रेस ने उन्हें भी अपने साथ लेने में कोई हिचक नहीं दिखाई, जिन्होंने कभी कांग्रेस का धुर विरोध किया। यही उसकी वैचारिक विराटता है।
सच कहूं तो जो धर्मनिरपेक्ष है, जो दलित-आदिवासी, पिछड़ों और गरीब सवर्णों का दिल से कल्याण चाहता है, जो अल्पसंख्यक लोगों के राष्ट्रीय या सूबाई हितों का हिमायती है, जो क्षेत्रवादी, भाषावादी, लिंगवादी विचारों से परे है, वह ही सच्चा कांग्रेसी है। कांग्रेस ने सदैव उसका स्वागत किया है। ऐसे ही लोगों को कांग्रेस ने बढ़ाया है। इसलिए उसके हरेक कार्यों, निर्णयों में शिवत्व के दर्शन होते हैं। पवित्र सावन माह में शिव चर्चा और कांग्रेस चर्चा इसलिए हमने की, ताकि प्रत्यारोपित भ्रांतियों से पर्दा हटे। लोग जनकल्याण कारी मार्ग पर अग्रसर रहें। कांग्रेस के बारे में सुनियोजित रूप से फैलाई जा रही अफवाहों से सतर्क रहें। यही एक ऐसी पार्टी है जो आसेतु हिमालय में सबको साथ लेकर चल सकती है। जिसका एक धवल अतीत और स्वर्णिम भविष्य है, चाहे वर्तमान कितना भी संघर्षरत क्यों न हो।