कभी सीएम के किचन कैबिनेट सदस्य थे उपेंद्र, आरसीपी और पीके*
जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
31 जनवरी 2023
भागलपुर : कभी सबसे ज्यादा विश्वासपात्र रहे,वो अब सबसे बड़े दुश्मन बन गए हैं और जो कभी सीएम के किचन केबिनेट सदस्य रहे, अब उनकी दीवारों के परत को खरोंच कर बदसूरत कर रहे है। जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की और उनके सबसे ज्यादा विश्वासी सिपहसालारों की। नीतीश कुमार पिछले 17-18 सालों से हर परिस्थिति में बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं।
वैसे तो मौजूदा हालात में भी उनकी राजनीतिक स्थिति में कोई रुकावट नहीं आई है, लेकिन उनके तीन विश्वासपात्र नेताओं ने उनकी बखिया उधेड़ दी है। हम बात कर रहे हैं जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा,जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके आरसीपी सिंह और जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके प्रशांत किशोर की।
नीतीश कुमार समय-समय पर सबसे ज्यादा विश्वास इन तीनों नेताओं पर करते रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा का रिश्ता 35 साल पुराना है। बीच में खटपट हुई लेकिन, कुछ-कुछ अंतराल पर यह दोनों नेता एक दूसरे के संपर्क में रहे और अपनी राजनीति को आगे भी बढ़ाते रहे हैं।
वहीं, उनसे थोड़ा कम लगभग 22- 23 साल का संबंध पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह से रहा। नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को जदयू का पावर ऑफ अटॉर्नी दे रखी थी। फिर बारी आई चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की। प्रशांत किशोर ने बहुत कम समय में ही नीतीश कुमार का दिल जीत लिया था। नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया और अब आखिर ऐसी क्या बात हो गई,जो यह तीनों नीतीश कुमार के खिलाफ हो गए हैं।
*उपेंद्र कुशवाहा का नीतीश कुमार से 35 साल पुराना रिश्ता*: आईये हम इसकी शुरआत उपेन्द्र कुशवाहा से करते हैं,जो न जदयू से निकाले गए हैं और न ही उन्होंने जदयू छोड़ी है। लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ खुलेआम जंग का ऐलान करने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश समर्थकों की नींद हराम कर दी है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि वे उन पर निजी हमले कर रहे हैं। बातों को प्रमाणित करने के लिए बच्चों की कसम खाने के लिए उकसा रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार के खिलाफ पहली ही प्रेस कांफ्रेंस में उन्हें झूठा,स्वार्थी और लालची सब कुछ बता दिया है।
उपेंद्र कुशवाहा बार-बार यह कह रहे हैं कि अब वह जदयू से ऐसे बाहर नहीं जाएंगे। उनको जदयू में बंटवारा चाहिए, हक चाहिए। नीतीश कुमार के खास रहे उपेंद्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री ने समय-समय पर बड़े-बड़े पोस्ट भी दिए। पहली बार नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को बिहार का प्रतिपक्ष का नेता बनाया था। उसके बाद उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया। जब फिर वापस जदयू में आए तो, पहले तो जदयू संसदीय बोर्ड का चेयरमैन बनाया फिर, उन्हें एमएलसी भी बनाया लेकिन, अब उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी में रहकर ही बगावत कर दी है।
*पीए टू राष्ट्रीय अध्यक्ष =आरसीपी*: नीतीश कुमार जब केंद्र में मंत्री थे, तब से आरसीपी सिंह से उनका रिश्ता है। बतौर पीए आरसीपी सिंह नीतीश कुमार से ऐसे चिपके कि,जब नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो, उनके साथ-साथ वह बिहार भी पहुंच गए। उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस रह चुके आरसीपी सिंह नीतीश कुमार में ही अपनी राजनीतिक भविष्य तलाशने लगे और एक समय ऐसा हुआ कि जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिना आरसीपी की राय लिए, एक कदम भी नहीं चलते थे।
जदयू के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को हटाकर नीतीश कुमार खुद इस पद पर आए थे। इसके बाद उन्होंने आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाया। तब माना यह जाता था कि नीतीश कुमार जो कहते और करते हैं उसमें आरसीपी सिंह का भी योगदान रहता था। लेकिन आरसीपी सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद केंद्र में मंत्री बनने के विवाद में ऐसे उलझे कि नीतीश कुमार की नजरों से उतर गए। आरसीपी ने इस्तीफा दे दिया। नीतीश की नजरों से उतरे आरसीपी की जुबां भी उनके खिलाफ चलने लगी है। आज हालत यह है कि जिस आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार को सबसे पहले प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताया था,वही अब पूरे बिहार में यह कहते हुए घूम रहे हैं कि नीतीश कुमार के 17 साल में बिहार में कोई बड़ा काम नहीं हुआ।
*पीके को चुनावी रणनीतिकार से नेता बनाया नीतीश कुमार ने*: 2014 में प्रशांत किशोर ने नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने में जो भूमिका निभाई थी, उससे देशभर में सुर्खियों में आए चुनावी रणनीतिकार प्रशान्त किशोर की गाड़ी तेजी से आगे बढ़ी। उसका फायदा प्रशांत किशोर को कई राज्यों में मिला। जहां-जहां जो राजनीतिक पार्टियों कमजोर हुई, उन्होंने प्रशांत किशोर का सहारा लिया और वह सत्ता में काबिज हुए।
प्रशांत किशोर की मानें तो वह काफी कम समय में 11 चुनाव लड़ा चुके हैं, जिसमें 10 में उन्होंने सफलता पाई है। ऐसे प्रशांत किशोर जब नीतीश कुमार के संपर्क में आए तो, नीतीश कुमार का उन्होंने दिल जीत लिया। 2015 में नीतीश कुमार के लिए चुनाव की रणनीति बना चुके प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने वापस नहीं जाने दिया। उन्हें चुनावी रणनीतिकार से नेता बना दिया।चुनावी रणनीतिकार से जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने में प्रशांत किशोर को सिर्फ एक दिन का वक्त लगा। जदयू में आधिकारिक तौर पर शामिल होते ही प्रशांत किशोर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बन गए। लेकिन इस चुनावी चाणक्य की जुबां एक बार ऐसे फिसली कि पूरी पार्टी में उनके खिलाफ सुगबुगाहट शुरू हुई।
दरअसल, प्रशांत किशोर ने युवाओं की एक सभा में यह कह दिया कि वे सीएम-पीएम बनवाते हैं तो मुखिया-सरपंच क्यों नहीं बनवा सकते। जदयू के नेताओं ने इसे नीतीश कुमार की छवि के अनुरुप नहीं माना। बाद में उन्हें जदयू से चलता कर दिया गया। अब जन सुराज पद यात्रा में नीतीश कुमार के खिलाफ प्रशांत किशोर वो सबकुछ कह रहे हैं, जो एक विरोधी कह सकता है।