विपक्षी एकता की कहानी के कवायद वाले किस्से

जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
24 अप्रैल 2023

सत्ता परिवर्तन की जमीन तैयार करने में तमाम विपक्षी नेताओं की पहली पसंद बिहार बनता जा रहा है। बीजेपी को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फेंकने की मंशा लिए जो नेता ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं, उनमें महागठबंधन के नेता और बिहार के सीएम नीतीश कुमार के अलावा बंगाल की सीएम ममता बनर्जी शामिल हैं। तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन, तेलंगाना के सीएम केसी राव और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के नाम हैं। बदलाव तो बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी चाहते हैं, लेकिन ये तीनों नेता कांग्रेस के साथ कदमताल करने में असहज महसूस कर रहे हैं। इसलिए मुद्दों पर इनका साथ तो मिल सकता है, लेकिन चुनाव मैदान में ये नेता अपनी पार्टी को अकेले उतारना ही पसंद करेंगे। समय-समय पर ये बोलते और संकेत भी देते रहते हैं।

*केसीआर और आदित्य ठाकरे आए थे बिहार*

बिहार में नीतीश कुमार ने जब एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के साथ सरकार बनाई तो सबसे पहले उनसे मिलने आए थे। तेलंगाना के सीएम केसी राव। उसके बाद उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे भी आए थे। महागठबंधन ने जब नीतीश कुमार को बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को लामबंद करने का काम सौंपा तो वे लालू यादव के साथ सोनिया गांधी से मिलने गए थे। सात महीने बाद उन्हें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिल्कार्जुन खरगे ने बातचीत के लिए दोबारा दिल्ली बुलाया। खरगे के घर पहंचे नीतीश से राहुल गांधी ने भी बातचीत की। अब तो नीतीश विपक्षी एकता की बात करने पश्चिम बंगाल के दौरे पर निकलने की तैयारी में हैं। हालांकि ममता बनर्जी से उन्हें किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं दिखाई देती। इसलिए कि ममता कांग्रेस के नाम पर ही भड़कती रही हैं।

*ममता क्यों नहीं सटना चाहती हैं कांग्रेस से*

विदित हो कि ममता बनर्जी कांग्रेस से ही निकली हुई नेत्री हैं। अब अपनी पार्टी टीएमसी की प्रमुख हैं और बंगाल में वामपंथी दलों के साथ कांग्रेस को भी वे अपना समान दुश्मन मानती हैं। बंगाल कांग्रेस के नेता भी उनके खिलाफ बयानबाजी से परहेज नहीं करते हैं। दुश्मनी का आलम यह कि इसी साल बंगाल की एक विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस और वामपंथी दलों ने गठजोड़ कर ममता की पार्टी टीएमसी के उम्मीदवार को परास्त कर दिया। पहले यह सीट टीएमसी की थी। इससे ममता बनर्जी का गुस्सा सातवें आसमान पर है। वे भाजपा की तरह ही कांग्रेस और वाम दलों को भी अछूत मानती हैं। बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा की मंशा पर पानी फेरने वाली ममता बनर्जी ने तीसरी बार सीएम की शपथ लेने के बाद सबसे पहले विपक्षी एकता की पहल शुरू की थी। उन्होंने तभी स्पष्ट कर दिया था कि कांग्रेस रहित विपक्ष की वह पक्षधर हैं।

*केसीआर ने एकता मुहिम से कन्नी काट ली है*

नीतीश कुमार से मिलने के लिए जब केसीआर पटना आए थे तो उन्होंने पीएम फेस पर नीतीश कुमार का मन टटोलना चाहा। नीतीश कुमार भले इससे इनकार करते हैं कि वे पीएम के रेस में हैं, लेकिन उन्होंने केसीआर के बार-बार कुरेदने पर भी कोई सटीक जवाब नहीं दिया। केसीआर भी समझ गए कि उन्हें नीतीश से और उम्मीद बेमानी है। शायद यही वजह रही कि केसीआर ने जब अपनी टीआरएस को बीआरएस बनाने के लिए समारोह किया तो नीतीश कुमार को न्यौता तक नहीं दिया। बड़ा सवाल यह कि अब किस मुंह से नीतीश कुमार उनसे विपक्षी एकता पर बातचीत कर पाएंगे।

*स्टालिन को तेजस्वी पसंद, पर नीतीश नहीं*

बात तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन की करें तो उन्हें भी बिहार से लगाव है, लेकिन उसमें नीतीश के लिए कोई जगह नहीं। उन्हें बिहार के डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव का साथ तो पसंद है, लेकिन नीतीश कुमार नहीं। इसका जीता जागता उदाहरण दो मौकों पर मिला। पहली बार अपने जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने बिहार से तेजस्वी यादव को तो बुलाया, लेकिन नीतीश को पूछा तक नहीं। दूसरा कार्यक्रम सामाजिक न्याय के मुद्दे पर उन्होंने दिल्ली में किया। उसमें झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और बिहार के डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव तो शामिल हुए, लेकिन नीतीश कुमार को किनारे छोड़ दिया गया। इसी से समझा जा सकता है कि ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार उनके पास विपक्षी एकता की बात किस मुंह से करेंगे।

*किसी को नीतीश तो कुछ को कांग्रेस नापसंद*

सच तो यह है कि कई नेताओं को नीतीश कुमार का चेहरा पसंद नहीं है। कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें कांग्रेस का हाथ पकड़ने से परहेज है। ऐसे में विपक्षी एकता बनने के पहले ही बिखरती नजर आ रही है। हालांकि लोकसभा चुनाव में अभी वक्त है। आखिर तक मन बदल सकता है। लेकिन फिलहाल एकता की कोशिश के कामयाब होने में संदेह ही दिखता है। हां, यह पुख्ता तौर पर जरूर कहा जा सकता है कि बिहार को छोड़ कर विपक्षी एकता की कल्पना बेमानी होगी। इसकी झलक भी मिलती रही है, जब केसीआर, आदित्य ठाकरे, हरीश रावत और सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे नेता बिहार आकर महागठबंधन के नेताओं से मिलते हैं।

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