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बिहार में लोकसभा की 40 सीटों पर जीत दिलाएगा ‘एलपीसी’ फार्मूला

जानिए महागठबंधन को मात देने वाला बीजेपी का ‘अमित’ मंत्र

जनपथ न्यूज डेस्क
रिपोर्टेड by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
2 मार्च 2023

भागलपुर : लोकसभा चुनाव- 2024 को लेकर बिहार के संदर्भ में अब तक आए सर्वेक्षणों के नतीजे महागठबंधन को ताकतवर बताते रहे हैं। सर्वेक्षणों में ऐसा न भी दिखता, तब भी किसी को कबूल करने में हिचक नहीं होती कि एनडीए के मुकाबले महागठबंधन अब ताकतवर हो गया है। 2019 के लोकसभा चुनाव नतीजों के आंकड़े तो इसी का इजहार करते दिखते हैं। लेकिन लालू प्रसाद यादव के परिवार पर सीबीआई का शिकंजा जिस तरह कसने लगा है, उससे यही लगता है कि बीजेपी करप्शन को ही बिहार में मुद्दा बनाएगी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जंगल राज का मुद्दा तो पहले ही उछाल दिया था। अब तो रेलवे में नौकरी के लिए जमीन मामले में सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल कर दी है। कोर्ट ने समन भी जारी कर दिया है। अमित शाह ने बिहार को जीतने के लिए ‘एलपीसी’ फार्मूला पर काम करना शुरू कर दिया है। ‘एलपीसी’ फार्मूला मतलब लालू परिवार करप्शन का मुद्दा। इसी मुद्दे को लेकर बिहार में चालीस सीटों पर कब्जा जमाने के लिए बीजेपी तैयार है।

*2019 में 50 प्रतिशत से अधिक वोट थे एनडीए के*

2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम का आकलन करें तो पता चलता है कि उस वक्त के एनडीए को 50 फीसदी से अधिक वोट आए थे। इसमें बड़ी भूमिका जेडीयू की भी थी, क्योंकि 2019 में जदयू भी एनडीए का हिस्सा था। उसे करीब 22 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को 8 तो राजद को 15 प्रतिशत वोट आए थे। अभी तीनों दल महागठबंधन का हिस्सा हैं। यानी अकेले 45 प्रतिशत वोट शेयर इनके पास है। वाम दलों और अन्य छोटे दलों के कुछ वोट भी जरूर होंगे। लोकसभा चुनाव में मिले मतों को आधार मानें तो तकरीबन 50 प्रतिशत वोट अभी महागठबंधन के पाले में हैं। यानी 2019 में जो स्थिति एनडीए की थी, वही अब महागठबंधन की है। एनडीए की बात करें तो बीजेपी को 23.6 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। एनडीए के साझीदार लोक जनशक्ति पार्टी के पक्ष में 7.9 प्रतिशत पड़े थे। यानी आज की तारीख में एनडीए के खाते में अभी 30-31 प्रतिशत वोट ही दिखते हैं।

*2019 में बीजेपी को मिले थे 23.6 प्रतिशत वोट*

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 23.6 प्रतिशत वोट मिले थे। उसके सभी 17 उम्मीदवार जीत गए थे। जदयू भी 17 सीटों पर लड़ा था, लेकिन उसके 16 उम्मीदवार ही जीते। जेडीयू का वोट शेयर 21.8 प्रतिशत था। लोजपा ने 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और 7.9 प्रतिशत वोट शेयर के साथ उसकी सभी सीटें निकल गयी थीं। हालांकि वोट शेयर के मामले में लोजपा चौथे नंबर पर थी। तीसरे नंबर पर आरजेडी था। एनडीए में बीजेपी और लोजपा के अलावा जदयू भी साथ था। समेकित रूप से एनडीए को 53.3 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।

*राजद को लोजपा से अधिक वोट, पर एक भी सीट नहीं मिली*

महागठबंधन की बात करें तो राजद को 15.4 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को 7.7 प्रतिशत वोट शेयर के साथ एक सीट मिली थी, पर राजद का खाता ही नहीं खुला। इस तरह बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों में 39 पर एनडीए ने कब्जा कर लिया था। महागठबंधन की इन दो पार्टियों की तरह ही बाकी घटक दलों का भी प्रदर्शन खराब रहा। इस बार राजद, जदयू, कांग्रेस, वाम दल और हम (से) समेत सात दल साथ हैं। राजद, जदयू और कांग्रेस के ही कुल वोट शेयर 2019 के हिसाब से 44-45 प्रतिशत होते हैं। अन्य सहयोगी दलों के मतों को शामिल कर लें तो यह करीब 50 प्रतिशत या थोड़ा अधिक होता है।

