कवि कुमार विश्वास के भाषाई बयान पर वीसी के जरिये अंगिका साहित्यकारों ने की चर्चा
* केंद्र और राज्य सरकार पर अंगिका भाषा के साथ अंग्रेजों की तरह बर्ताव करने का लगाया आरोप
गौतम सुमन गर्जना
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जनपथ न्यूज़ भागलपुर : साहित्य जगत के चर्चित साहित्यकार कवि कुमार विश्वास ने अपने ट्वीट में यह बात जोर देकर कहा कि अंगिका एवं अन्य लोक भाषाएं स्वतंत्र और सामर्थ भाषा है। अंगिका को किसी अन्य भाषा से मिलता-जुलता कह देना किसी भी दृष्टि से सही नहीं है। इसी तरह उन्होंने भोजपुरी, अंगिका, बज्जिका, मगही, मैथिली भाषा का अलग-अलग अस्तित्व होने की बात कर इसका अलग-अलग मिठास बताया है। कुमार विश्वास के इस महत्वपूर्ण टिप्पणी पर अंग प्रदेश के अंगिका प्रेमियों ने स्वागत कर उनका सम्मान किया है।
इस बाबत अंगिका साहित्यकारों ने रविवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अंगिका भाषा के समुचित सम्मान और अधिकार के सवाल पर चर्चा की, जिसकी अध्यक्षता अंगिका-हिंदी के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. अमरेंद्र ने की। इस महत्वपूर्ण चर्चा की शुरुआत करते हुए सर्वप्रथम डॉ अमरेंद्र ने कवि कुमार विश्वास के भाषाई बयान की प्रशंसा की और कहा कि राज्य और केंद्र सरकार अंग प्रदेश की लोक भाषा अंगिका के साथ अंग्रेजों जैसा बर्ताव कर रही है। बिहार झारखंड के 21 जिलों समेत देश-विदेश के कई प्रांतों व जिलों में रह रहे हैं 6-7 करोड़ अंगिका भाषियों की लोकभाषा अंगिका को आश्वासनों के बलबूते छलने का काम तेजी से किया जा रहा है। वीसी द्वारा परिचर्चा में शामिल दिनेश बाबा तपन ने कहा कि अंगिका भाषा के हक-हकूक के लिए वर्षों से आंदोलन होते रहे हैं और सरकार की ओर से इसके लिए केवल आश्वासन मिलता रहा है। आज केंद्र व राज्य सरकार का लोक भाषा अंगिका के प्रति रवैया देखकर ऐसा लगता है कि आश्वासनों के संदूक में अंगिका को कैद करने की एक बड़ी साजिश हो रही है,जो उचित नहीं है। अंग महाजनपद के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. डीपी सिंह ने केंद्र व राज्य सरकार से अनुरोध किया कि वह लोक भाषा अंगिका की हकमारी बंद कर शीघ्रताशीघ्र इसे भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करे।गजलकार सुधीर कुमार प्रोग्रामर ने अंगिका को दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा बताते हुए कहा कि इसकी हकमारी कहीं से भी उचित नहीं है।
शिक्षाविद ई. अंशु सिंह ने कहा कि अंगिका भाषी सत्ता परिवर्तन का दम-खम रखते हैं,इसलिए सरकार को चाहिए कि वह अंगिका भाषियों की सहनशीलता को कायरता समझना अब बंद करें और जितनी जल्द हो सके अंगिका को समुचित सम्मान और अधिकार देने की दिशा में सकारात्मक पहल करें। उन्होंने कवि कुमार विश्वास की बातों का समर्थन करते हुए कहा कि यदि सचमुच बिहार झारखंड के 21 जिलों में भी अंगिका भाषा में फिल्म निर्माण करने-कराने का अवसर मिल जाए और यहां के पर्यटन स्थलों को सरकार की ओर से बढ़ावा मिल जाए तो निश्चित तौर पर फिल्मी जगत के बड़ी-बड़ी हस्तियां अंग महाजनपद में फिल्म निर्माण के लिए आएंगे और यहां की बेरोजगारी और बेकारी कोई नया आयाम मिलेगा। उपन्यासकार चंद्रप्रकाश जगप्रिय ने कहा कि अंगिका भाषा में प्रचुर साहित्य का सृजन हुआ है और आज भी हो रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने के लिए अंगिका भाषा सभी शर्तों को पूरा कर उनके मानक पर खडी़ उतरती है, इसलिए सरकार को चाहिए कि अब अंगिका को इस हक-हकूक को देने से तनिक भी विलंब ना करें। अधिवक्ता त्रिलोकीनाथ दिवाकर ने कहा कि इस हक-हकूक के लिए अंगिका भाषियों ने निर्णय लिया था कि इनके लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर किया जाएगा, लेकिन कोरोना वायरस को लेकर फिलहाल इसे स्थगित किया गया है। उन्होंने बताया कि लॉक डाउन टूटते ही इस कार्य को पूरा किया जाएगा।
ई.अंजनी कुमार शर्मा ने कहा कि अंगिका को समुचित अधिकार और सम्मान की मांगें कोई भीख नहीं बल्कि यह अंग की अस्तित्व और अस्मिता की खातिर सच्ची पुकार है। अाखिर में जहां वाणिज्य कर के सेवानिवृत्त संयुक्त कमिश्नर कैलाश ठाकुर ने कहा कि अंगिका के साथ अंग्रेजों की तरह जो नीति सरकार के द्वारा खेली जा रही है, वह कहीं से भी उचित नहीं है। उन्होंने लॉक डॉउन के बाद इस कार्य के लिए चरणबद्ध आंदोलन की बात कही। वहीं कवि धीरज पंडित ने आगामी विधानसभा चुनाव में राजनेताओं को सबक सिखाने के लिए चरणबद्ध तरीके से अभियान चलाने की बात कही।
अंत में सभी अंगिका कवि- साहित्यकारों ने चर्चित साहित्यकार सह कवि कुमार विश्वास के भाषाई बयान का स्वागत करते हुए उनका आभार प्रकट किया और कहा कि सरकार यह सोचना चाहिए कि जब भाषाई विद्वान लोकभाषा के प्रति इस तरह का बयान दे रहे हैं तो उनकी स्थिति- परिस्थिति क्या है?
फोटो : वीसी के जरिए अंगिका भाषा पर चर्चा करने वाले 10 कवि-साहित्यकारगण