कांग्रेस का दरवाजा खटखटाने से पहले लालू के साथ करेंगे मंथन

जनपथ न्यूज़ डेस्क
रिपोर्ट: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
12 अप्रैल 2023

देश को भाजपा मुक्त करने की अरमान लेकर दिल्ली पहुंचे,इस बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने पहले दौरे में पूरी सफलता नहीं मिल पाई थी। लेकिन उस यात्रा में विपक्षी एका की आधार भूमि जरूर तैयार हो गई। पटना लौटने के बाद नीतीश कुमार ने वादा किया था कि विपक्षी एकता की मुहिम को अधूरा नहीं छोडूंगा। बिहार विधानसभा के बजट सत्र के बाद एक बार फिर नीतीश दिल्ली दौरे पर निकले। कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों के शीर्ष नेताओं से उनकी मुलाकात की संभावना है। उसी वादे को पूरा करने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर विपक्षी एकता को धार देने की कोशिशों में जुटे हैं।

*एनडीए से अलग होने के बाद फिर ‘मिशन’ पर नीतीश*

एनडीए से नाता तोड़ने के बाद ही नीतीश कुमार का पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभियान शुरू हो चुका था। दरअसल, जदयू के भीतर नीतीश कुमार को पीएम बनाने की मुहिम के साथ नरेंद्र मोदी के विरुद्ध रणनीति पर अन्य दलों से चर्चा भी शुरू हुई। महागठबंधन के साथ नीतीश कुमार को पीएम बनाने की मुहिम की शुरुआत लालू प्रसाद ने जोर-शोर से की। लालू प्रसाद चाहते थे कि नीतीश कुमार राज्य से बाहर निकलें और देश की राजनीति के धार बनें। परंतु नीतीश कुमार ने तेजस्वी को सीएम के लिए 2025 के चुनाव का चेहरा बता कर लालू प्रसाद की मुहिम को झटका दे डाला। इस बीच सीएम रहते हुए केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ वे विपक्षी दलों को एकजुट करने निकले हैं। विपक्षी एकजुटता को लेकर नीतीश ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं से मुलाकात भी की। परंतु ये मुलाकात सिर्फ मुलाकात बन कर रह गई। कोई ठोस नतीजा नहीं निकलने के बाद नीतीश वापस पटना लौट आए थे।

*नीतीश के ‘मिशन विपक्षी एकजुटता’ में समस्या कहां है?*

नीतीश कुमार की जदयू समेत कई अन्य प्रमुख पार्टियां भी भाजपा के खिलाफ मजबूत विकल्प तैयार करना चाहती हैं। मगर कुछ बड़ी पार्टियां कांग्रेस से दूर रहना चाहती हैं। लेकिन नीतीश कुमार कांग्रेस युक्त वन फ्रंट बनाना चाहते हैं। यहीं से विपक्षी एकता को ग्रहण लगने लगा। ऐसे में थर्ड फ्रंट के बनने के आसर ज्यादा नजर आते हैं। ये बात नीतीश कुमार हैं कि ट्रैग्युलर फाइट में भाजपा को हराना आसान नहीं होगा। उधर, तेलंगाना के सीएम के. चेंद्रशेखर ने रैली कर विपक्षी दलों के नेताओं को एक मंच पर लाकर एक नया विपक्षी राग छेड़ डाला। इस मंच पर लगभग वे सारे दल के नेता थे, जिनकी राजनीतिक लड़ाई कांग्रेस से थी।

*नीतीश के बाद तेजस्वी भी विपक्षी एकता मुहिम पर निकले*

सीएम नीतीश कुमार जब अपने पहले दौरे से लौटे तो सफलता के मजबूत सूत्र हाथ नहीं लगे। एक समस्या थी कि जिन समाजवादियों को एक मंच पर लाकर विपक्षी एकता की मुहिम को अंजाम देना चाहते थे, वे सब नीतीश कुमार के सामने काफी नए नेता थे। नीतीश कुमार ने उनके पिता के साथ राजनीति की थी। चाहे मुलायम सिंह यादव हों या चरण सिंह का परिवार, चाहे देवीलाल चौटाला का परिवार हो या बीजू पटनायक का, अब उनके पुत्र और कुछ के पोते राजनीति करने लगे हैं। ऐसे में जेनरेशन गैप के कारण ये काम तेजस्वी यादव को बहुत शूट भी करता है। नतीजतन नीतीश कुमार के पहले अभियान के बाद तेजस्वी इस अभियान में निकले और उन्हें सफलता भी मिली। उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे से मिले। चौधरी देवीलाल के पोते आदित्य देवीलाल, चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी, एम के स्टालिन के बेटे उदयनिधि से मिलकर एक बॉन्डिंग बनाने का काम किया।

*एक बार फिर ‘मिशन’ पर निकले बिहार के सीएम नीतीश*

हालांकि, नीतीश कुमार के विपक्षी अभियान की हवा कांग्रेस ने ये कह कर निकाल दे थी कि राहुल गांधी पीएम पद के उम्मीदवार होंगे। लेकिन समय ने पलटी मारी। राहुल गांधी को आपराधिक मानहानी के मामले में दो साल की सजा सुना दी गई। दो साल की सजा होने के बाद राहुल गांधी की संसद सदस्यता चली गई। लिहाजा, अब कांग्रेस को भी लगने लगा है कि नीतीश ही उसकी नैया पार लगा सकते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने विपक्षी एकता को लेकर नीतीश समेत विपक्ष के कुछ बड़े नेताओं से फोन पर बात भी की। नीतीश कुमार के लिए ये एक सशक्त मौका था और वे अपनी मुहिम को धार देने फिर से निकल गए। दिल्ली में सबसे पहले नीतीश कुमार की आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से मुलाकात होगी। इसके बाद नीतीश बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मिलेंगे। इसके बाद विपक्ष के कई अन्य नेताओं से भी मुलाकात कर विपक्षी एकता को लेकर बातचीत करेंगे।

*जिनकी राजनीति कांग्रेस के खिलाफ, वो साथ कैसे आएंगे?*

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज यादव ने एक बयान से सबको चौंका दिया है। उन्होंने कहा है कि समाजवादी पार्टी नीतीश कुमार को पीएम का सबसे श्रेष्ठ उम्मीदवार मानती है। नरेंद्र मोदी तो सत्ता में आने के बाद अपनी जाति को पिछड़ों में शामिल किया। ये तो असली पिछड़ा नेता हैं। पिछड़ा का ही पीएम बनाना है तो नीतीश कुमार के सामने कोई दूसरा नेता नहीं है। अभी भले नहीं महसूस हो रहा है लेकिन 2023 के अंत तक विपक्षी एकता की मुहिम परवान चढ़ पाएगी। बहरहाल, कांग्रेस के थोड़े सहज होने के बाद विपक्षी एकता की मुहिम को धार मिलता तो दिख रहा है। लेकिन सवाल ये है कि के. चंद्रशेखर राव, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और नवीन पटनायक को कैसे कांग्रेस के साथ एक मंच पर ला पाएंगे? जब उनकी राजनीति ही कांग्रेस के विरुद्ध चलती है। ये सवाल इस मुहिम के साथ चल तो ही रहा है।

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