जनपथ न्यूज़ :: आज सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव की आज 551वीं जयंती है। गुरु नानक जयंती का त्योहार कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूरे देश में धूम धाम से मनाया जाती है। आपको बता दें कि गुरु नानक जयंती कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस दिन देवों की दीवाली यानी देव दीपावली भी होती है।
यह त्योहार सिख समुदाय के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। हिन्दी तिथि के अनुसार इनका जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा को तलवंडी नामक गांव में हुआ था। सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 को राय भोई की तलवंडी (राय भोई दी तलवंडी) नाम की जगह पर हुआ था, जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित ननकाना साहिब (Nankana Sahib) में है. इस जगह का नाम ही गुरु नानक देव जी के नाम पर पड़ा। यहां बहुत ही प्रसिद्ध गुरुद्वारा ननकाना साहिब (Gurdwara Nankana Sahib) भी है, जो सिखों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है।
सिख धर्म के अनुयायी कार्तिक पूर्णिमा को प्रकाश पर्व के तौर पर भी मनाते है। ऐसा कहा जाता है कि गुरू नानक देव बचपन से ही शांत प्रवृति के थे। यही वजह है कि बाल्यावस्था में जब उसके साथी खेलकूद में व्यस्त होते तो वे अपनी आंख बंद कर ध्यान और चिंतन करने लगते।
गुरु नानक जयंती का पर्व सिख समुदाय के पहले गुरु, गुरु देव नानक जी के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है। गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रथम गुरु और संस्थापक थे। गुरु नानक जी के उपदेश और शिक्षाएं उनके अनुयायियों के बीच आज भी काफी लोकप्रिय हैं। गुरु नानक देव जी ने अध्यात्मिक शिक्षा के आधार पर ही सिख धर्म की स्थापना की।
गुरु नानक जी बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्तित्व थे। गुरु नानक देव जी को धार्मिक नवप्रवर्तनक भी माना जाता है। सिख धर्म के प्रथम गुरु होने के साथ-साथ वे एक महान दार्शनिक, समाजसुधारक, देशभक्त, धर्मसुधारक, योगी आदि भी थे। उन्होंने अंधविश्वास, मूर्ति पूजा आदि का कट्टर विरोध किया।
गुरु नानक जी ने धार्मिक कुरोतियों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और दुनिया के कोने-कोने में सिख धर्म का प्रचार किया। गुरु नानक देव जी ने अनुयायियों को भगवान तक पहुंचने का मार्ग बताया। उन्होंने लोगों को प्रेम करना, जरूरतमंदों की सहायता करना, महिलाओं का आदर करना आदि के लिए भी प्रेरित किया और अपने अनुयायियों को ईमानदारी पूर्वक जीवन जीने की शिक्षा दी और जीवन से संबंधित कई उपदेश दिए। गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को 974 भजनों के रूप में अमर किया गया था, जिसे सिख धर्म के पवित्र पाठ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता है।