मुट्ठी बंद कर ही कर रहे प्रचार
जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
9 दिसंबर 2022
भागलपुर : बिहार निकाय चुनाव को लेकर जिले में हलचल तेज है. अति पिछड़ा वर्ग आयोग से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जनवरी में सुनवाई करेगा। यह खबर सामने आते ही फिर एकबार प्रत्याशी उधेड़बुन में हैं। राज्य निर्वाचन आयोग ने दिसंबर में दो अलग-अलग तिथियों में चुनाव कराने की घोषणा कर दी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दो अहम फैसलों ने सबको कन्फ्यूजन में डाल दिया है। इसका साफ असर दिख रहा है।
प्रत्याशियों के अंदर से अभी भी पूरी तरह संशय खत्म नहीं : सुप्रीम कोर्ट अब अति पिछड़ा वर्ग आयोग से जुड़ी याचिका पर जनवरी में तय तारीख पर सुनवाई करेगा। इस बीच अब आगामी 18 दिसंबर और 28 दिसंबर को मतदान लगभग तय लग रहा है। लेकिन इसे लेकर अभी भी पूरी तरह संशय खत्म नहीं हुआ है। प्रत्याशियों के अंदर तरह-तरह के सवाल पैदा हो रहे हैं। उनके मन को अभी भी ये सवाल घेरे हुए हैं कि कहीं पिछली बार की तरह इसबार भी तो आखिरी समय पर जाकर चुनाव पर रोक नहीं लग जाएगी। इससे पहले हाई कोर्ट के फैंसले ने इन प्रत्याशियों को झटका दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर उन्हें पटके जाने का संदेह है। अपने इसी सोच के कारण प्रत्याशीगण बंद मुट्ठी को खोलने में हिचकिचा रहे हैं और यही वजह है कि चुनावी कार्यकर्तागण अब तक इसे चुनावी रंग नहीं दे पा रहे हैं।
जानिये क्या है वजह : दरअसल, पिछली बार जब चुनाव पर रोक लगी थी तो सभी प्रत्याशियों ने इस रोक से अंजान होकर अपनी पूरी ताकत चुनाव प्रचार के लिए मैदान में झोंक दी थी। वो मतदान के लिए लगभग तैयार खड़े थे लेकिन नामांकन वगैरह के बाद जब ये रोक का आदेश आया तो वे हताश हो गये और उन्हें अपना सारा खर्च पानी में मिलता दिखा। अब जब निर्वाचन आयोग ने पुराने नामांकन पर ही चुनाव कराने का आदेश जारी किया है तो बहुत हद तक उम्मीदवारों में जान लौटी है। पुराने प्रचार सामग्री भी काम आ जाएंगे।
प्रत्याशी व उनके समर्थक अभी भी उधेड़बुन में : प्रत्याशी व उनके समर्थक अभी भी उधेड़बुन में हैं. प्रत्याशी न तो खुल कर प्रचार कर रहे हैं और न ही निश्चिंत होकर घर बैठ रहे हैं। कहीं चौक-चौराहों पर तो कहीं अपने जानकार पत्रकार व अधिकारियों को फोन लगाकर ये पूछते दिख रहे हैं कि कहीं फिर से तो डेट आगे नहीं बढ़ जाएगा।
जनसंपर्क और सोशल मीडिया पर प्रचार किया तेज : कुछ उम्मीदवार बनने की उम्मीद लिये इंतजार कर रहे हैं कि अगर सीटें आरक्षित नहीं हुई तो वो भी मैदान में ताल ठोकने उतरेंगे। तो कहीं पुराने उम्मीदवार चाहते हैं अब पुराने तरीके से ही तय तिथि में चुनाव हो जाएं ताकि और अधिक उम्मीदवार मैदान में ना आए। इस बीच उम्मीदवारों ने जनसंपर्क और सोशल मीडिया पर प्रचार तेज कर दिया है। लेकिन बड़े खर्च में अभी भी कतरा ही रहे हैं और मुट्ठी को बंद किये हुए हैं।