जनपथ न्यूज़ :- हर इंसान वर्तमान में हर पल का आनंद लेते हुए दिनचर्या व्यतीत कर रहा है समय का चक्र देखिए आज ऐसा लग रहा है कि “ कलयुग में सतयुग “ आ गया है। इंसान का कितना सादा जीवन हो गया है । सदा भोजन दाल रोटी , कुछ कपड़े ,एक घर बस इतना ही काफी लग रहा है।थोड़े में भी आनंद आ रहा है।सुबह दुर्गा पूजा , फिर रामायण, महाभारत, कभी – कभी समाचार , धर्म ग्रंथ राव कुछ किताबें पढ़ना,शाम को हवन,आरती फिर महाभारत ,रामायण। समाज के सारे घर के सदस्यों का यही रूटीन हो गया है।सब मिल कर काम करते हैं।भागदौड़ की जिंदगी में ठहराव आ गया है। पुरानी बातों को याद कर चर्चा , हर अच्छे – बुरे कर्मों की समीक्षा हर इंसान कर रहा है ।पाप और पुण्य की समझ इंसान में बढ़ रही है। ईश्वर से इंसान क़रीब आ रहा है ।शांति , संतोष उचविचर सबके मन मे उत्पन्न हो रहा है। सोना , चांदी, धन ,सुंदर ड्रेस कोई काम नही आ रहा। थोड़े में गुजारा हो रहा है । यही तो है:-
संतोष धन

सब कुछ था ,बस यही तो इंसान के पास नही था।जो एकांत घर में जीवन व्यतीत करने पर प्राप्त हूवा ।दुनिया में इंसान ज़िंदगी को मशीन बना दिया था।लालच के साथ सब कुछ हासिल करने की युद्ध स्वयं से लड़ता है।शांति सुकून से कोसो दूर हो गया था। जो इंसान नग्न आँखों से काफ़ी दूर सूर्य, चाँद , सितारे को देखता है, पर आज एक सूक्ष्म वायरस जिसको वो देख नही सकता …वो कोरोंना वायरस इंसान को इंसान बना दिया।संतोष – सुकून दिया। लालच – लोभ और ख़्वाब को कम किया।राजा हो या रंक सबको एक नज़र से देखा। जिसके साम्राज्य में सूर्य उदय और अस्त होता था उसके राजा, प्रधानमंत्री और स्वस्थ्य मंत्री पर भी दया नही किया।इंसाफ़ – न्याय को सत्य से परिभाषित कर अंधे का ढोंग रची दुनिया को सबकुछ दिखा दिया।आज समाज में जिस इंसान के पास धन है वो दुनिया की यात्रा नही कर सकता।धन्य हो कोरोना इंसान ने मृत्यु का डर पैदा कर के जीवन का महत्व इंसान को सिखया।संसार में अलग-अलग रंग, रूप, गुण और आचार-विचार वाले व्यक्ति दिखाई देते हैं।संसार में द्वैत यानी अत्याचारी , आतंकवादी भी दृष्टिगोचर होता है। इस दिखाई देने वाली भिन्नता के बीच में तुम कौन हो, जरा इस पर विचार करके देखो! और यदि तुम अपने आपको सही रूप में पहचान लोगे तो मौन हो जाओगे। तुम यह भी समझ जाओगे कि उस परम तत्व का प्रतिपादन वाणी के द्वारा संभव नहीं है। वह तो अनिर्वचनीय है और ईश्वर मार्ग के अनुसरण और ईश्वर भजन के द्वारा व्यक्ति का अंतःकरण शुद्ध होता है।ईश्वर प्रारम्भ और अंतिम सत्य है।माटी का शरीर है,खेल सके तो खेल ! बाज़ी रब के हाथ में , पूरा विज्ञान फेल !!
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इंसान बारम – बार सोचो कि यदि
आँसू न होते तो आंखे इतनी खुबसूरत न होती,
दर्द न होता तो खुशी की कीमत न होती , *कोरोंना * न होता तो आज *संतोष *नही मिलता ,
अगर मिल जाता सब-कुछ केवल चाहने ही से
तो दुनिया में “ऊपर वाले” की जरूरत ही न होती।
*संतोष धन
अनमोल ख़ज़ाना *

मृत्युंजय कु सिंह
अध्यक्ष
बिहार पुलिस एसोंसीएशन

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