कोरोनाकाल के बाद तेजी से बढ़ता कारोबार फिर ठप्प! माल तैयार,व्यापारी गायब
जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
17 जनवरी 2023
भागलपुर : बिहार के भागलपुर जिले के नाथनगर स्थित नरगा इलाके में सामान्य दिनों में जहां करघों की खट-खट की तेज आवाज गूंजती है,वहां पर इन दिनों यह काफी धीमी हो गई है। यही हाल चंपानगर, मुर्गियाचक, तांती बाजार, दरियापुर आदि स्थानों की भी है। यहां सौ-दो सौ नहीं, बल्कि हजारों की संख्या में करघे लगे हुए हैं। इनके चलने पर ही बुनकरों और उनके परिजनों की लगभग तीन लाख की आबादी का पेट पलता है। इस बार की रिकार्डतोड़ ठंड ने परेशानी खड़ी कर दी है। जाड़े के कहर को ऐसे भी समझा जा सकता है कि पूरा भागलपुरी सिल्क उद्योग इन दिनों ठहर सा गया है।
औसतन हर माह सौ करोड़ का कारोबार करने वाले इस शहर में इसकी बिक्री घटकर 40 करोड़ के आसपास पहुंच गई है। कारोबारियों की बात पर गौर करें तो दस वर्षों में इस सीजन में बिक्री में सबसे बड़ी गिरावट है। कोरोना दौर के बाद तेजी से बढ़ रहे बाजार पर ब्रेक लग गया है। तैयार माल लेने को बाहर के व्यापारी नहीं आ रहे हैं। लोकल मार्केट भी मंदा है। कुछ कारोबारियों को दूसरे प्रांतों से हैंडलूम से तैयार सिल्क की साड़ियों के आर्डर मिले भी हैं तो वे इसे पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। तापमान में गिरावट और जबरदस्त नमी के कारण लूम ठीक से चल ही नहीं रहे हैं।
*तसर कोकून का उत्पादन भी प्रभावित,परेशानी बढ़ी* : पुरैनी,डुमरामां,राधानगर, फुलवरिया आदि में तकरीबन 250 हैंडलूम के जरिए सिल्क का उत्पादन करने वाले गौतम लाल हरलालका की मानें तो सबसे बड़ी समस्या तसर कोकून की हो गई है। फार्मिंग काफी कम हो चुकी है। सरकारी स्तर पर सप्लाई बेहद कम है। ऐसे में तसर सिल्क के धागे काफी महंगे हो गए हैं। वहीं,सिल्क कारोबारी जियाउर रहमान कहते हैं कि हर महीने वे औसतन 1500 सिल्क की साड़ियां बेचते थे और इस समय बिक्री घटकर 150 पर अटक गई है।
भागलपुरी सिल्क के उत्थान के लिए लगातार काम करने वाले व जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक पद से पिछले महीने ही सेवानिवृत हुए संजय कुमार वर्मा कहते हैं कि इस बार की ठंड ने सिल्क के कारोबार को मुंह के बल गिरा दिया है। कारोबारियों द्वारा बुनकरों को सामूहिक हेल्थ इंश्योरेंस की व्यवस्था की जाती तो संभव था कि वे ठंड में भी काम पर आते,पर बीमार होने के डर से उन्होंने काम पर आना ही बंद कर दिया है।
*बुनकर हाट व हॉस्टल को चालू करने की दिशा में पहल जरूरी*: इस बाबत भागलपुर के पूर्व सांसद सह बिहार सरकार के पूर्व उद्योग मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि अपने कार्यकाल में उन्होंने नाथनगर में बुनकर हाट और हॉस्टल शुरू करने की योजना शुरू की थी। अब इसे अमलीजामा पहनाने की दिशा में सरकार में शामिल लोगों को प्रयास करना चाहिए। हाट और हॉस्टल की सुविधा होने पर ठंड में हो रही परेशानी से बुनकरों को बचाया जा सकता है।
*धागे टूट रहे, इसलिए कपड़ा तैयार करने की गति धीमी*: बिहार बुनकर समिति के पूर्व सदस्य अलीम अंसारी के मुताबिक सर्द मौसम में रेशम का धागा लूम पर खूब टूटता है। मुलायम धागे को सख्त करने के लिए अरारोट की लेप लगानी पड़ रही है। दुखद यह है कि धूप नहीं खिलने के कारण धागे को सुखाना बेहद कठिन है। कई लूम तो इसी वजह से बंद हैं। एक तो आर्डर कम मिल रहे हैं और जिन्हें मिले भी हैं, वे इसे पूरा नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में सरकार को चाहिए कि ऐसे सीजन में होने वाले नुकसान से बुनकरों को बचाने के लिए उन्नत टेक्नोलॉजी से युक्त बुनकर सेवा केंद्र शुरू करे। खादी सिल्क की मांग इस वर्ष 30% बढ़ी है, लेकिन यह सीजन बुनकरों के लिए बेहद नुकसानदेह साबित हो रहा है।
*डिमांड पूरा करना मुश्किल, लूम चले तो तैयार होगा माल*: नरगा चौक के समीप अपने बंद पड़े करघों के पास बैठीं बीबी अनवरी खातून के मुताबिक उनके पास दस लूम हैं। इस समय मुश्किल से चार पर ही काम होता है। व्यापारियों के आर्डर काफी कम हैं। पहले दिन भर में पांच सौ मीटर तक कपड़े तैयार हो जाते थे और अभी हाल यह है कि दो सौ मीटर तैयार करना भी मुश्किल है। कई कारीगर ठंड की चपेट में हैं। जो आते हैं, वे भी 10-11 बजे के बाद।
इससे पहले सर्दी की वजह से लूम पर उनके हाथ भी नहीं चलते। बिहार राज्य हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति के पूर्व उपाध्यक्ष अनवरी कहतीं हैं, कारोबार में ऐसी गिरावट ठंड में पहली बार देखी है, तसलीम शवाब भी उनकी बातों पर सहमति जताते हैं। उनकी मानें तो मुंबई, बंगलूरू और दिल्ली जैसे बड़े शहरों से आए डिमांड को पूरा करना मुश्किल हो रहा है।
*ठंड के गणित को समझिए, जिसने बुनकरों को रुलाया*: दिसंबर के मध्य से तापमान में गिरावट शुरू हुई। 29 को न्यूनतम तापमान 5.4, 30 को छह, 31 दिसंबर को 7, दो जनवरी को 8.2 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया। 10 जनवरी को यह फिर 4.5 डिग्री सेल्सियस पर आ गया। इसके बाद से तापमान कमोबेश ऐसा ही है। यानि, कभी भी राहत जैसी स्थिति नहीं आई। पिछले वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो यह तापमान सामान्य से तीन से से चार डिग्री सेल्सियस कम है। यही गिरावट बुनकरों की मुसीबत का कारण बन गई है।