जनपथ न्यूज डेस्क
गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
23 मई 2023

कोई झोलाछाप डॉक्टर बुखार को कैंसर साबित करने पर तुला हुआ हो तो अनजान लोग भरोसा कर सकते हैं, लेकिन असल डॉक्टर मरीज को देखकर ही असलियत समझ जाता है। जो कहते थे कि हमारी मंशा साफ है,कोई कमी हुई तो चौराहे पर आ जाऊंगा, उन्होंने खुद ही अपने द्वारा जारी नोट वापस लेकर यह साबित कर दिया है कि डाॅ.मनमोहन सिंह ने बिल्कुल सही कहा था। नोटबंदी क्यों की गई, नोटबंदी करने वाले अनर्थशास्त्री न तब बता पाए थे,न आज बता पा रहे हैं। मेरी राय में नोटबंदी को तब तक एक घोटाला माना जाना चाहिए,जब तक इसका स्पष्ट उद्देश्य नहीं बताया जाए। इतना बड़ा देश चलाने के लिए आर्थिक फैसले यूं ही मौज लेने के लिए नहीं लिए जाते। उनका स्पष्ट उद्देश्य होता है। अगर वह उद्देश्य बताया नहीं जाता तो इसका मतलब भारी गड़बड़ी है।
बड़े नोटों से पैसे की जमाखोरी आसान होती है, छोटे नोट मुसीबत पैदा करते हैं। इसलिए हजार के नोट बंद करके दो हजार के नोट लाए गए। इसके अलावा नोटबंदी में क्या हुआ? जनता को बेवजह लाइन में लगाकर बताया गया कि महामानव कड़क फैसले ले सकते हैं। कई लोग लाइन में लगकर मारे गए। बिना वजह लबालब भरे कुएं में कूद जाना भी कड़क फैसला होता है लेकिन ऐसा फैसला कौन लेता है, वही या तो जिसका दिमाग चल गया हो, या फिर वह बहुरुपिया, जो लोगों को उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करने में माहिर हो।

न भ्रष्टाचार खत्म हुआ,न काला धन आया,न विदेशी धन आया, न आतंकवाद की कमर टूटी,न नक्सलवाद खत्म हुआ, कैश पहले से ज्यादा सर्कुलेशन में आ गये, तो नोटबंदी से आखिर हुआ क्या? अगर इससे सचमुच में देश को कोई फायदा हुआ तो सरकार ने जनता को अबतक बताया क्यों नहीं?
दरअसल सही मायने में असल फायदा देश के चोरों और लुटेरों का हुआ है। देश की हर पार्टी काले धन से चलती है। भाजपा पहले संदिग्ध इलेक्टोरल बॉन्ड लाई और 95 फीसदी कॉरपोरेट चंदा अपने खाते में किया। फिर छोटी नोट बंद करके बड़ी नोट लाई गई। नोटबंदी के बाद भाजपा ने दिल्ली में फाइव स्टार दफ्तर बनवाया। देश के हर जिले में आलीशान कार्यालय बनवाया। सत्तर साल वाली पार्टी का कार्यालय दान के बंगले में और सात साल वाली पार्टी ने पूरे देश में हवामहल बनवा लिए। कैसे और यह पैसा आखिर कहां से आया…?

नोटबंदी के बाद वैश्विक कोरोना महामारी आया। विदेशों से काला धन निकले, चौकीदार के दोस्त ने विदेशों में दर्जनों शेल कंपनियां बना डालीं। महामारी के दौरान मात्र दो साल में उसने 12 लाख करोड़ रुपये कमा डाले। जब देश की अर्थव्यवस्था माइनस में पहुंच गई,जब करोड़ों रोजगार चले गए, जब पूरे देश का व्यापार ठप था, तब इसके घर में आखिर कौन सा कुबेर का खजाना टपक रहा था?
नोटबंदी के बाद 2000 के नोटों की बड़े पैमाने पर जमाखोरी की बात आई थी। आपको याद होगा अप्रैल, 2018 में देश भर में एटीएम के बाहर लंबी-लंबी कतारें लग गई थीं। सवाल उठा कि बाजार में नोटों की जमाखोरी हो रही है। सवाल यह भी उठा कि आखिर 2000 के नोट कहां गए? आज तक की खबर के मुताबिक, उस समय अकेले देवास प्रेस में ढाई हजार करोड़ कीमत के 2000 के नोट रोज छापे जा रहे थे। उस समय यह नोट बंद नहीं किए गए।

ऐसा लगता है कि सात साल की संगठित लूट के बाद सोच समझकर 2000 के नोट बंद किए गए हैं। नोटबंदी और 2000 के नोटों की लॉन्चिंग जिस मकसद से हुई थी, वह मकसद पूरा हो गया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर वह मकसद क्या था? अगर यह कोई बड़ा खेल नहीं है, तो सरकार ने आजतक इन फैसलों की कोई ठोस वजह क्यों नहीं बताई?

जनता हिंदू-मुसलमान में मगन है। देश के युवा खोपड़ी पर रामनामी बांधे चंदन लगाए मगन हैं, नीचे से उनका कट रहा है। उनके भविष्य को बधिया किया जा रहा है। वे न भगवान राम से प्रेरणा ले रहे हैं, न कृष्ण से, न अपनी आंख के सामने हो रहे अन्याय से। देश आराम से लुटि जा रहा है। भाजपा समर्थक हिंदू बौराए हुए हैं कि मुल्ले टाइट हैं, असल में अपने पुर्जे दशकों के लिए ढीले किए जा चुके हैं और पट्टा-बारदाना सब गायब कर दिया गया है। इस देश में 50 सालों की ​रिकॉर्ड बेरोजगारी आई तो इसका असली भुक्तभोगी हिंदू ही है। जब तक तुम्हें पता चलेगा, लुटेरा झोला उठाकर जा चुका होगा- लंदन, एंटीगुआ, कतर, कुवैत, कैलासा और तब लुट-पिटकर तुम यहीं घुइया छीलना।

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