शनिवार से शुरु हुई जातीय जन-गणना

न्यूज डेस्क/जनपथ न्यूज़
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
16 अप्रैल 2023

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट जाति आधारित जन-गणना की शुरुआत शनिवार 15 अप्रैल से शुरु हो चुकी है। मुख्यमंत्री की गणना के साथ इसकी शुरुआत हुई है। लेकिन, सत्तारूढ़ जनता दल यूनाईटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की जाति के लोग कह रहे हैं कि उनकी जाति को जातीय जनगणना में जातीय कोड ही नहीं दिया गया है। ब्राह्मण से भी बाहर रखा गया है। जाति का आधा नाम लिखकर कन्फ्यूज किया गया है। उसके अलावा, गोत्र को भी अलग जाति बताकर बांटने की साजिश रची गई है।

*भूमिहार ब्राह्मण आखिर क्यों हैं कन्फ्यूज हैं*

दरअसल, अंग्रेजों के जमाने में हुई जातीय जनगणना (1931) में भूमिहार ब्राह्मण या बाभन के रूप में दर्ज की गई जाति के लोग सन् 1872 के पहले ऐतिहासिक रिकॉर्ड में भी ब्राह्मण लिखे गए हैं। *जनपथ न्यूज़* के पास ऐसे दो दर्जन पन्ने हैं, जिनमें इस जाति को ब्राह्मण और आगे भूमिहार ब्राह्मण या बाभन लिखा गया है। गुलामी के समय 1931 की उस जातीय जनगणना के बावजूद भूमिहार ब्राह्मण खुद को ब्राह्मण से अलग नहीं मानते हैं और अन्य ब्राह्मणों के साथ इनका बेटी-रोटी का रिश्ता भी कायम है। जातीय जनगणना 2023 में जातियों के लिए नाम-कोड जारी किए जाने के पहले भूमिहार ब्राह्मण शांत थे, लेकिन गणना की शुरुआती तारीख के साथ ही इनका विरोध बढ़ता जा रहा है। पहला विरोध यही है कि इन्हें ब्राह्मणों से अलग कैसे गिना जा सकता है। भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच के प्रखर नेता आशुतोष कुमार जातीय जनगणना के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। वह कहते हैं कि पहले तो भूमिहार ब्राह्मणों को ब्राह्मणों से अलग करने की नीति अंग्रेजों ने अपनाई और अब नीतीश सरकार इस तरह से बांट रही है। उनके बांटने से रिश्तेदारियां तो नहीं प्रभावित होंगी, लेकिन ब्राह्मणों की राजनीतिक हिस्सेदारी प्रभावित करने की साजिश जरूर सफल हो जाएगी।

*सरकार की बनाई जाति के कोड से संशय*

भूमिहार ब्राह्मण नेता आशुतोष का कहना है कि जातीय जनगणना के कोड में 126 पर ब्राह्मण हैं। अगर सारे भूमिहार ब्राह्मण 126 में जाते हैं, तब तो ठीक, लेकिन अगर कुछ या ज्यादा लोग सरकार की ओर से नई घोषित जाति ‘भूमिहार’ के लिए 142 नंबर कोड दर्ज करा देते हैं तो सही आंकड़ा कभी नहीं निकल सकेगा। दरअसल, 142 नंबर कोड में सिर्फ ‘भूमिहार’ लिखने के कारण ही सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है। म्यूजियम्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट और आंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली के डिप्टी डीन (एकेडमिक अफेयर्स) डॉ. आनंदवर्द्धन इसे बिहार के सरकारी तंत्र की नासमझी या साजिश मानते हैं। वह सवाल उठाते हैं कि सरकार कोई नई जाति कैसे बना सकती है? अंग्रेजों ने ब्राह्मणों को बांटने के लिए भूमिहार ब्राह्मण को अलग किया। तब से आजतक जमीन-जायदाद से लेकर कोर्ट-कचहरी तक भूमिहार ब्राह्मण या बाभन शब्द ही लागू है। सरकार ने जातीय जनगणना में ‘भूमिहार ब्राह्मण / बाभन’ नहीं लिखा। अगर 142 नंबर इनके लिए है तो भूमिहार ब्राह्मण को ब्राह्मण से पूरी तरह अलग बताने की साजिश ही कह सकते हैं इसे।

*89 में भूमिहार ब्राह्मण का एक गोत्र लिखा*

शैडो गवर्नमेंट बिहार के स्वास्थ्य मंत्री और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ.रत्नेश चौधरी कहते हैं कि जातीय जनगणना की मंशा ही गलत है। कायस्थों की उपजातियों को दर्जी के साथ लिखा गया। विरोध पर उसे तो हटा दिया गया, लेकिन बंगाली कायस्थों को अब भी अलग रखा गया है। क्या सत्तारूढ़ दल से जुड़ी महत्वपूर्ण जातियों के साथ ऐसा हुआ है… नहीं तो कुछ खास जातियाों को ही टारगेट क्यों किया जा रहा है ? भूमिहार ब्राह्मण के जातीय कोड का जिक्र नहीं है। इसके अलावा,89 नंबर पर भूमिहार ब्राह्मण के एक गोत्र द्रोनवार (दोनवार) का नाम लिखकर उसे अलग जाति के रूप में दर्ज कराना भी साजिश है। जो लोग इस गोत्र का नाम देखकर दर्ज कराएंगे, वह न तो ब्राह्मण बचेंगे और न भूमिहार ब्राह्मण (अगर इसके लिए सरकार कोड में सुधार करती है तो)।

*कोड 140, 141, 142 में किस तरह का कन्फ्यूजन*

जातीय गणना के लिए जारी कोड में 140 नंबर भूइया, 141 नंबर भूईयार और 142 नंबर भूमिहार को जगह दिया गया है। इतिहासकारों की मानें तो भूमि से पालन-पोषण करने वाली 12-14 जातियों का ऐसा मिलता-जुलता नाम है। इसमें भूमिहार ब्राह्मण को छोड़ ज्यादातर अनुसूचित जाति-जनजाति में हैं। 140 नंबर भूइया का बिहार में अस्तित्व भी है, लेकिन 141 नंबर भूईयार का अस्तित्व नहीं के बराबर है। जबकि, बिहार में बोलियों के आधार पर भूमिहार ब्राह्मणों को कहीं बाभन, कहीं भुइंयार, कहीं भुनियार, कहीं भूईयार आदि लोग बोल लेते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि 141 नंबर कोड भूमिहार ब्राह्मणों के लिए है। वह पूरी तरह से एक अनुसूचित जनजाति के लिए कोड है। गया-जहानाबाद में इस अनुसूचित जनजाति के लोग मिल भी सकते हैं, हालांकि महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ आदि में इनकी संख्या ठीक बताई जाती है। अब बचा तो 142 नंबर ‘भूमिहार’। सरकार सुधार करती है तो इसी जातीय कोड को ‘भूमिहार ब्राह्मण’ लिखा जा सकता है।

*समाधान*

• सरकार 89 व 142 नंबर को रद्द कर सभी को ब्राह्मण माने!
• सरकार 142 नंबर कोड भूमिहार ब्राह्मण के नाम कर देज्ञ
• सरकार 89 नंबर कोड को रद्द कर कन्फ्यूजन खत्म करे।

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