पटना,: बिहार युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ललन कुमार ने कहा कि कोरोना महामारी के संकट से पैदा हुई आर्थिक मंदी व आय की तंगी पर मरहम लगाने की बजाय,मोदी सरकार जले पर नमक छिडक़ने में लगी है। केवल एक महीने पहले, 23 मार्च, 2020 को मोदी सरकार ने 30,42,000 करोड़ रु. का बजट पारित किया। स्वाभाविक तौर से बजट में आय व खर्चे का लेखा-जोखा स्पष्ट तौर से दिया जाता है। फिर बजट पेश करने के 30 दिन के अंदर ही मोदी सरकार सेना के जवानों, सरकारी कर्मचारियों व पेंशनर्स के महंगाई भत्ते पर कैंची चलाकर क्या साबित करना चाहती है।
23 अप्रैल 2020 को बजट पेश करने के ठीक एक महीने बाद वित्त मंत्रालय द्वारा एक अजीबोगरीब फरमान जारी कर बैक डेट से यानि 1 जनवरी, 2020 से 30 जून, 2021 तक का महंगाई भत्ता,महंगाई राहत व सभी पुरानी और भविष्य की किश्तें काट दी गईं । साथ में यह फरमान भी जारी किया गया कि 1 जनवरी, 2020 से 30 जून, 2021 तक का कोई बकाया या पुरानी किश्तें, किसी कर्मचारी या पेंशनर को नहीं दी जाएंगी।
इस अन्यायपूर्ण कटौती से देश के लगभग 113 लाख सैनिकों, कर्मचारियों व पेंशनरों की तनख्वाह से सालाना 37,530 करोड़ रु. की कटौती की जायेगी। इन 113 लाख कर्मचारियों में 49.26 लाख सेवारत कर्मचारी व 61.17 लाख पेंशनर शामिल हैं। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि मोदी सरकार द्वारा महंगाई भत्ते की कटौती कर जख्म देने की इस कवायद ने देश की रक्षा करने वाले तीनों सेनाओं के हमारे सैनिकों तक को नहीं बख्शा। इस कटौती से 15 लाख सैनिकों और लगभग 26 लाख मिलिट्री पेंशनरों से 11,000 करोड़ रुपया काट लिया जाएगा।
ललन ने कहा कि मोदी सरकार अपने बेफिजूल व गैरजरूरी खर्चों में कोई कटौती नहीं कर रही। सबसे पहले अगर सरकार को पैसे की तंगी है तो बजट के बेफिजूल व गैरजरूरी खर्चों में कटौती अनिवार्य है। मोदी सरकार अपने बेफिजूल व गैरजरूरी खर्चों में कटौती करने की बजाय सैनिकों, सरकारी कर्मचारियों, पेंशनरों व मध्यम वर्ग की आय पर हमला बोल रही है। कोरोना संकट के बावजूद मोदी सरकार ने आज तक न तो 20,000 करोड़ रु.का सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट खारिज किया, न ही मोदी सरकार ने 1,10,000 करोड़ रु.का बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट खारिज किया, न ही तनख्वाह, पेंशन व सेंट्रल गवर्नमेंट स्कीम्स को छोडक़र सरकारी खर्चों में 30 प्रतिशत कटौती की घोषणा की, जिससे 2,50,000 करोड़ रु. सालाना अतिरिक्त बच सकता था। यह मोदी सरकार की पथभ्रमित प्राथमिकताओं का जीता जागता सबूत है। हम मांग करते हैं कि देश के सैनिकों, देश के मिलिट्री पेंशनरों, देश के सरकारी कर्मचारियों और देश के हमारे पेंशनरों,उनकी तनख्वाह, उनका महंगाई भत्ता ना काटकर सरकार सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट जैसा 20,000 करोड़ का बेफजूल खर्च, सरकार 1 लाख 10 हजार करोड़ का बुलेट ट्रेन खर्च, सरकार ढाई लाख करोड़ रुपए अपने सरकारी खर्च में अगर कटौती करती और ये पैसा गरीबों, मजदूरों और जरुरतमंद लोगों को देती, तो पूरा देश इसकी तारीफ करता। मोदी जी ये पथभ्रमित प्राथमिकताएं छोडि़ए और गरीबों, मध्यमवर्गीय लोगों, सरकारी कर्मचारियों, देश के सिपाहियों और सैनिकों के पैसे को दोबारा से उनके हाथ में दीजिए ताकि वो इस कोरोना की महामारी में आर्थिक संकट से जब जूझ रहे हैं, उन पर मरहम लगाने की बजाए आप उनके जले पर नमक छिडक़ रहे हैं। हम मांग करते हैं कि भाजपा सरकार इस पथभ्रमित नीति को फौरी तौर पर बंद करे। एक सामाजिक दायित्व और सरकार के तौर पर मोदी सरकार का ये कर्तव्य है कि इन वर्गों के हाथ में पैसा जाए, ना कि इन वर्गों का पैसा डेढ़ साल के लिए काट लिया जाए और इनको अपने रहमो कर्म पर छोड़ दिया जाए। मोदी सरकार इन्हें मदद करने की बजाए जले पर नमक छिडक़ रही है।
यह जो 113 लाख कर्मचारी 15 लाख मिलिट्री के वे सिर्फ सिपाही नहीं, जिनकी वजह से आप और हम सुरक्षित हैं, ये वो 26 लाख मिलिट्री के सिर्फ पेंशनर्स नहीं, जिन्होंने देश के लिए सेवा की है। परंतुए ये सभी लोग इस देश के कोरोना से जंग लड़ रहे सेनानी हैं। उनकी जेब से 38 हजार करोड़ रुपए सालाना काट कर मोदी जी क्या साबित करना चाहते हैं? जबकि वो 1 लाख 10 हजार करोड़ की बुलेट ट्रेन नहीं बंद कर रहे, 20 हजार करोड़ का सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट नहीं बंद कर रहे और ढाई लाख करोड़ की कटौती जो वो सरकारी फिजूल खर्चे में कर सकते हैंए वो नहीं कर रहे। बजाए गरीब तबकों की मदद करने कीए वो इस प्रकार के बेफिजूल खर्चे वाले प्रोजेक्ट चला रहे हैं और साधारण 113 लाख सरकारी कर्मचारी परिवारों का पेट काट रहे हैं।

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