भगवान चित्रगुप्त के पुत्रों का (कायस्थों की) ननिहाल नागवंशी
जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 15 नवम्बर :: यमलोक में संसार के सभी प्राणियों का पाप पुण्य का लेखा-जोखा रखने के लिए भगवान चित्रगुप्त विराजमान हैं। लेखा-जोखा के आधार पर हीं महाराज यमराज मनुष्य के मृत्यु के उपरांत मनुष्य को का दण्ड निर्धारित करते हैं उसके बाद हीं, स्वर्ग-नर्क का दरवाजा खोला जाता है।
भगवान चित्रगुप्त एक प्रमुख हिन्दू देवता हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी महाराज अपने दरबार में मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करके न्याय करने करते हैं। आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रुप में होते हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते हैं और अंत समय में ये सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं एवं इन्हीं के आधार पर जीवों के पारलोक व पुनर्जन्म का निर्णय सृष्टि के “प्रथम न्यायाधीश” भगवान चित्रगुप्त हीं करते हैं।
विज्ञान ने यह भी यह सिद्ध किया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं । इसे ही हजारों बर्षों पूर्व हमारे वेदों में लिखा गया हैंं।
जिस प्रकार शनि देव सृष्टि के प्रथम दण्डाधिकारी हैं, उसी प्रकार भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश है। मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक का निर्णय लेने का अधिकार भगवान चित्रगुप्त के पास है, अर्थात किस को स्वर्ग मिलेगा और कौन नर्क मेंं जाएगा। इस बात का निर्धारण भगवान धर्मराज चित्रगुप्त जी द्वारा ही किया जाता है। भगवान चित्रगुप्त जी भारत [आर्यावर्त] के कायस्थ वंश के जनक देवता हैं। कायस्थ भगवान चित्रगुप्त के वंशज हैंं।
भगवान कायस्थ धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी महाराज द्वारा पाप-पुण्य के निर्णय के अनुसार हीं न्याय करने वाले, न्यायकर्ता, महाराज यमराज भी पालन करते हैं।
मंत्र
*ॐ नमो भगवते चित्रगुप्ताय नमः
अस्त्र लेखनी मसि एवं तलवार असि
जीवनसाथी सुर्यपुत्री दक्षिणा नंदिनी
एरावती शोभावती*
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा की कई संताने हुई थी, जिनमें ऋषि वशिष्ठ, नारद और अत्री जो उनके मन से पैदा हुए थे और उनके शरीर से पैदा होने बालों में पुत्र, जैसे धर्म, भ्रम, वासना, मृत्यु और भरत सर्व विदित हैं लेकिन भगवान चित्रगुप्त के जन्म अवतरण की कहानी भगवान ब्रह्मा जी के अन्य बच्चों से कुछ भिन्न है। भगवान चित्रगुप्त का जन्म भगवान ब्रह्मा जी के काया (शरीर) से हुआ है, इसलिये भगवान चित्रगुप्त को कायस्थ जाति की संज्ञा से नामित किया गया है। भगवान चित्रगुप्त के 12 पुत्र हुए थे भगवान चित्रगुप्त की दो पत्नी थी। पहली पत्नी देवी शोभावती थी, जिससे 8 पुत्र और दूसरी पत्नी देवी नंदिनी थी, जिससे 4 पुत्र हुए थे। इस प्रकार भगवान चित्रगुप्त के कुल 12 है। इन पुत्रों को भानु, विभानु, विश्वभानु, वीर्यभानु, चारु, सुचारु, चित्र (चित्राख्य), मतिभान (हस्तीवर्ण), हिमवान (हिमवर्ण), चित्रचारु, चित्रचरण और अतीन्द्रिय (जितेंद्रिय) नाम से नामित किया गया है। (प्रचलित नाम श्रीवास्तव, सूर्यध्वज, वाल्मीकि, अष्ठाना, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण और कुलश्रेष्ठ है)।
भगवान चित्रगुप्त के इन 12 पुत्रों का विवाह नागराज वासुकि की 12 कन्याओं से हुआ था जिससे कि कायस्थों की ननिहाल नागवंशी है। माता नंदिनी के 4 पुत्र कश्मीर में जाकर बसे तथा ऐरावती एवं शोभावती के 8 पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, ओडिशा तथा बंगाल में जा बसे है। बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था।
भारत के कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्यभारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे थे।
भाईदूज के दिन भगवान चित्रगुप्त की जयंती मनाया जाता है। इस दिन पर कलम-दवात की पूजा (कलम, स्याही और तलवार पूजा) की जाती है।