तेजस्वी को सीएम नहीं बनने देंगे नीतीश,पोस्टर विवाद इसके संकेत

जनपथ न्यूज़ डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
12 जुलाई 2823

बिहार में एक बार फिर से महागठबंधन में भारी दरार आ चुका है और ये अगर सही मायने में कहा जाए तो बस कुछ दिनों का ही मेहमान रह गया है. इसका एक संकेत सीएम नीतीश कुमार के राजगीर दौरे के वक्त दिखा. मलमास मेले के लिए लगाए गए जगह-जगह पोस्टर में सिर्फ नीतीश कुमार नजर आए जबकि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव नदारद थे. स्वभाविक है ये बिहार की आनेवाली राजनीति का ये एक बड़ा संकेत हैं, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है. डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की तस्वीर को इन पोस्टर्स से गायब होने के पीछे फिलहाल कयास ये लगाए जा रहे हैं कि राज्य के शिक्षा मंत्री और आरजेडी नेता चंद्रशेखर और विभाग के आईएएस अधिकारी केके पाठक के बीच खींचतान के चलते महागठबंधन के दो महत्वपूर्ण दल जेडीयू-आरजेडी में भारी दरार आ गया है. हालांकि, तेजस्वी ने महागठबंधन में टूट की बातों को खारिज किया है. दरअसल, गठबंधन की सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी ही यही होती है कि ये निहित स्वार्थों पर टिका होता है. इसमें न किसी विचारधारा की कमिटमेंट होती है और न ही खास उद्देश्य को लेकर जनता का परोपकार इसका मकसद होता है. राजनीति में असरवाद ही हावी होता है. सीएम नीतीश कुमार को जब लगा कि उनकी बीजेपी के साथ नहीं बन रही है या ऊपर से प्रेशर है तो उन्होंने एक पलटी मारी.

*कमजोर हो गया महागठबंधन*

ऐसे नीतीश कुमार पहले भी कर चुके हैं. राजनीति में ये बहुत आम हो चुका है और इसे खराब भी नहीं माना जाता है. शायद आज की नैतिकता इसी राजनीति को प्रोत्साहित कर रहा है. इसलिए अपने बेस को मजबूत करने और अपने मुख्यमंत्री की कुर्सी को बरकरार रखने के लिए उन्होंने ये गठबंधन किया, जिसमें कांग्रेस पार्टी भी शामिल हो गई,आरजेडी भी शामिल हो गई.
पता नहीं चलता है कि नीतीश कुमार किसी मुद्दे पर आरजेडी के विरोध में बोलते हैं तो किसी मुद्दे को लेकर बीजेपी के खिलाफ. जब मौका आता है तो फिर वे उन दोनों के साथ अलग-अलग सरकार बना लेते हैं. अब ये साफ हो चुका है कि ये महागठबंधन जेडीयू और आरजेडी के बीच नहीं चलने वाला है. गठबंधन जड़ से काफी कमजोर हो चुका है. सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी तेजस्वी दोनों एक दूसरे के विरोधी हो चुके हैं, और इसी आधार पर बिहार की राजनीति तय की जा रही है.

*दोबारा बीजेपी के साथ जा सकते हैं नीतीश*

राजनीति में कुछ भी असंभव हीं है. ऐसा मुमकिन है कि फिर से बीजेपी के साथ नीतीश कुमार सरकार बनाए या केन्द्र का सरकार बनाने में हस्तक्षेप हो. अब देखना ये होगा कि फिलहाल तो महागठबंधन टूटने की कगार पर है, लेकिन जब ये टूटेगा उसके बाद बिहार की राजनीति किस तरह से बदलेगी और जनता जनार्दन यानी पब्लिक वोटिंग बिहेवियर कैसा होगा? क्योंकि हर बार जनता के साथ ही धोखा होता है. चुनाव से पहले का गठबंधन कुछ और होता है, चुनाव के बाद का गठबंधन कुछ और हो जाता है. ऐसी घटना बिहार में बार-बार होती रही है, अगर आप पुराने चुनावों पर गौर करें. ऐसे में ये दरार महागठबंधन में आने के बाद ये साफ है कि ये सरकार जरूर गिरेगी.

*तेजस्वी की तस्वीर गायब होना होना संकेत*

राजगीर मेला सिर्फ नीतीश कुमार की तस्वीर होना, जबकि डिप्टी सीएम तेजस्वी नदारद… ये छोटे-छोटे संकेत हैं. हालांकि, ये बातें मायने नहीं रखती है, बल्कि ये तो प्रोपगेंडा है. अंदर ध्यान देकर देखिए. राजनीति में गहन सोच रखना चाहिए और गूढ़ मंत्र पर काम करना चाहिए. जो चीजें इतने दिनों तक अंदर दबी थी वो इस तरह से उभर कर सामने आ रही है.

जहां तक तेजस्वी को बिहार के सीएम बनाने की बात है तो कोई क्यों चाहेगा कि मेरे साथ से कमान चला जाए. लंबे समय तक नीतीश कुमार सीएम रहे हैं और पॉपुलर रहे हैं. महिलाओं के चहेते रहे हैं. नीतीश कुमार को तो ऐसा लगता था कि वो कमान संभालें और बाकी लोग उनका सपोर्ट करे. इस तरह की जो भी राजनीति होती है, उसमें अगर किसी का नुकसान होता है, अगर कोई पिसता है तो वो है जनता-जनार्दन. हम बार-बार ठगे जाते हैं. ऐसे में जितना खतरा इस वक्त नीतीश को बीजेपी से है उतना ही खतरा आरजेडी से भी है. ऐसे में ये देखना है कि कोई तालमेल न हो जाए. केन्द्र और राज्य के बीच भी कोई तालमेल हो सकता है. तेजस्वी के ऊपर रेलवे फंड को मिसयूज को लेकर आरोप लगे हैं. इससे तो लग रहा है कि कहीं गाज गिर रही है.
बिहार में जो कुछ हो रहा है ये सही है कि वो नया कुछ नहीं हो रहा है. लेकिन एक पर्सनलिटी क्रैश होता है. दूसरी तरफ लालू यादव सक्रिय होकर मार्ग दर्शन दे रहे हैं. ऐसी स्थिति में फूट पड़ना तो स्वभाविक है. लालू यादव ने जिस तरह से बैठक में फूहड़ मजाक किया था, उसके बाद से ये लगा था कि ये गठबंधन बहुत दुरूस्तन नहीं है, इसका भविष्य बहुत सकारात्मक नहीं है.

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