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अंग प्रदेश के भागलपुर में 250 करोड़ की साड़ियों का होगा व्यापार, दुर्गा पूजा से पहले कई शहरों से आई डिमांड….

24 घंटे कारखानों में बन रहीं साड़ियां

जनपथ न्यूज डेस्क
रिपोर्टेड by: गौतम सुमन गर्जना, भागलपुर
31 जुलाई 2022

भागलपुर : जिले की प्रसिद्ध सिल्क की साड़ियों की डिमांड देश के कई शहरों में दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। दुर्गा पूजा को ध्यान में रखते हुए पहले से ही साड़ियों के ऑर्डर मिलने लगे हैं। भागलपुर के साड़ी व्यापारियों की मानें तो इस बार शहर में रिकॉर्ड तोड़ते हुए लगभग 250 करोड़ रुपए का कारोबार होने वाला है। थोक रेट में सबसे सस्ती साड़ी 500 की है,जबकि सबसे महंगी 7000 रुपए की।

व्यापारियों के मुताबिक इससे पहले किसी साल साड़ियों का व्यापार इस आंकड़े तक नहीं पहुंच पाया था। पिछले दो साल कोरोना काल में तो व्यापार 100 करोड़ तक भी नहीं पहुंचा था, लेकिन इस बार ऑर्डर इतने आ चुके हैं कि 24 घंटे कारखानों में लगातार काम चल रहा है।

विदित हो कि पिछला दो साल कोरोना की मार भागलपुर के साड़ी व्यापारियों ने भी झेली थी, लेकिन इस बार का बाजार कैसा है, ये जानने के लिए _जनपथ न्यूज_ की टीम भागलपुर के चंपानगर इलाके में पहुंची।

चंपानगर भागलपुर का वो इलाका है, जहां घुसते ही साड़ियों के बुनने की आवाज धड़-धड़-धड़ाहट की आवाज सुनाई देने लगती है। इन इलाकों में करीब 800 से ज्यादा साड़ियों के कारखाने हैं,जहां सिल्क साड़ियों का उत्पादन होता है।

*दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई समेत कई शहरों से आए ऑर्डर*
व्यापारी प्रदीप कुमार दास ने बताया कि इस बार सिल्क की साड़ियों का ऑर्डर हैदराबाद, चेन्नई,केरल,कोलकाता और दिल्ली समेत देश के कई नामचीन शहरों से आया हुआ है। उन्होंने कहा कि इस बार हम सभी व्यापारियों को जिस हिसाब से ऑर्डर मिला है, उसके अनुसार इस बार कम से कम 250 करोड़ का कारोबार होने वाला है, जो कि अन्य साल के मायने में अधिक है। जब पिछले दो सालों तक कोरोना हावी था तो 100 करोड़ का भी व्यापार नहीं हो पाया था, लेकिन इस बार की गति एकदम तेज है। उन्होंने कहा कि हमलोगों को आसपास के और ज्यादा कारीगरों को अपने साथ जोड़ना पड़ा है, ताकि ऑर्डर पूरा करने में हम पिछड़े नहीं।

*साड़ी प्रिंट करने के लिए दिल्ली और कोलकाता से आए कारीगर*
साड़ी को प्रिंट करने वाले कारखाने के मालिक चंदन कुमार ने बताया कि साड़ी के ऑर्डर इतने हैं कि प्रिंट करने के लिए दिल्ली और कोलकाता से कारीगर बुलाए गए हैं। उन्होंने बताया कि चंपानगर में उनके अलावा कुल 25 प्रिंटिंग कारखाने हैं। सभी जगह 24 घंटे काम चल रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अकेले उनके यहां 25 करोड़ के प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।

*5 प्रोसेस में तैयार होती है साड़ी*
साड़ियों को बुनने से लेकर तैयार होने में कुल 5 प्रोसेस से होकर गुजरना होता है तब साड़ी पूरी तरह तैयार हो जाती है। वे प्रोसेस इस प्रकार से हैं –
1. सिल्क से पहले धागा बनाया जाता है।
2. फिर धागे की बनावट की जाती है,जिसके बाद वो कपड़े का आकार ले लेती है।
3. तैयार साड़ी के कपड़े को कलर किया जाता है,जिससे साड़ी रंग-बिरंगी स्वरूप ले सके।
4. फिर रंगी हुई साड़ी के ऊपर अलग-अलग डिजाइन को प्रिंट किया जाता है,जिससे साड़ी और ज्यादा खूबसूरत लगने लगती है।
5.आखिरी प्रोसेस में साड़ी तैयार होने के बाद उसे पॉलिश किया जाता हैं,जिससे साड़ी में चमक आती है।

*पांच सौ से 7 हजार तक की साड़ियां*
सिल्क के लिए कोकून का बीज ओडिशा से आता है। साड़ियों की थोक रेंज 500 से 7000 तक होती है। सबसे सस्ती साड़ी 500 की है, जो डूप्लीकेट सिल्क में आता है।

*यह है खासियत*
वहीं देसी सिल्क मधुबनी हैंड पेंटिंग है, जिसकी रेंज 7000 रुपए है। पूरी साड़ी पर हाथों से कलाकारी होती है। यहां की साड़ियों की खासियत यह है कि ये साड़ी कोकून से बनता है। बताते चले कि जितनी बार इसकी धुलाई होती है, इसकी चमक उतनी अधिक बढ़ती है।

*कारखाने से महानगरों तक पहुंचती हैं साड़ियां*
भागलपुर के चंपानगर के अलग-अलग कारखानों से देश के नामचीन शहरों तक साड़ी के पहुंचने का भी प्रोसेस है। यहां के व्यापारी साड़ियों का सैंपल लेकर अलग-अलग शहरों में जाते हैं और इसके बाद वहां के व्यापारियों से बात पक्की होने के बाद ऑर्डर लेकर कारखानों में साड़ी तैयार करवाते हैं और फिर उन्हें कूरियर या ट्रांसपोर्ट के जरिए उन शहरों तक पहुंचाया जाता है।

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