*भाजपा को जोड़-तोड़ और इलेक्शन मैनेजमेंट का सहारा*

प्रथमदृष्टया महागठबंधन बिहार में एनडीए पर भारी दिखता है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो 2019 के नतीजों के उलट इस बार परिणाम आ सकता है। चुनावी सर्वेक्षण भी इसी ओर इशारा करते आ रहे हैं। ऐसे में भाजपा को अपने आधार वोट के अलावा इलेक्शन मैनेजमेंट से ही करिश्मा की गुंजाइश दिखती है। भाजपा पहली कोशिश यह करेगी कि छोटे दलों को किसी भी तरह अपने पाले में करे। दूसरी कोशिश भाजपा यह कर सकती है कि महागठबंधन के वोट बैंक में कैसे सेंध लगायी जाये। उपेंद्र कुशवाहा ने जब जदयू छोड़ नयी पार्टी बनायी तो वे 24 घंटे के अंदर ही भाजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल से मिले। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि नीतीश के वोट काटने में कुशवाहा जरूर भाजपा की मदद करेंगे। नीतीश के स्वजातीय और जदयू कोटे से केंद्र में मंत्री रहे आरसीपी सिंह के जरिये भी भाजपा जदयू के वोट काटने की कोशिश जरूर करेगी। चिराग पासवान को पहले से ही भाजपा ने वाई श्रेणी की सुविधा देकर डोरे डाल दिये हैं। वीआईपी के मुकेश सहनी को भी जेड कैटगरी की सेक्योरिटी देकर भाजपा ने उन पर पाशा फेंक दिया है। हम (से) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भाजपा पटाने में लगे हुए हैं। यह बात खुद नीतीश कुमार ने कही है और सफाई में जीतन राम मांझी ने मां की कसम खायी है। इस तरह भाजपा ने छोटे और नीतीश से नाराज चल रहे दलों और नेताओं को अपने पाले में करने का प्रयास शुरू कर दिया है। एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने अगर राजद के पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा दी तो यह भी भाजपा के हक में ही जाएगा।

*भाजपा के पास भ्रष्टाचार सबसे बड़ा हथियार*

देश भर में जिस तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियां एक्टिव हुई हैं, लालू यादव के परिवार पर सीबीआई की चार्जशीट उसी का हिस्सा मानी जा रही है। लालू परिवार तो पहले से ही जांच एजेंसियों की रडार पर है, इसलिए यह कहना भी तर्कसंगत नहीं होगा कि राजद नेता तेजस्वी महागठबंधन की बढ़ती ताकत देखकर केंद्र की भाजपा सरकार ऐसा कदम उठा रही है। लालू परिवार के खिलाफ पहले से जांच एजेंसियों के पास मामले पड़े हैं। लालू प्रसाद यादव की सजा बढ़ाने के लिए सीबीआई अभी से सक्रिय हो चुकी है। रेलवे में नौकरी के नाम पर जमीन मामले में तो समन ही जारी हो गया है। नीतीश कुमार पर सीधे करप्शन का कोई मामला नहीं बनता। उनके परिवार के किसी सदस्य पर भी करप्शन का कोई आरोप नहीं है। इसलिए उन पर भ्रष्टाचार के मामलों की आशंका नहीं है। लेकिन लालू परिवार पर खतरे की तलवार तो लटक ही रही है। नीतीश कुमार बार-बार यह कहते हैं कि करप्शन से कोई समझौता नहीं करेंगे। करप्शन के चार्ज जब तेजस्वी यादव पर लगे थे तो उन्होंने आरजेडी से नाता तोड़ने में तनिक भी देर नहीं की थी। इसलिए यह देखना भी दिलचस्प होगा कि अगर तेजस्वी पर फिर कोई आरोप लगता है या पुराने मामलों में जांच आगे बढ़ती है तो वे क्या करेंगे। हालांकि इस बार उनके आरजेडी का साथ छोड़ने की संभावना नहीं के बराबर है। इसलिए कि भाजपा ने उनके लिए दरवाजे बंद कर दिये हैं और तेजस्वी पर लगे आरोपों को जान-समझ कर ही वे दोबारा राजद के साथ आये हैं।

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