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मृत्युंजय कु सिंह के कलम से

जनपथ न्यूज़:- इस दुनिया में हर इंसान को मालूम है कि जीवन यात्रा में “वक़्त और सांस “ बहुत कीमती हैं, जो एक बार चली गई तो लौट कर कभी वापस नहीं आते है।हर इंसान के जीवन में मुस्कुराहट, अपनापन, सुख , आनंद और मृत्यु उपरांत अच्छे उपदेश , विचार , कार्य जो समाज में जीवंत रहते है ये सब उसके स्वयं की बहुमूल्य संपत्ति हैं। इनका जी भर के उपयोग इंसान हर वक़्त करता है और उसके लोग करते है। आज पूरा विश्व कोरोंना से भयभीत है। कोरोना से युद्ध लड़ना सबसे आसान और सबसे कठिन भी है।घर बैठ गये तो जीत गये और बाहर निकले तो हार गये। जीत – हार स्वयं के हाथ में है। शायद दुनिया के इतिहास में ये पहला युद्ध होगा जिसे घर बैठकर जीतना है। इंसान के जिंदगी में चुनौतियां हर किसी के हिस्से नहीं आती,क्योंकि किस्मत भी किस्मत वालों को ही आज़माती है।कोई भी दुख मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं होता है।ए सत्य है कि ज़िंदगी में हारा वही जो साहस – रणनीति से लड़ा नहीं।हर इंसान ख़ुद की जिम्मेदारी समझे । सरकार के हर निर्देश आदेश का पालन करे।सभी का कर्तव्य है , स्वयं की रक्षा , परिवार की रक्षा , मानव सभ्यता की रक्षा दृढ़ संकल्प के साथ करे।आज कोरोंना से विकसित यूरोपियन देश सहित अमेरिका अपने जनता के साथ मिल कर मज़बूती से मुक़ाबला कर रहा है। हम सभी भारत माँ के लगभग एकसौ तीस करोड़ जनता सरकार के साथ मिलकर दृढ़ संकल्पित होकर कोरोंना से लड़ रहे है और हम जीतेंगे। हमारे साथ ईश्वर और महापुरूषों के बताए मार्ग भी शक्ति और ऊर्जा प्रदान कर रही है। द्वापर के वक़्त कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य के धोखे से मारे जाने पर अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हो गये।उन्होंने पांडव सेना पर एक बहुत ही भयानक अस्त्र “नारायण अस्त्र” छोड़ दिया।इसका कोई भी प्रतिकार नहीं कर सकता था।यह जिन लोगों के हाथ में हथियार हो और लड़ने के लिए कोशिश करता दिखे उस पर अग्नि बरसाता था और तुरंत नष्ट कर देता था।भगवान श्रीकृष्ण जी ने सेना को अपने अपने अस्त्र शस्त्र छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर खड़े रहने का आदेश दिया। और कहा मन में युद्ध करने का विचार भी न लाएं, यह उन्हें भी पहचान कर नष्ट कर देता है।नारायण अस्त्र धीरे धीरे अपना समय समाप्त होने पर शांत हो गया।इस तरह पांडव सेना की रक्षा हो गयी।इस कथा प्रसंग का औचित्य समझें।हर जगह लड़ाई सफल नहीं होती, प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए हमें भी कुछ समय के लिए सारे काम छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर, मन में सुविचार रख कर एक जगह ठहर जाना चाहिए* तभी हम इसके कहर से बचे रह पाएंगे।कोरोना भी अपनी समयावधि पूरी करके शांत हो जाएगा।*श्रीकृष्ण * जी का बताया हुआ उपाय है, यह व्यर्थ नहीं जाएगा।आगे आपको एक और महान विद्वान की भावनाओं और उपदेशों से अवगत कराता हूँ :- महामारी के समय *आचार्य चाणक्य * द्वारा कही गई इन पांच बातो को कभी नहीं भूलना चाहिए।चाणक्य की इन बातों को ध्यान में रखें।
1. विपदा आने पर गंभीरता से कार्य करना चाहिए।राष्ट्र की रक्षा के लिए जिम्मेदारी नागरिक की भूमिका को नहीं भूलना चाहिए।
2. संकट को रोकने के लिए व्यक्ति को भेदभाव से रहित होकर राष्ट्र की रक्षा के लिए सहयोग करना चाहिए और दूसरों लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए।
3. मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज से ही उसका अस्तित्व है। संकट को रोकने के लिए जागरुक व्यक्तिओं को पूरी निष्टा साहकारिता की भावना से कार्य करना चाहिए।
4. प्रत्येक विपदा एक जैसी नहीं होती है उसका स्वरुप अलग अलग भी हो सकता है।इसलिए विपदा के स्वरुपों को समझते हुए उसके रोकथाम के उपायों के पालन करना चाहिए।
5. किसी भी संकट से उभरने के लिए आत्मविश्वास का बना रहना बहुत ही जरुरी है।बड़े-बड़े युद्ध संसाधनों से नहीं बल्कि आत्मविश्वास जीते गए हैं, इसलिए संकट के समय धैर्य और आत्मविश्वास ही व्यक्ति की सबसे बड़ी पूंजी होती है।
उपरोक्त घटना और उपदेश को स्वयं चिन्तन – मनन कर अमल करे और कराए। जीवन यात्रा क्रम में दोस्त,किताब,रास्ता, कर्म और सोच गलत हों तो गुमराह हो जाती हैं और सही हो तो जिंदगी को स्वर्ग की अनुभूति करा देतें हैं।स्वयं घर में रहकर ही इस कोरोंना महामारी से जीत सकते है ।

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